एक दिन
मैं अपने मित्र से बात कर रहा था. बातों-बातों में बात प्रेम के विषय तक आ पहुंची.
बात-बात में मैंने महसूस किया कि वह अपने प्रेम को लेकर संशय की स्थिति में है. वह
अपने प्रेम के अनुभवों और भविष्य की स्थितियों को लेकर बहुत असमंजस में था. उसे लग
रहा था कि कहीं वह उसे खो न दे, जिसे उसने बड़ी शिद्दत से पाया है. उसके मन में कई तरह के प्रश्न थे. मैंने
उसे सलाह दी कि प्रेम के गणित में 1 और 1 का जबाब 1 ही होता है. मेरी बात सुनकर वह
हंसा और मेरा मजाक बनाते हुए वहां से चल दिया. उसे लगा शायद मैं उसकी इस हरकत पर
बुरा मान जाऊंगा या फिर अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश करूँगा. उसके हाव-भाव
से यह भी लग रहा था कि मैं किसी दिन अपने इस तर्क से पीछे हट जाऊंगा और उसे यह कह
दूंगा कि मैं तो मजाक कर रहा था.
गणित के नियम के अनुसार जब हम 1+1 करते हैं तो स्वाभाविक सी बात है कि उसका उत्तर 2 होता है. यह बात
तो एक सामान्य सी बुद्धि का व्यक्ति भी समझ सकता है. लेकिन जब भी वह मुझसे प्रेम
के विषय में पूछता तो मैं अन्त में उसे यह जरुर कहता कि जीवन में स्थिति चाहे जैसी
भी हो, लोग चाहे जैसे भी हों, वह कुछ भी कर लें, लेकिन उन्हें प्रेम की कमी
महसूस होती ही है. जीवन में प्रेम का कोई विकल्प नहीं है. ‘प्रेम’ जीवन का वह अहसास है जिसका होना ही जीवन
के मायने बदल देता है. मेरी इस बात पर उसकी प्रतिक्रिया उसके मन की स्थिति
के हिसाब से होती, जब वह खुश होता तो वह वाह-वाह
करता, लेकिन अगर थोड़ी सी भी कहीं कोई किन्तु-परन्तु हो
तो वह सिरे से नकार देता कि जीवन में प्यार-व्यार कुछ नहीं होता. सब अपने मतलब से
किसी से जुड़ते हैं, उनका अपना कोई ख़ास मकसद होता है. जब
उनका मकसद पूरा हो जाता है तो वह किसी को किनारे करके किसी और मंजिल का रुख कर
लेते हैं, ऐसे में एक संवेदनशील व्यक्ति अपने जीवन और
मौत के बीच जूझता रहता है. ऐसी कई बातें थी जो वह मुझसे किया करता था. लेकिन उसे
ख़ास दिलचस्पी इसी बात को समझने में थी कि 1+1=1 कैसे
हो सकता है.
मैं उसे
कई दिन टालता रहा, लेकिन
उसे यही समझना था कि प्रेम का गणित कैसे, सामान्य गणित
से अलग हो सकता है. जहाँ प्रेम है वहां गणित का प्रश्न ही कहाँ पैदा होता है. वहां
तो भाव हैं, अनुभूति है, चाहत
है, एक दूसरे के लिए मर मिटने के अरमान हैं. ऐसी कई
बातें हैं जिन्हें हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं, उन्हें
कहना मुश्किल लगता है. उसकी बातों और व्यवहार का यह अन्तर उसके प्रेम पर और भी
सन्देह पैदा करता था. प्रेम में आदर्श स्थिति किसी हद तक सही हो सकती है, कल्पना की ऊँची उड़ान भी वहां है, साथ जीने और
साथ चलने के वादे भी हैं, लेकिन यह प्रेम के प्रारम्भिक
चिन्ह हैं, यह प्रेम के अंकुरण के संकेत हैं. बीज के
प्रस्फुटित होने की निशानियाँ हैं. हो सकता है कि आगे चलकर यह अंकुर फल तक पहुंचे
ही न, तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? मैं जब भी उससे यह प्रश्न करता तो उसके लिए प्रेम किसी अबूझ पहेलो जैसा हो
जाता. इस बात पर तो उसे और भी चिढ़ आती, जब मैं यह कहता
कि प्रेम करने का नाम नहीं, प्रेम होने का नाम है.
प्रेम में संसार (जाति-धर्म-वर्ण-आश्रम-अमीरी-गरीबी-रंग-रूप आदि) कहीं नहीं है, प्रेम में सिर्फ प्रेम ही है, ‘सिर्फ और सिर्फ प्रेम’. प्रेम जीवन में एक क्रान्ति है, जो होती तो
कहीं भीतर घटित है, लेकिन उसका प्रभाव व्यक्ति के पूरे
जीवन में देखा जा सकता है. प्रेम रूपी क्रान्ति सभी सीमाओं को तोड़ने की क्षमता
रखती है. प्रेम को परिभाषित करना और उसे शब्दों में बांधना बहुत कठिन है.
प्रेम
के विषय में यह सब बातें सुनकर वह अपने को टटोलने की कोशिश करता कि क्या सच में
प्रेम एक ‘क्रान्ति’ का नाम है, जो ‘भीतर’ ही ‘भीतर’ घटित होती है. जो आखों से उतर कर रूह के
धरातल पर अवस्थित होती है. जो जिस्म के बन्धन की अपेक्षा हृदय के स्तर पर बंधी
होती है. जो तर्क की अपेक्षा सहजता को स्वीकार करती है. वह मेरी बातों में उलझता
जा रहा था. पहले प्रेम का गणित और अब प्रेम एक ‘क्रान्ति’, आँखें और रूह, आखिर यह माजरा क्या है? वह तो अभी तक यही सोच रहा था कि प्रेम की यात्रा तो आखों से होते हुए शरीर
के एक ख़ास हिस्से पर पहुँच कर ख़त्म हो जाती है और उसके बाद प्रेम ठहर जाता है. वह
एक सामान्य जीवन की और अग्रसर होता है, वह सामाजिक और
पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाता है, और फिर एक सीमा
पर आकर प्रेम रूपी यह अहसास समाप्त भी हो जाता है. प्रेम का मतलब उसके लिए सिर्फ
इतना ही है कि किसी ख़ास इनसान को अपने करीब लाओ, उसे
अपना बनाओ और फिर उसके साथ जीवन गुजारने के बारे में सोचो. घर-गृहस्थी बसाओ और मौज
उड़ाओ, इससे ज्यादा और क्या चाहिए होता है जिन्दगी में.
लेकिन मेरी बातें सुनकर वह परेशान हो जाता. उसे अपनी योजनायें बेकार लगने लगती, जो कुछ उसने अभी तक सोचा है, मेरे सामने वह सब
निरर्थक हो जाता. बचता तो सिर्फ एक आधा-अधूरा शब्द ‘प्रेम’ जिसका वह मतलब भी सही तरीके से नहीं समझ पाया था, और उसने कभी उसे समझने की कोशिश ही नहीं की. उसके लिए प्रेम सिर्फ दो
लोगों का मिलन है, बस इसके सिवा और कुछ नहीं.
लेकिन दो से एक होने के मायने और एक और एक होने के मायने बहुत अलग
हैं. मैं उसे यही बात समझाने की कोशिश करता, लेकिन उसे लगता कि प्रेम में सिद्धान्त का क्या काम, वहां तो मौज मस्ती है, घूमना फिरना है, गप्पें मारना है, मिलना जुलना है और फिर एक
उम्र के बाद शादी के बन्धन में बंधकर आगे का नीरस जीवन जीना है. जहाँ खुद को
जिम्मेवारियों के हवाले करना है और परिवार और समाज को संभालना है. ....शेष अगले अंक में..!!
वास्तव मे प्रेम मे दो ' एक हो जाते है ।
जवाब देंहटाएंSeetamni. blogspot. in
प्रेम को समझना आसाँ नहीं...तभी तो कबीरा कह गए :
जवाब देंहटाएंप्रेम गली अति साँकरी, ता में दो न समाय.... जा घट प्रेम न संचरै सी घट जान समान
बहुत सुन्दर
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुष्टिकरण के लिए देश-हित से खिलवाड़ उचित नहीं - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंprem ka ganit samjhana itana asaan bhi nahi ..badiya post
जवाब देंहटाएंachha likha hai apne, aap is blog ki writing me Book me convert krna chahte hai to apni request send kre,
जवाब देंहटाएंE-book Publishing Online
गणित का सूत्र लागू नही होता। यदि है तो अपवाद स्वरूप।
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