गतांक से आगे हमारे देश
में ही नहीं बल्कि दुनिया के परिदृश्य पर अगर दृष्टिपात करें तो स्थितियां
संतोषजनक नहीं है. व्यक्ति का सोच के स्तर पर संकीर्ण होना आने वाले भविष्य के लिए
ही नहीं बल्कि वर्तमान के लिए भी दुखदायी साबित हो रहा है. ऐसी स्थिति में हमारे
सामने कई समस्याएं पैदा हो रहीं हैं, नारी
को मात्र देह समझने की सोच भी इसी का परिणाम है. आज की स्थिति पर अगर गौर करें और
उसी आधार पर भविष्य की कल्पना करें तो सोच कर ही डर लगता है. लेकिन इतना कुछ होने
के बाबजूद हम हैं कि संभलने का ही नाम नहीं ले रहे हैं और दिन प्रतिदिन एक ऐसी
गर्त की तरफ जा रहे हैं जहाँ से मानवीय अस्तित्व के लिए ही खतरा पैदा हो गया है.
हम अपने आस-पास की प्रकृति को
देखें थोडा सा इसे महसूस करें तो हम समझ पायेंगे कि दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं
जिसके दो पहलू न हों. यह पूरी सृष्टि (अंडज, पिंडज,
उतभुज और सेतज) और इसकी सत्ता में कोई ऐसी चीज नहीं जिसका दूसरा
पक्ष न हो, हर एक
चीज के दो पक्ष हैं और एक का दूसरे के साथ अन्योन्यश्रित सम्बन्ध हैं, इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा
सकती. ऐसी स्थिति में मनुष्य के सामने बड़ा प्रश्न पैदा होता है. आये दिन आंकड़े आते
रहते हैं और बताते रहते हैं कि हर दिन कितनी लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता
है. जिसे हम भ्रूण हत्या कहते हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि वहां नारी और
पुरुष दोनों जिम्मेवार हैं. ऐसी स्थिति में नारी ही नारी की दुश्मन हो जाती है.
तथ्य तो चौंकाने वाले हैं और यह हमेशा बदलते रहते हैं, लेकिन
मनुष्य की सोच कब परिवर्तित होगी यह अनिश्चित है. नारी पर सबसे पहला हमला गर्भ में
होने से ही हो जाता है. ऐसी स्थिति में दुनिया कहाँ जा रही है, यह सबसे बड़ा प्रश्न है? मनुष्य की सोच कितनी
संकीर्ण और घृणित हो चुकी है उसकी पराकाष्ठा है, यह भ्रूण ह्त्या. इस सारी
प्रक्रिया में डॉक्टर और स्त्री पुरुष जिम्मेवार हैं. अगर कोई एक भी इस पक्ष में
नहीं होता तो शायद यह नहीं होता. लेकिन सबके स्वार्थ ऐसे हैं कि दिल दहल जाता है.
कुछ अपवादों को अगर छोड़ दिया
जाये तो आज भी लड़की को समाज के लिए बोझ माना जाता है. यह
स्थिति तब है जब हम खुद को आधुनिक और उत्तर आधुनिक मानते हैं. बहुत गहन विश्लेषण के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि मनुष्य आज भी वहीँ खड़ा है जहाँ वह हजारों वर्ष पहले खड़ा था. आज बेशक उसके सामने जीवन जीने के भरपूर विकल्प मौजूद हैं लेकिन सोच के स्तर पर वह बहुत दयनीय स्थिति में है और आये दिन उसकी सोच के भयंकर परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं. इतिहास के परिप्रेक्ष्य में अगर नारी को देखें तो दो बड़ा उदहारण हमारे सामने आते हैं जिनमें नारी के अपमान के कारण पूरी कि पूरी सत्ता और राजपाठ तहस नहस हो गया था. लेकिन कहीं पर वह परिस्थितिजन्य भी था. जो कुछ इतिहास में सीता और द्रौपदी के साथ हुआ वह अकारण भी नहीं था. लकिन जो भी था वह निश्चित रूप से दुखदायी था और उसी आधार पर तत्कालीन समाज और शासन सताओं पर उसका प्रभाव रहा है. वहां तो नारी का अपमान मात्र हुआ था और आज क्या कुछ नारी के साथ हो रहा है यह बड़ा दर्दनाक है.
स्थिति तब है जब हम खुद को आधुनिक और उत्तर आधुनिक मानते हैं. बहुत गहन विश्लेषण के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि मनुष्य आज भी वहीँ खड़ा है जहाँ वह हजारों वर्ष पहले खड़ा था. आज बेशक उसके सामने जीवन जीने के भरपूर विकल्प मौजूद हैं लेकिन सोच के स्तर पर वह बहुत दयनीय स्थिति में है और आये दिन उसकी सोच के भयंकर परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं. इतिहास के परिप्रेक्ष्य में अगर नारी को देखें तो दो बड़ा उदहारण हमारे सामने आते हैं जिनमें नारी के अपमान के कारण पूरी कि पूरी सत्ता और राजपाठ तहस नहस हो गया था. लेकिन कहीं पर वह परिस्थितिजन्य भी था. जो कुछ इतिहास में सीता और द्रौपदी के साथ हुआ वह अकारण भी नहीं था. लकिन जो भी था वह निश्चित रूप से दुखदायी था और उसी आधार पर तत्कालीन समाज और शासन सताओं पर उसका प्रभाव रहा है. वहां तो नारी का अपमान मात्र हुआ था और आज क्या कुछ नारी के साथ हो रहा है यह बड़ा दर्दनाक है.
हमारे देश में ही नहीं बल्कि
संसार भर में वेद सबसे प्राचीन माने जाते हैं, और
वैदिक संस्कृति के आधार पर ही हम यह मानते हैं कि जहाँ नारियों की पूजा होती है
वहां देवता निवास करते हैं . ऋग्वेद में तो यहाँ तक कहा गया है कि ‘स्त्री ही
ब्रह्मा बभूविथ’ 8/33/19 अर्थात गृहस्थाश्रम में स्त्री ही ब्रह्मा का
स्वरूप है. ऋग्वेद के ही मंडल 1 सूक्त 48 में नारी के स्वरूप का वर्णन किया गया है.
इसमें कहा गया है कि ‘नारी उषा काल के समान सुख देने वाली है’. इसलिए वेदों
के बाद के साहित्य में भी नारी के उज्ज्वल और
प्रेरक रूप की चर्चा हुई है. लेकिन हमें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि उस
समय नारी का चरित्र और जीवन दोनों प्रेरक रहे हैं. आज के सन्दर्भ में उनकी तुलना
नहीं की जा सकती हाँ अगर हम वहां से कुछ प्रेरणा ले सकें तो निश्चित रूप से हमारे
समाज का नक्शा बदल सकता है. लेकिन यह सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है. यथार्थ इससे
कहीं कोसों दूर है. जहाँ तक भारतीय संस्कृति की बात है वहां आज भी कन्या के रूप
में नारी की पूजा का प्रचलन है, लेकिन उसका भी वास्तविक रूप
हमारे सामने नहीं है. बस हम कुछ औपचारिकतावश यह सब कुछ करते हैं और अपने आपको बड़ा
कर्मयोगी सिद्ध करते हैं.
इतिहास और संस्कृति चाहे नारी
के विषय में कुछ कहे हमें उससे आगे बढ़कर अपने परिवेश की तरफ ध्यान देने की जरुरत
है. हम इतिहास को दोहरा नहीं सकते लेकिन संस्कृति का निर्माण तो कर ही सकते हैं.
ऐसी स्थिति में जब हमारे पास एक दूसरे के करीब आने के हजारों विकल्प मौजूद हैं तो
क्योँ न हम इस दिशा में कदम बढ़ाएं. लेकिन आज ऐसा होने के बजाय हम विपरीत दिशा में
आगे बढ़ रहे हैं. आये दिन भ्रूण हत्याएं होती हैं, बलात्कार होते हैं और दहेज़ के नाम पर खरीद फरोख्त होती है. नारी की देह
बिकती है, अस्मिता हर दिन दावं पर लगती है और हम हैं कि अपने
में ही मस्त हैं. समाज का एक तबका ही नहीं बल्कि आज पूरा समाज आज इस गिरफ्त में है.
कोई एक वर्ग नारी पर यह जुल्म नहीं कर रहा है बल्कि राजा से रंक तक सब इसमें शामिल
हैं. शेष अगले अंकों में...!!!
बहुत उम्दा सटीक प्रस्तुति !!! ,
जवाब देंहटाएंRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
आये दिन जो देश में भ्रूण हत्याएं होती है .....मेरा तो यही कथन रहेगा की हम सब को मिल कर ही इस दिशा में कदम बढ़ना होगा !
जवाब देंहटाएं.........पर आज के समय में ये सब असंभव लगता है भ्रूण हत्याएं मुझे नहीं लगता कभी ख़तम होगी ......जब तक समाज जागरूप नहीं होगा .........भ्रूण हत्याएं होती रहेगी !!
बहुत ही सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंविवाह एक ऐसा आयोजन है जो प्राचीन काल से आज तक बोझ की अनुभूति कराता है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र काल में आयी सामाजिक विकृतियाँ आज भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रही है।
जवाब देंहटाएंनारी को अपने शास्त्रों में ऊच स्थान दिया गया है ... पर आज उसे असल जीवन में इस स्थान की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंहमारी इस समस्या का मुख्य कारण ही समाज में जड़ों तक बैठी और सदियों से चली आ रही अवधारणा कि पुरुष नारी से श्रेष्ट है उसकी उपयोगिता समाज में ज्यादा है.
जवाब देंहटाएंहमारी इस समस्या का मुख्य कारण ही समाज में जड़ों तक बैठी और सदियों से चली आ रही अवधारणा कि पुरुष नारी से श्रेष्ट है उसकी उपयोगिता समाज में ज्यादा है.
जवाब देंहटाएंयोनि मात्र नहीं रे मानवी...
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति है सामयिक विषय पर...
बधाई और शुभकामनाएँ
सुन्दर और सटीक आलेख !
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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जो हमारी वर्तमान स्थिति है उसके देखते हुए कमजोर वर्ग जरूर ही अपनी बेटी को जन्मा से पहले मार देना पसंद करेगा क्योंकि समर्थ और असमर्थ की बेटियों में भी फर्क है और सबसे अधिक तो बात है की उसको एक वहशी दरिन्दे की तरह दुष्कर्म कर मार देने की बढती प्रवृत्ति ने बेटियों के माँ बाप को हिला कर रख दिया है . फिर आज तो वह अपने पति या संरक्षक के साथ भी सुरक्षित नहीं रह गयी है तो उसको जन्म से पहले ही ……………।
जवाब देंहटाएंअगला अंक पढ़ कर प्रतिक्रिया देते है
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