एक बार मेरे अनुरोध पर
तुम चलो मयखाने में
फिर देखना .......
क्या मजा आता है,
पीने और पिलाने में ।
वहां ना कोई साजिश
ना कोई भेदभाव
ना कोई नफरत की दीवार
जितनी पीयेंगे
उतना खुमार ,उतना प्यार ।
.. इस नफरत की दुनिया की चीजों से
तो बेहतर है, मेरे दोस्तो...!
मयखाने का शराब और सिगार
तुम चलो मेरे अनुरोध पर एक बार ।
वहां हम ना जाति की बात करेंगे
ना होगा भाषा की भिन्नता पर विचार
ना होगी सीमाओं की बातें
ना नफरत,ना तकरार...
मेरे मयखाने की मेज पर
तुम नजर टिकाना, एक बार
उसकी चमकीली तह तुम्हें बता देगी
समता...को समझता है समझदार
उसके चारों तरफ की कुर्सियां ,
कर देंगी मिलकर रहने का इजहार ।
तुम मयखाने में
बेशक खूब मत पीना
ना ही पिलाना
बस एक बार
तुम महसूस करना
मयखाने का संसार
वहां हम ना जाति की बात करेंगे
जवाब देंहटाएंना होगा भाषा की भिन्नता पर विचार
ना होगी सीमाओं की बातें
ना नफरत ,ना तकरार.
.
केवल जी आप के सोंच बहुत अच्छी है...
... क्या मजा आता है, पीने और पिलाने में ।
जवाब देंहटाएं,,,,,,,बढ़िया अंदाज़ है..जमे रहें.
केवल भाई
जवाब देंहटाएंकैसे लिख जाते हो यार ऐसा सब..........
केवल राम जी बढ़िया लगी ये मधुशाला भी |
जवाब देंहटाएं"वहां हम ना जाति की बात करेंगे
जवाब देंहटाएंना होगा भाषा की भिन्नता पर विचार
ना होगी सीमाओं की बातें
ना नफरत ,ना तकरार"
सुन्दर रचना!
मेरी भी कुछ पंक्तिया हैं-
"अभी भी वक्त है जी ले,
मेरे कहने से ही सही,
आज फिर थोड़ी सी पी ले"
आपका साधुवाद.
अति सुंदर कृति!...बहुत बढिया,,,,
जवाब देंहटाएंनई मधुशाला रच रहे हैं आप... सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंना कोई भेदभाव
जवाब देंहटाएंना कोई नफरत की दीवार
जितनी पीयेंगे
उतना खुमार ,उतना प्यार
sunder ahsas
"वहां हम ना जाति की बात करेंगे
जवाब देंहटाएंना होगा भाषा की भिन्नता पर विचार
ना होगी सीमाओं की बातें
ना नफरत ,ना तकरार"
बहुत खूब .....
राह पकड़ कर एक चला चल पा जायेगा मधुशाला ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...पर मयखाने के साथ सहमति नहीं ...
चलो कोई तो जगह है जहाँ सदभावना आज भी है
जवाब देंहटाएंजहाँ भेदभाव नही है
काश हर कोई एक बार जाये इस मयखाने में
तो शायद नफरत मिट जाये इस जमाने मे
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - देखें - 'मूर्ख' को भारत सरकार सम्मानित करेगी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
सुन्दर भाव ,अच्छी कविता..
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच्ची बात कही आप ने अपनी इस सुंदर रचना मे धन्यवाद
जवाब देंहटाएंbahot khoob, keval bhai! sahi hai
जवाब देंहटाएंमयखाने का शराब और सिगार
जवाब देंहटाएंतुम चलो मेरे अनुरोध पर एक बार ।
वहां हम ना जाति की बात करेंगे
ना होगा भाषा की भिन्नता पर विचार
ना होगी सीमाओं की बातें
ना नफरत ,ना तकरार
कहा तो सही आपने मगर वहां जाने के लिए प्रेरित न करें. शराब से लोग दूर ही रहें तो ही ठीक है.
बहुत बढिया लिखा .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंएक बार मेरे अनुरोध पर
जवाब देंहटाएंतुम चलो मयखाने में
फिर देखना .......
क्या मजा आता है,
पीने और पिलाने में ।
Oh Kewal darling...what an awesome poetry? keep it up...love u darling n take care
Munni Badnam
मयखाने के नाम पर ही सही लेकिन एकजुटता के लिए प्रेरित करती प्रस्तुती......आज ऐसी ही भावना की जरूरत है ....
जवाब देंहटाएंकविता के भाव अच्छे हैं मगर मयखाना ही क्यों? कोई और जगह होती । मयखाने का समर्थन नही।
जवाब देंहटाएंचलो यार, चलते हैं:)
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह...
जवाब देंहटाएंवक बार फ़िर से bar की तारीफ हो गयी..
"मधुशाला" याद आ गयी...
ye hai maiqadaa,yahaa rind hain,
जवाब देंहटाएंyahan sabke haath mei jaam hai.
magar iskaa koi karegaa kyaa,
ye to maiqadey kaa nizaam hai.
khoosoorat rachnaa.merey blog par padhaaraney kaa shukriyaa.
बहुत उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक बार फिर से मधुशाला, हाला और प्याला मुखर हुए हैं आपकी कविता में...
जवाब देंहटाएंwah ji kabhi hum bhi baithegen sath men........
जवाब देंहटाएंक्या मजा आता है, पीने और पिलाने में, बढ़िया अंदाज़|
जवाब देंहटाएंआपकी मधुशाला पढ़कर ग़ालिब का यह शेर याद आ गया भाई केवल जी;
जवाब देंहटाएंये तो मेरे खून की शिद्धत है शाकी, नशा जो शराब में होता बोतल न झूमती ..?
क्या खूब भाई केवल जी ! पुरुष तो पुरुष, महिलाएं भी आपकी मधुशाला की तारीफ़ करते नहीं अघा रही है........ शायद नशा शराब से ज्यादा शब्दों में जो है.......बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंमयखाने का और पीने वालों का बहुत अच्छा चित्रण
जवाब देंहटाएंकिया है |सच्चाई बयान की है |पर एक बात छूट गयी है बहां होने वाली गालीगलोच |
आशा
आप बुलाओगे जहां
जवाब देंहटाएंआ जायेंगे वहीं
खूब पियेंगे विचारों के जाम भर भर कर
छलकने भी न देंगे, कलम में कैद कर लेंगे
दिसम्बर के आखिरी महीने में जहां गर्मी रहती है वहां सपरिवार घूमने आना चाहता हूं
आशा जी की बात का समर्थन है भाव सही है किन्तु मयखाने का समर्थन नहीं ..............
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में SMS की दुनिया ........
केवल जी .. इसके लिए मयखाना नही माहॉल मयखाने जैसा चाहिए ... बहुत लाजवाब लिखा है ..
जवाब देंहटाएं'bair karate mandir-masjid
जवाब देंहटाएंmail karati madhushala '
achchhi kavita..
सुनने में तो अच्छा ही लग रहा है "मयखाने का संसार"
जवाब देंहटाएंवहां ना कोई साजिश
जवाब देंहटाएंना कोई भेदभाव
ना कोई नफरत की दीवार
जितनी पीयेंगे
उतना खुमार ,उतना प्यार ।
हम प्याला लोगों की मधुशाला का अच्छा चित्र खीँचा है। बधाई। अरे बेटा लगता तो नही तुम्हें देख कर कि तुम कभी मयखाने मे गये हो!। बच के रहना शराब से। आशीर्वाद।
अंतिम पंक्तियॉं बहुत कुछ कहती हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
.
जवाब देंहटाएंकभी हिम्मत जुटा सके तो हम भी देखेंगे मयखाना कैसा होता है।
बढ़िया प्रस्तुति !
.
और जरा सी दे दे साकी और जरा सी .....
जवाब देंहटाएंकेवल जी विचार अच्छा है क्यों न जाति भेद-भाव मिटाने के लिए हर गली ,मोहल्ले ,नुक्कड़ पे मयखाने खोल दिए जायें ....???
बैर कराते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला.
जवाब देंहटाएंसंभवतः इन्ही फायदों ने बच्चन जी को मधुशाला लिखने को बाध्य किया था...
जवाब देंहटाएंविचारणीय बहुत ही सुन्दर और प्रेरणाप्रद रचना...
मधुशाला ; की सुंदर कल्पना है तमाम अवांछित दीवारें गिरा देने की ! सार्थक है !
जवाब देंहटाएंवाह!! वाह!! अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति......। सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
जवाब देंहटाएं==========================
सदाचार
अफ़सर की मक्कारी ने।
और चोरबाजारी ने॥
सदाचार को मारा है-
गोली भ्रष्टाचारी ने॥
===========================
केवल राम जी,
जवाब देंहटाएंआपने मयखाने के सन्दर्भ से समाज में व्याप्त बहुत सारी विद्रूपताओं के चेहरे से नकाब उठा दिया !
अच्छे चिंतन के साथ आपका अंदाज़ भी अच्छा लगा !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत खूब केवलराम ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं`समता...को समझता है समझदार
जवाब देंहटाएंउसके चारों तरफ की कुर्सियां ,
कर देंगी
मिलकर रहने का इजहार ।'
सच है... शराबी से अह्दिक समता को कौन समझ सकता है :)
प्रियवर केवलराम जी
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बहुत रंग में हैं …
तुम मयखाने में बेशक खूब मत पीना…
ना ही पिलाना बस एक बार तुम महसूस करना मयखाने का संसार
आ गए जी … आपके कहने से … :) वरना हम तो नज़रों से पीने-पिलाने वाले हैं :)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अब अकेले न चले जाना। कब चल रहे हो जल्दी बताना। सीनियर बच्चन के समय तो पैदा होने में देर हो गई थी। अबकी बार रुकेंगे नहीं। मस्त हो लेंगे मस्त मलंग.....
जवाब देंहटाएंमयखाने के ज़रिये आपने समभाव की बातें की है ... अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंजाने वो क्या मजा है पीने पीलाने में
जवाब देंहटाएंजो एक बार हो आया हो मयखाने में।
वाईज औ पंडित गले मिलते देखे हमने
दीवानों की महफ़िल जमती मयखाने में
ईश्क हकीकी का मजा मिजाजी न जाने
मयकशी ने ये पैगाम दिया मयखाने में
रफ़ीक भी रकीब जैसे मिलते जहा्न में
रकीब भी रफ़ीक हो गए हैं मयखाने में
"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
वरना क्युं आता सरे आम मयखाने में
सिर्फ़ केवल के गरमा गरम सीधे कड़ाही से :)
जवाब देंहटाएंजाने वो क्या मजा है पीने पीलाने में
जो एक बार हो आया हो मयखाने में।
वाईज औ पंडित गले मिलते देखे हमने
दीवानों की महफ़िल जमती मयखाने में
ईश्क हकीकी का मजा मिजाजी न जाने
मयकशी ने ये पैगाम दिया मयखाने में
रफ़ीक भी रकीब जैसे मिलते जहा्न में
रकीब भी रफ़ीक हो गए हैं मयखाने में
"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
वरना क्युं आता सरे आम मयखाने में
शुभकामनाएं
मयखाने आएं
सिर्फ़ केवल राम के लिए
जवाब देंहटाएंजाने वो क्या मजा है पीने पीलाने में
जो एक बार हो आया हो मयखाने में।
वाईज औ पंडित गले मिलते देखे हमने
दीवानों की महफ़िल जमती मयखाने में
ईश्क हकीकी का मजा मिजाजी न जाने
मयकशी ने ये पैगाम दिया मयखाने में
रफ़ीक भी रकीब जैसे मिलते जहा्न में
रकीब भी रफ़ीक हो गए हैं मयखाने में
"ललित" दीवानगी ले आती रोज यहाँ
वरना क्युं आता सरे आम मयखाने में
शुभकामनाएं
मयखाने आएं