आज कल आभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के बारे में सोचना थोड़ा अजीब
सा लगता है. पर जैसे-जैसे हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं, वैसे
ही हमें अपनी आभिव्यक्ति के बारे में भी सोचना
होगा. कुछ कहने का मतलब यह नहीं कि हम सब कुछ सही कह रहे हैं,
आज के परिवेश में सबसे बड़ी बात यह है कि हम कुछ कहने से पहले कुछ
सोचने की जरुरत भी नहीं समझते, जो मुंह में आता है उसे उसी रूप में कह देते हैं.
परिणामस्वरूप हमें कई बार अपनी कही गयी बातों के लिए ही सफाई देनी पड़ती है. इसलिए हम अपने
शब्दों की महता को समझें, और एक सभ्य समाज के व्यक्ति कहलाने
का प्रयास करें.
kewal ji its very nice to come from your 100th post to first post, really your starting is very nice. very great message you tried to communicate.
जवाब देंहटाएंi wish you touch the height of writing...