दुनिया
जिस रफ़्तार से बदल रही है वह हमारे लिए एक अद्भुत सत्य है. भौतिक संसाधनों का जिस
तरीके से फैलाव आज हम दुनिया में देख रहे हैं वह मनुष्य की प्रगति का सूचक है. इस
पड़ाव पर पहुँचने के लिए मनुष्य ने अपने जीवन के सभी साधनों को समर्पित किया है. मनुष्य
के आज तक के इतिहास पर अगर हम एक निगाह डालें तो हमें यह आसानी से समझ आयेगा कि मनुष्य
ने अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही प्रकृति के रहस्यों को समझने की चेष्टा की
है और अपने जीवन को साधन सम्पन्न बनाने के लिए निरंतर प्रयास किया है. उसके सामने
सबसे बड़ी चुनौती जीवन को समझने की भी रही है. भौतिक साधनों की पूर्ति, उनका
उत्पादन, जीवन में उनकी महत्ता और प्रयोग, विज्ञान और तकनीक के माध्यम से प्रकृति
को अपने अनुकूल बनाने के अलावा मनुष्य के चिन्तन का विषय इस जीवन के पार झाँकने का
भी रहा है, और उसने उसे जीवन की वास्तविकता को समझना कहा है.
जीवन
की इस वास्तविकता को समझने के चक्कर में उसने कई अवधारणाओं को जन्म दिया. कई
सिद्धांत
बनाए, कई मार्गों का निर्माण किया, कई पद्धतियाँ विकसित की और अंततः जिस लक्ष्य को उसने निर्धारित किया उसे उसने मोक्ष (जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति) की संज्ञा दी. ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीवन में चाहे कुछ भी कर ले लेकिन मोक्ष के रास्ते पर चलना उसके लिए अनिवार्य हो गया. ऐसी स्थिति में समाज में उसके लिए कुछ नियम और कायदे बनाये गए. अब दुनिया को अलग-अलग तरीके से विश्लेषित किया जाने लगा. सनातन धर्म से लेकर आज तक जितने भी धर्म, जितनी भी विचारधाराएँ, जितनी भी दार्शनिक अभिव्यक्तियाँ हमारे सामने हैं उन सभी को जब हम गहराई से विश्लेषित करते हैं तो पाते हैं कि इन सभी का लक्ष्य मनुष्य को मोक्ष की तरफ ले जाने का रहा है, और अगर मनुष्य को इस दिशा में बढ़ना होता है तो उसे इस दुनिया और इसके भौतिक साधनों का त्याग करना होगा. बौद्ध और जैन धर्म में हम इस पराकाष्ठा को देख सकते हैं. जहाँ एक साधक के लिए न तो भौतिक जगत के मायने हैं और न ही उन्हें इस जगत से कोई ख़ास सरोकार है. उनके लिए समाज के कोई ख़ास मायने नहीं, शारीरिक सुख सुविधाओं का कोई ज्यादा मोल नहीं. धन संचय का कोई ख़ास स्थान नहीं बस जीवन को चलाने के लिए जो आवश्यक है उससे ही उन्हें जीवन चलाना है और इस जीवन के पार जो कुछ है उसे पाने का प्रयास इस जीवन के रहते हुए करना है.
बनाए, कई मार्गों का निर्माण किया, कई पद्धतियाँ विकसित की और अंततः जिस लक्ष्य को उसने निर्धारित किया उसे उसने मोक्ष (जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति) की संज्ञा दी. ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीवन में चाहे कुछ भी कर ले लेकिन मोक्ष के रास्ते पर चलना उसके लिए अनिवार्य हो गया. ऐसी स्थिति में समाज में उसके लिए कुछ नियम और कायदे बनाये गए. अब दुनिया को अलग-अलग तरीके से विश्लेषित किया जाने लगा. सनातन धर्म से लेकर आज तक जितने भी धर्म, जितनी भी विचारधाराएँ, जितनी भी दार्शनिक अभिव्यक्तियाँ हमारे सामने हैं उन सभी को जब हम गहराई से विश्लेषित करते हैं तो पाते हैं कि इन सभी का लक्ष्य मनुष्य को मोक्ष की तरफ ले जाने का रहा है, और अगर मनुष्य को इस दिशा में बढ़ना होता है तो उसे इस दुनिया और इसके भौतिक साधनों का त्याग करना होगा. बौद्ध और जैन धर्म में हम इस पराकाष्ठा को देख सकते हैं. जहाँ एक साधक के लिए न तो भौतिक जगत के मायने हैं और न ही उन्हें इस जगत से कोई ख़ास सरोकार है. उनके लिए समाज के कोई ख़ास मायने नहीं, शारीरिक सुख सुविधाओं का कोई ज्यादा मोल नहीं. धन संचय का कोई ख़ास स्थान नहीं बस जीवन को चलाने के लिए जो आवश्यक है उससे ही उन्हें जीवन चलाना है और इस जीवन के पार जो कुछ है उसे पाने का प्रयास इस जीवन के रहते हुए करना है.
इस
सबको करने के लिए मनुष्य की एक ख़ास मानसिकता तैयार की जाती है, उसे ऐसा वातावरण
प्रदान किया जाता है और अंततः वह इस दिशा में सर्वस्व अर्पित करते हुए आगे बढ़ता है.
मोक्ष को प्राप्त करने की दिशा में अनेक प्रयास वह करता है और जीवन के रहते हुए वह
इस शरीर को, इसकी मूलभूत आवश्यकताओं को और अपनी इच्छाओं की परवाह किये वगैर आगे
बढ़ता है और यही सोचता है कि इस जीवन के न रहने के बाद उसे जो कुछ भी मिलेगा वह
उसके लिए सुखद होगा और वहां पहुँच कर वह उन सभी तमाम सुख सुविधाओं का उपभोग करेगा
जो मनुष्य जन्म में उसकी साधना और तपस्या के बल पर उसे मिलेंगी. कमोबेश हर धर्म के
मूल में यह बात प्रचलित है और इसलिए कुछ लोग जन्म के बाद ही उस दिशा में बढ़ते हैं
और अपने जीवन को किसी ख़ास विचारधारा, जीवन पद्धति, फिर किसी गुरु के हवाले करके
अपने आप को मोक्ष के हकदार मान बैठते हैं और उनके जीवन की हर गतिविधि, हर कर्म उसी
अनुरूप होता है, यदा-कदा वह अपने गुरु के माध्यम से ईश्वर साक्षात्कार की बात भी करते हैं और खुद को आनन्द
से सराबोर कहते हुए दूसरों को भी इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं, और जो
उनका गुरु होता है वह किसी मनुष्य के उससे जोड़ने और जुड़ने को सबसे बड़ा कर्म मानता
है.
यह
क्रम न जाने कब से चला आ रहा है और संसार के लोग इन सब गतिविधियों में न जाने कब
से शामिल हैं और आज के सन्दर्भ में अगर हम देखें तो ऐसी संस्थाओं और मोक्ष की
प्राप्ति करने और करवाने वालों की बाढ़ सी आ गयी है. हर चौराहे पर एक ऐसी दुकान जरुर
होगी जहाँ से आप अपने मोक्ष जाने का रास्ता पूछ सकते हैं और उस दुकान के नियमित ग्राहक
बनकर आप अपनी आने वाली सात पीढ़ियों का कल्याण कर सकते हैं. बस इसी चक्कर में लोग
दिन रात भाग दौड़ कर रहे हैं और उनका मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस बात को पहुंचाने
का रहता है कि जिस तरह से हमने अपने मोक्ष का रास्ता पक्का कर लिया है उसी तरह तुम
भी अपने मोक्ष का रास्ता पक्का कर लो. यह दुनिया कुछ भी नहीं है, जो कुछ इस दुनिया
में है वह सब तो यहीं रह जाएगा, हम क्या लाये थे और क्या हमें लेकर जाना है. बस हम
अच्छे कर्म करें और आगे के रास्ते को सुगम बना लें. नहीं तो आगे का मार्ग बहुत
कठिन है, वहां बहुत यातनाएं मिलती है और उन यातनाओं के बारे में जानकारी देने के
लिए एक विशेष प्रकार का साहित्य तैयार किया गया है, जिसके उदहारण देकर व्यक्ति को
यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि इस जीवन के बाद का मार्ग कैसा है और तुम्हें
वहां से बचने के लिए क्या-क्या करना है. तुम उस मार्ग पर जाओ ही नहीं इसके इंतजाम
तुम्हें इस जीवन में रहते हुए करने होंगे. ऐसे माहौल में व्यक्ति अपने जीवन का
महत्वपूर्ण हिस्सा ऐसे कामों में लगता है जिसका उसके जीवन से कोई खास सरोकार नहीं
होता. वह अपने अगले जीवन को सुखद बनाने के चक्कर में इस जीवन को ही स्वाहा कर देता
है.
ऐसी
स्थिति में हमें क्या करना चाहिए. यह एक बड़ा प्रश्न है. हमारे समाज की व्यवस्था ही
कुछ ऐसी बन गयी है कि अब हमें इन सब भ्रमों से निकलने के रास्ते तलाशने चाहिए.
हालाँकि व्यक्तिगत रूप से न तो मैं किसी विचारधारा का विरोध करता हूँ और न ही मुझे
ऐसा करने का कोई अधिकार है. लेकिन जब समाज में मानवीय मूल्यों के विपरीत कुछ भी देखता
हूँ तो एक पीड़ा का अनुभव होता है, एक टीस मन में पैदा होती है. एक दर्द उठता है और
फिर जीवन की वास्तविकता को समझने का सिलसिला शुरू होता है .....शेष अगले अंकों में ....!!!!
हर संवेदनशील मन की टीस लिए है आपका चिंतन ..... सार्थक पोस्ट
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जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन धरती को बचाओ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
काश कि सब ऐसा ही सोचें। तब शरीर और िस संपूर्ण जग की मिथ्यता का विश्वास हो ही जायेगा।
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