18 फ़रवरी 2017

रूढ़ियाँ-समाज और युवाओं की जिम्मेवारी...3

गत अंक से आगे....मैं जहाँ तक समझ पाया हूँ कि दुनिया को बदलने का प्रयास करने से पहले हम खुद को बदलने का प्रयास करें. जब एक-एक करके हर कोई खुद को मानवीय भावनाओं के अनुरूप ढालने का प्रयास करेगा तो दुनिया का स्वरुप स्वतः ही बदल जायेगा. लेकिन आज तक जितने भी प्रयास हुए हैं उनका स्तर उपदेशात्मक ही रहा है. वास्तविक प्रयास बहुत कम हुए हैं. हालाँकि इस धरती पर बहुत से महापुरुष-गुरु-पीर-पैगम्बर और समाज सुधारक पैदा हुए हैं, जिन्होंने मानव को मानवीय पहलूओं के विषय में बताने की कोशिश की है. साथ ही यह भी प्रयास किया है कि हर कोई अपने वास्तविक स्वरूप को समझकर अपने जीवन को दूसरों के भले के लिए अर्पित कर दे. लेकिन ऐसा हो कहाँ पा रहा है, आज के भौतिकवादी दौर में अधिकतर लोग भौतिक सुखों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ ने पूरे समाज के परिदृश्य को बदलकर रख दिया है. ऐसे में युवाओं को अतीत से अनुभव लेकर, वर्तमान में अपने विचारों और कर्म में परिवर्तन करते हुए भविष्य के लिए एक सुन्दर से संसार की नींव रखनी चाहिए. हमें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि इनसान चाहे जिनती भी भौतिक उन्नति कर ले, अन्ततः उसे मनुष्य के साथ की जरुरत ही पड़ती है. मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम और सहयोग का भाव ही ऐसा भाव है जो इस भौतिक उन्नति की प्रासंगिकता को और बढ़ा सकता है. जब तक मनुष्य का मनुष्य के प्रति प्रेम और सहयोग का भाव नहीं होगा तब तक हम इस भौतिक और वैज्ञानिक उन्नति से कोई ख़ास लाभ नहीं ले सकते. ऐसे में युवाओं को थोडा चिन्तन-मनन कर आगे बढ़ने की जरुरत है. उसके लिए सबसे पहले उन्हें समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेवारी को समझना होगा और देश और दुनिया के परिदृश्य को बदलने के लिए गम्भीर और जिम्मेवार प्रयास की तरफ कदम बढ़ाना होगा. कुछ बिन्दु ऐसे हैं जिन पर अगर हम थोडा चिन्तन मनन करें तो दुनिया को बदलने में युवाओं की भूमिका को रेखांकित किया जा सकता है.
     1.   अपने अस्तित्व के विषय में विचार करें: हम दुनिया में तमाम तरह की उपलब्धियां अर्जित करने का प्रयास करते हैं. बचपन से लेकर मृत्यु तक हम कुछ न कुछ ऐसा अर्जित करने के विषय में सोचते रहते हैं जिससे हमारे यश-मान-सम्मान में वृद्धि होती रहे. दुनिया के बीच में नाम होता रहेहम जहाँ भी जाएँ लोग हमें एकदम पहचान लेंऔर ऐसा भी प्रयास मनुष्य का रहा है कि मृत्यु के उपरान्त भी लोग उसे याद करते रहें. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि मनुष्य शरीर और शरीर के बाद भी अमर होने के लिए प्रयत्नशील रहा है. किसी हद तक यह बात सही भी लगती है कि मनुष्य को भाग्य के बजाय पुरुषार्थ को महत्व देना चाहिए और अपने जीवन काल में जितना वह कर्म कर सकता है करना चाहिए. लेकिन ऐसा कोई भी कर्म नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों का नुकसान हो. हमारे आगे बढ़ने की दौड़ में कई बार हम अपने साथियों का ही अहित कर देते हैं तो फिर वैसी उपलब्धि का क्या लाभजिसे दूसरों के हक़ मार कर हासिल किया गया हो. यही वह प्रश्न है जो हमें अपने अस्तित्व के विषय में सोचने के लिए मजबूर करता है. अपने कॉलेज के दिनों में मैं एक वाक्य अपनी हर नोटबुक के पहले पन्ने पर लिखा करता था. After all what we are, what is our entity, when we see the universe, where we stand. यह वाक्य मुझे हमेशा आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करता रहता. हम क्या हैंयह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर मनुष्य सोचना शुरू करे तो उसके जीवन की कई उलझने तो स्वतः ही समाप्त हो जाएँलेकिन मनुष्य है कि कभी वह इस प्रश्न पर विचार ही नहीं करता. इसलिए युवाओं को कुछ भी करने से पहलेसंसार की तमाम उपलब्धियों की तरफ बढ़ने से पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि उनका अस्तित्व क्या है इस संसार मेंमैं इस प्रश्न का जबाब नहीं दूंगा आप स्वयं सोच लेनाक्योँकि मैं आपको किसी दायरे में नहीं बांधना चाहता कि आप यह हैंआप वो हैंजो कि अब तक होता आया है. लेकिन मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि आप दुनिया में आगे जरुर बढ़ेंजो अरमान आपके हैंउनको पूरा करने के लिए बिलकुल प्रयास करेंलेकिन इतना जरुर सोचें कि आखिर यह सब किया किस लिए जा रहा है और आपको वास्तविक रूप में इससे क्या लाभ होने वाला है.
 2.   जाति के प्रश्न पर तर्क के साथ सोचें: आज दुनिया इतनी आगे बढ़ चुकी है कि कहीं से भी नहीं लगता है कि हमें जाति जैसे प्रश्न पर विचार करने की जरुरत है. लेकिन वास्तविकता वह नहीं है जो हमें दिखाई दे रही है. वास्तविकता यह है कि मनुष्य से मनुष्य के बीच में शरीर की खाई बेशक न होलेकिन मन के स्तर पर मनुष्य से मनुष्य के बीच में गहरी खाई व्याप्त हैऔर यह खाई ऐसी है जिसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि यह कितनी गहरी है और कितनी दर्दनाक है. जाति का प्रश्न ऐसा प्रश्न है जो मनुष्य के जन्म के साथ ही उसके साथ जुड़ जाता है और इसका प्रभाव इतना व्यापक है कि ताउम्र मनुष्य इस प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाता. हालाँकि ऐसा नहीं है कि जाति के प्रश्न पर आज तक विचार नहीं किया गयाइस प्रश्न विचार किया गया हैकई सामाजिक आन्दोलन हुए हैंबहुत कुछ लिखा गया हैलेकिन फिर भी जाति का जिन्न ऐसा है कि यह अन्दर ही अन्दर अपना विकास करता रहता है और समय आने पर अपना रूप दिखा देता है. मुझे लगता है कि मनुष्य से मनुष्य को दूर करने का सबसे बड़ा उपकरण जाति व्यवस्था के रूप में समाज में ऐसा पल्लवित-पुष्पित किया गया है कि इससे बाहर कोई आना ही नहीं चाहता. लेकिन जाति का बजूद क्या हैइस पर कोई तार्किक उत्तर भी नहीं मिल पाता. भारत के विषय में तो यहाँ तक कहा गया है कि यहाँ कि सबसे छोटी समझे जाने वाली जाति भी अपने से छोटी जाति ढूंढ लेती है. ऐसी स्थिति में समाज में विघटन की स्थिति पैदा होती रही है. जाति की यह व्यवस्था किसी एक देश में ही व्याप्त नहीं हैकमोवेश इसकी उपस्थिति दुनिया के हिस्से में है. लेकिन हमारे देश में तो यह इतनी विकराल रूप से व्याप्त है कि हम जितनी जल्दी इस जाति से छुटकारा पा लेंउतना ही हमारे लिए अच्छा है. क्योँकि आज जितनी भी विसंगतियां हमारे समाज में मौजूद हैंउनके मूल में जाति एक बड़ा आधार है. जब हम इस प्रश्न पर तर्क के साथ सोचेंगे तो हमें समझ आएगा कि जाति का अस्तित्व सिर्फ मानसिक हैइसका कोई वैज्ञानिक और तार्किक आधार नहीं है. हमें जितनी जल्दी या बात समझ आएगी उतना ही हमारे लिए भी यह अच्छा होगा. यूवाओं से यह अपेक्षा है कि वह इस रूढ़ि को समाज से उखाड़ फैंकने के लिए प्रयास करे. शेष अगले अंक में..!!! 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंलवार (21-02-2017) को
    सो जा चादर तान के, रविकर दिया जवाब; (चर्चामंच 2596)
    पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. विचारणीय प्रस्तुति ...

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.