25 सितंबर 2010

आसान नहीं

उसे चाहकर भूलना इतना आसान नहीं
मैं उसे भूल जाऊं, इस बात से वो अनजान नहीं
 

उसकी चाहत में मैंने, देखी नहीं कभी रात
चाँद था वो जमीं पर, मेरा अरमान नहीं

हुई नहीं कभी खता, इश्क में उनके मुझसे
सजा वो इतनी देगा,मन मेरा शैतान नहीं

क्योँ खुदा समझकर उसे मैंने पूजा
?             
शख्स था वो मेरे लिए, मेरा भगवान नहीं

बात दिल की दिल से ना आई जुबां तक
प्यार था वो मेरा, इम्तिहान नहीं

लगा ही कभी नहीं कि छोड़ जायेंगे वो मुझे
थी मतलबपरस्ती उनकी, वो मेरा कद्रदान नहीं

इश्क में उनके हमने, खुद को क्या से क्या बना दिया
खिलौना थे हम उनके लिए, हम इंसान नहीं

उन्हें भूलने कि बात सोचकर रह जाते हैं ठगे से
सच्चा है दिल में जज्बा
,मेरा मन बेईमान नहीं

13 टिप्‍पणियां:

  1. इश्क में उनके हमने, खुद को क्या से क्या बना दिया
    खिलौना थे हम उनके लिए, हम इंसान नहीं
    उन्हें भूलने कि बात सोचकर रह जाते हैं ठगे से
    सच्चा है दिल में जज्बा ,मेरा मन बेईमान नहीं
    ....pyar kee raah sach mein aasaan nahi hoti...
    bahut sundar prastuti...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति|धन्यवाद|

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  3. इश्क में उनके हमने, खुद को क्या से क्या बना दिया
    खिलौना थे हम उनके लिए, हम इंसान नहीं

    उन्हें भूलने कि बात सोचकर रह जाते हैं ठगे से
    सच्चा है दिल में जज्बा ,मेरा मन बेईमान नहीं

    बहुत खूब ......!!

    इसक ने हमको निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी थे आदमी काम के .....हा....हा....हा....!!

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  4. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......

    पढ़िए और मुस्कुराइए :-
    जब रोहन पंहुचा संता के घर ...

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  5. बहुत कुछ याद दिला दिया जी आपकी इस रचना ने और मेरे ख्याल से बहुतों की यादें ताजी हो जायेंगी।
    बस इतना ही कह सकता हूँ कि एक युवा मन की बेहतरीन अभिव्यक्ति है।
    जिसने किसी को भीतर ही भीतर टूटकर चाहा पर कह ना पाया।
    जो पूजा करता है तो विछोह होने पर तोहमतें भी लगा देता है, बिना उसकी मजबूरियां जानें।

    प्रणाम

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  6. इश्क में धोखा ही क्यों मिलता है ...एक को इतना इंतज़ार और दूसरे को कोई परवाह ही नहीं

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.