भोपाल गैस त्रासदी पर जिस तरह की प्रतिक्रिया मीडिया तथा आम जनमानस में देखने को मिल रही है , उससे कई तरह के रहस्यों का पर्दा हटता नजर आ रहा है . मीडिया ने जिस तरह से भोपाल गैस पीड़ितों के दर्द की पैरवी की उससे एक बार फिर मीडिया की जिम्मेवारी का एहसास हुआ, पिछले कुछ दिनों में मीडिया ने कुछ दफ़न पड़े मामलों को उठाया उससे कई पहलु उभरकर सामने आये , रुचिका ग्रिहोत्रा, जेसिका लाल जैसे मामलों में मीडिया की भूमिका प्रशसंनीय रही है
भोपाल गैस त्रासदी का मुद्दे को जिस तरह मीडिया ने उठाया उससे इस कांड के वांछित अपराधी 'वारेन एंडरसन' के प्रत्यर्पण के मामले को काफी जोर- शोर से उठाया गया, हालाँकि भोपाल गैस पीड़ितों को 15 सौ करोड़ की राशि जारी की गयी वह सरकार का पहला सही कदम कहा जा सकता है , भोपाल गैस त्रासदी पर मंत्रियों का जो समूह विचार -विमर्श कर था उसके परिणाम भी प्रधानमंत्री जी के हस्त्क्षेप के बाद ही सामने आये यह बात भी काबिलेगोर है कि इस तरह की त्रासदी का निर्णय 25 साल के पूरी तरह तो नहीं परन्तु आंशिक रूप से सामने आया , वारेन एंडरसन और उसके साथियों को जितनी जल्दी हो सके सजा दी जानी चाहिए .
भोपाल गैस त्रासदी के अलावा हमारे सामने कई ऐसे मामले हैं जिन पर शीघ्र विचार किया जाना चाहिए , राजनीतिज्ञों को ऐसे मामलोंमें विचारधारात्मक स्वार्थों से उपर उठकर राष्ट्रीय स्तर पर इन मुद्दों को सुलझाने के प्रयास करने चाहिए .
२५ साल हो गए जिन्हें न्याय नहीं मिल सका शायद न्याय पाने के हकदार लोग तब तक रहे न रहें.. फिर यही होगा की न्याय क्यों और किसके लिए.. आपका प्रयास सराहनीय है.......
जवाब देंहटाएंआपका आभार संध्या जी ...आपका कहना सही है ..वो न्याय फिर किस लिए जिसका कोई लाभ न हो .....शुक्रिया
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