वर्षों पहले
पहाड़
दुर्गम था,
दूर होना कोई
प्रश्न नहीं था?
था तो पहाड़
का दुर्गम होना.
सोचता था.....
कभी पहाड़ की
चोटी तक पहुंचा तो
छू लूँगा
आसमान
हालाँकि यह
भी भान था कि
पहाड़
होता है वीरान.
फिर भी पहाड़
मुझे
खींचता था
अपनी ओर
या कभी ऐसा
भी हुआ
मैं खुद ही
खिंच गया
पहाड़ की और.......
मेरे और पहाड़
के बीच का फासला
सिर्फ भौतिक
ही नहीं था
कई बजहें थी
उस फासले की
फिर भी..!!
मैं पहाड़ की
चोटी तक पहुंचना चाहता था
आसमान छूना
चाहता था
चाँद-तारों
का संग पाना चाहता था.
मैं प्राणी
तो धरती का हूँ
लेकिन मेरे
लक्ष्य में हमेशा
यात्रा आसमान
की रही है
धरती की भीड़
से कहीं दूर
एक तलाश कहीं
वीरान की रही है
मेरे सामने
पहाड़ था
मैंने उसका
चुनाव किया
लेकिन पहाड़
की चोटी तक पहुंचना
बहुत
दुर्गम था
मैं पहाड़ को
देखता
तो सकूं महसूस
करता
धरती की बंदिशें
और दीवारें
मेरी राह में
रोड़ा थी
बाहर जितनी
दीवारें थीं
उससे कहीं
अधिक
मनुष्य मन
में लिए फिरता
वह हर पल एक
नयी दीवार
अपनी हिफाजत
के लिए
करता है तैयार
सोचता था,
पहाड़ पर नहीं होगी कोई दीवार
वहां से
करूँगा मैं इस धरा का दीदार
लेकिन...पहाड़
पर पहुंचना मुश्किल था
एक दिन मैं
बढ़ चला अपनी मंजिल की तरफ
सोच लिया
मैंने
क्या है पहाड़
के उस तरफ?
जो मुझे खींच
रहा है
अपने विचारों,
प्रेरणाओं से सींच रहा है
मैं देख रहा
था धरती के हालात
यहाँ सभ्य
कहलाने वाला ही कर रहा था
सबसे ज्यादा
खुरापात
उसके मंसूबे
हैं बड़े डरावने
वह मिटा देना
चाहता है
अस्तित्व ही
धरा के मनुष्य का
सिर्फ
अपने अहम् की तुष्टि के लिए
मेरे कदम अब
रुके नहीं रुक रहे थे
मैं पहाड़ की
ऊंचाई को छूना चाहता था
पहुँच गया
मैं
एक दिन पहाड़
की ऊंचाई पर
देख ली मैंने
दुनिया
जैसी मैं
देखना चाहता था
दुनिया वही
थी, लोग वही थे
लेकिन
मेरी नजर बदल गयी
मैं दुनिया
को पहाड़ से देख रहा था अब
कभी में
दुनिया से पहाड़ देखा करता था
लेकिन दुनिया
अब भी मुझे वैसी ही लग रही थी
बहुत गहरे
में जाकर सोचा
दुनिया बदल
सकती है
लेकिन उसके
लिए स्थान बदलने से जरुरी है
खुद के विचार
को बदलना
खुद को खुदगर्जियों
से दूर रखना
पहाड़ पर
पहुँच कर
मैंने कविता
की भाषा में
खुद से संवाद
किया
वीराने में
भी व्यक्ति अशांत हो सकता है
और भीड़ में
भी ‘शान्ति’ से रहा जा सकता है
पूरी दुनिया
विचार से चलती है
और विचार
भीतर की उपज है
पहाड़ की चोटी
पर जाकर देखा
आसमान है ही
नहीं
मैंने खुद को
समझाया
जीवन यथार्थ
है,
विचार को
बदलोगे तो
दुनिया में
श्रेष्ठ बन जाओगे
सब देखेंगे तुम्हारी
तरफ
देखते हैं
जैसे
अँधेरे में
जलते दीये की तरफ.
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवीराने में भी व्यक्ति अशांत हो सकता है
जवाब देंहटाएंऔर भीड़ में भी ‘शान्ति’ से रहा जा सकता है
..
विचार को बदलोगे तो
दुनिया में श्रेष्ठ बन जाओगे
..बहुत सही कहा आपने ... विचार नहीं तो मुर्दा है इंसान, सुनसान है पहाड़ ..
वाह क्या बात है...मैंने कविता की भाषा में खुद से संवाद किया,बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कुम्हार की चाक, धनतेरस और शहीदों का दीया “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
दीप पर्व दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं। ... पहाड़ पर कविता पहाड़ी सोच लिए है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की शुभकामनाएं !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया कविता. आप की लेखनी में दम है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
आपकी कलम और बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंनीरवता में भी विचार वीथिका की तन्द्रा भंग होती रही!!
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