कागज की धरा पर
कवि की कलम से अवतरित
चार छ : शब्दों की वह पंक्ति
जब मेरे सामने , प्रस्तुत हुई
सहसा ....!
विषय तथा भाव पर मेरी नजर टिक गयी
विषय को समझने की कोशिश में
कवि की कलम से अवतरित
चार छ : शब्दों की वह पंक्ति
जब मेरे सामने , प्रस्तुत हुई
सहसा ....!
विषय तथा भाव पर मेरी नजर टिक गयी
विषय को समझने की कोशिश में
मेरी सोच की सारी सीमाएं टूट गयी
जाने कवि ने उस कविता को
कितनी समस्याओं से सजा रखा था....!
इतने उलझे प्रश्न ???
इतनी उलझी समस्याएँ
आज के चमक के इस बाज़ार से
उस कविता में समाई थी
मैं थोड़ी देर.... उस कविता को निहारता रहा
बड़ी मुश्किल से
परिचय मैंने उस कविता का जाना ....!
बस उसी क्षण
उसने रुन्धते स्वर में
क .....ह ....ना ...शुरू किया
कवि था कभी
समाज का दर्पण
थी कविता समाज की पूंजी
वही कवि आज पुरस्कार की होड़ में
छदम नेता की चाटुकारिता में
मुझे माध्यम बनाकर
क्षतिग्रस्त कर रहा है , मेरी अस्मिता को
मुझे कर रहा है , शर्मिंदा ...
आज समाज की समस्या को , दुःख को
कवि कर रहा है नजर अंदाज
आज समाज में
भ्रष्टाचार , बलात्कार , स्वार्थ
क्षेत्रवाद , जातिवाद , भाई भतीजावाद
साथ में घोर अपराध
कौन करेगा सतर्क , इस समाज को
जहां ...!
नंगे बदन की नुमाइश लगी है
स्वर्ग की परियों के तन पर
कपडा सिकुड़ता जा रहा है
अंधी श्रद्धा के नाद पर
भक्त झूमता जा रहा है
भूल गयी वो राम की मर्यादा
कहाँ गया वो संतों का जीवन सादा
रह गयी मात्र शब्दों की पंक्ति
गांधी की 'सत्य और आहिंसा'
अब थोथा लगने लगा है
"सत्यमेव जयते "
टूट गए हैं ईमान
बहुत नीचे गिर चुका है इन्सान ..!
कर ली है उसने बहुत भौतिक तरक्की
लेकिन फिर भी नहीं है आत्मिक शांति
बहुत वीभत्स हो गया है संसार
क्या कहूँ ...?
यहाँ है सब ओर हाहाकार ...
फिर कविता ने मुझसे कहा
तुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
कितनी समस्याओं से सजा रखा था....!
इतने उलझे प्रश्न ???
इतनी उलझी समस्याएँ
आज के चमक के इस बाज़ार से
उस कविता में समाई थी
मैं थोड़ी देर.... उस कविता को निहारता रहा
बड़ी मुश्किल से
परिचय मैंने उस कविता का जाना ....!
बस उसी क्षण
उसने रुन्धते स्वर में
क .....ह ....ना ...शुरू किया
कवि था कभी
समाज का दर्पण
थी कविता समाज की पूंजी
वही कवि आज पुरस्कार की होड़ में
छदम नेता की चाटुकारिता में
मुझे माध्यम बनाकर
क्षतिग्रस्त कर रहा है , मेरी अस्मिता को
मुझे कर रहा है , शर्मिंदा ...
आज समाज की समस्या को , दुःख को
कवि कर रहा है नजर अंदाज
आज समाज में
भ्रष्टाचार , बलात्कार , स्वार्थ
क्षेत्रवाद , जातिवाद , भाई भतीजावाद
साथ में घोर अपराध
कौन करेगा सतर्क , इस समाज को
जहां ...!
नंगे बदन की नुमाइश लगी है
स्वर्ग की परियों के तन पर
कपडा सिकुड़ता जा रहा है
अंधी श्रद्धा के नाद पर
भक्त झूमता जा रहा है
भूल गयी वो राम की मर्यादा
कहाँ गया वो संतों का जीवन सादा
रह गयी मात्र शब्दों की पंक्ति
गांधी की 'सत्य और आहिंसा'
अब थोथा लगने लगा है
"सत्यमेव जयते "
टूट गए हैं ईमान
बहुत नीचे गिर चुका है इन्सान ..!
कर ली है उसने बहुत भौतिक तरक्की
लेकिन फिर भी नहीं है आत्मिक शांति
बहुत वीभत्स हो गया है संसार
क्या कहूँ ...?
यहाँ है सब ओर हाहाकार ...
फिर कविता ने मुझसे कहा
तुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
'फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!'
कितना सार्थक है कविता का कहना और कविता का मौन.केवल राम जी आपके पास पवित्र दिल है कविता के दर्द को समझने का और उस दर्द को हम तक पहुचाने का.
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.नवसंवत्सर पर हार्दिक शुभ कामनाएँ .
मौन न होने दें कविता को.
जवाब देंहटाएंइतने उलझे प्रश्न ???
जवाब देंहटाएंइतनी उलझी समस्याएँ
आज के चमक के इस बाज़ार से
उस कविता में समाई थी... bhut sarthak hai kavita ka dard.. ek kavita me jisme hamne dil ka har dard kah diya...
समाज की तरह ही कविता भी पीड़ित है।
जवाब देंहटाएंबस खुद को बनाये रखना इंसान
जवाब देंहटाएंतभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान.
कविता का दर्द आखिर छलक ही पडा. इस कविता के माध्यम से कई गम्भीर विषय छुए हैं. सार्थक प्रस्तुति.
हम इंसान बने रहें ...यह प्रयत्न ही होता रहे तो काफी है ! शुभकामनायें केवल राम !
जवाब देंहटाएंkevalram ji namaskaar,
जवाब देंहटाएंaapki kavitayen bahut hi prabhavshali hoti hain ,
ek ek panktiyan bahut sundar
अब थोथा लगने लगा है
जवाब देंहटाएं"सत्यमेव जयते "
टूट गए हैं ईमान
बहुत नीचे गिर चूका है इन्सान ..!
कर ली है उसने बहुत भौतिक तरक्की
लेकिन फिर भी नहीं है आत्मिक शांति
बहुत वीभत्स हो गया है संसार
क्या कहूँ ...?
यहाँ है सब ओर हाहाकार ...
इतने मार्मिक शब्द मानो जला ही देगे इस भ्रष्टाचार को !केवलराम जी बहुत सुन्दर ! मन इन बातो को सोच कर बेहाल हो जाता है पर कु छ कर नही पता ?
Nahut Acchi rachna ki hai apne bahut darad bhar diya apne is kavita me ati sunder
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जवाब देंहटाएंजीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
बहुत ही प्रेरक संदेश देती पंक्तियां ...अनुपम प्रस्तुति ।
क्या करे कविता खुद इसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकती उसके लिए तो कवियों को ही आगे आना होगा |
जवाब देंहटाएंयही है सच्चाई आज के भोतिक जीवन की
जवाब देंहटाएंजहाँ कविता और कवितावली को सिर्फ वस्तु बना कर बाजारीकरण का जरिया बना लिया है.
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
जवाब देंहटाएंमौजूदा दौर की हकीकत को बयां करती रचना।
गहरे भाव।
राहुल जी की बातें महत्वपूर्ण।
अब थोथा लगने लगा है
जवाब देंहटाएं"सत्यमेव जयते "
टूट गए हैं ईमान
बहुत नीचे गिर चुका है इन्सान ..!
कर ली है उसने बहुत भौतिक तरक्की
लेकिन फिर भी नहीं है आत्मिक शांति
बहुत वीभत्स हो गया है संसार
क्या कहूँ ...?
यहाँ है सब ओर हाहाकार ...
shaandaar!!
marmik rachna..
बहुत सुंदर कविता ..
जवाब देंहटाएं( समाज में
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार , बलात्कार , स्वार्थ
क्षेत्रवाद , जातिवाद , भाई भतीजावाद
साथ में घोर अपराध
कौन करेगा सतर्क , इस समाज को
जहां ...!
नंगे बदन की नुमाइश लगी है
स्वर्ग की परियों के तन पर
कपडा सिकुड़ता जा रहा है
अंधी श्रद्धा के नाद पर
भक्त झूमता जा रहा है
भूल गयी वो राम की मर्यादा
कहाँ गया वो संतों का जीवन सादा
रह गयी मात्र शब्दों की पंक्ति )
हृदय को छू गया आप का सुन्दर विचार
जनता पर हो गया आप का बहुत आभार ।
'फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान'
***************************
यथार्थ को मुखर करती ....सार्थक सन्देश देती..... कविता की कविता
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
वाह वाह बहुत खूब.
आपकी कविता ने निशब्द कर दिया………………वास्तविकता पर गहरा प्रहार्।
जवाब देंहटाएंफिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
कविता और कवि का यह संवाद अंतस को छू गया...
इस मर्मस्पर्शी रचना के लिए साधुवाद !
समझौता किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए। कविता का मौन टूटे तो शायद कुछ और भी हल मिलें ।
जवाब देंहटाएंसभी आहत हैं तो कविता भी....
जवाब देंहटाएं'फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!'
केवल राम जी आपके पास पवित्र दिल और सबसे बड़ी बात एक पवित्र आत्मा है, तभी तो कविता ने इतनी उम्मीद से आपसे अपने दर्द को व्यक्त किया.. अब वह मौन नहीं रहेगी बोलेगी आपकी रचनाओं के माध्यम से... उसके दर्द को समझने और उसे हम तक पहुचाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार....
कविता के मौन को मुखरता दीजिये ।
जवाब देंहटाएंउसकी कामना को आप पूर्ण कीजिये ।
शुभकामनाओं सहित..
आप को और आपके पुरे परिवार जनों को नवसंवत्सर की शुभ कामनाये|
जवाब देंहटाएंउम्दा शब्दों का इस्तेमाल कियें हैं आप धन्यवाद|
समाज के घात प्रतिघात से आहत है कवि और कविता.
जवाब देंहटाएंkavita ke madhym se kvi karm aur insaniyt ka sandesh deti rachna
जवाब देंहटाएंsunder kvita ke lie bdhaai
असली कवि तो आज भी समाज को दिशा और दर्पण दिखाता है। पुरस्कार की होड में कवि नही चापलूस है जी :)
जवाब देंहटाएंअसली कवि तो आज भी समाज को दिशा और दर्पण दिखाता है। पुरस्कार की होड में कवि नही चापलूस है जी :)
जवाब देंहटाएंसचमुच कविता में बहुत दम है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और मर्मस्पर्शी रचना है .................धन्यवाद
जवाब देंहटाएंये चाटुकारिता तो न जाने कब स ेचल रही है रे भैया ।धनबन्ता के व्दार मे खडो रहत गुण बंता ,पहले एक दो कवि चारण भाट आदि हुआ करते थे आज तो कवियों को चालीसा लिखने से ही फुरसत नहीं है।मुझे कर रहा शर्मिन्दा वाला पद ,और इसके बाद का नुमाइश वाला पद बहुत बेहतर लिखा है आपने । सीधी बात खरी बात
जवाब देंहटाएंकविता की अटूट दास्तान को अच्छे और सरल ढंग से संकलित किये हैं | आप जैसे लोगों के माध्यम से ही इसकी पराकास्ठा बनी हुई है| अच्छी कविता के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंफिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
बहुत सटीक चोट आज के हालात पर..बहुत सार्थक और भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
इस भौतिकवादी युग में सभी कुछ तो बिक रहा है भाई केवल जी, क्या कविता, क्या कहानी ...... सत्य, आदर्श, मर्यादा, नैतिकता, मूल्य, सिद्धांत ... और क्या क्या नहीं. ... इस अंधड़ में कुछ बचा रह पायेगा क्या ?....... इस सुन्दर पोस्ट के लिए आभार .... शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक कविता है । आभार केवल राम भाई !
जवाब देंहटाएंअब थोथा लगने लगा है
जवाब देंहटाएं"सत्यमेव जयते "
टूट गए हैं ईमान
बहुत नीचे गिर चुका है इन्सान
बहुत सटीक प्रासंगिक पंक्तियाँ हैं...... सच को सामने रखतीं....
कविता में पीड़ा साफ़ दिखाई दे रही है, इंसान ही रहते तो क्या बात थी.
जवाब देंहटाएंआभार.
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
आदरणीय केवल जी,जब कविता कवि से संवाद करने लग जाये तो सार्थक हो जाती है.
आपकी कविता अब मौन नहीं होगी,अब तो और मुखरित हो जायेगी.
कविता का दर्द बाटने के लिए आभार.
उसने रुन्धते स्वर में
क .....ह ....ना ...शुरू किया
आपकी इस लाइन ने दिल छू लिया .
तुम मत करना कभी
जवाब देंहटाएंजीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान....
सार्थक कविता...
सार्थक प्रस्तुति..
हार्दिक शुभकामनाएँ .
बहुत बढ़िया रचना.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और मर्मस्पर्शी रचना है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंयह बात तो सत्य है कि कविता समाज का प्रतिबिम्ब हुआ करता था और आज इस अंतर्जालिक युग में लोग अपनी रचनाओं को होड़ में शामिल करने से ज्यादा नहीं मान रहे हैं..
जवाब देंहटाएंपर फिर भी कुछ लोग केवल अपनी दिल की बात कहने के लिए लिखते हैं तो मेरे ख्याल से उन्हें वो आज़ादी देने में कोई हर्ज़ नहीं है..
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बहुत खूब
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बहुत खूब
बेहतरीन ...
जवाब देंहटाएंअब थोथा लगने लगा है
जवाब देंहटाएं"सत्यमेव जयते "
टूट गए हैं ईमान
बहुत नीचे गिर चुका है इन्सान ..!
कर ली है उसने बहुत भौतिक तरक्की
लेकिन फिर भी नहीं है आत्मिक शांति
बहुत वीभत्स हो गया है संसार
क्या कहूँ ...?
यहाँ है सब ओर हाहाकार ...
फिर कविता ने मुझसे कहा
तुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
behtrin rachna ,har cheej ke do pahloo hote hai aur shayad iske bhi hai .
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
कविता इसी तरह हमें सजग करती रहे।
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
bahut khub sundar
कर ली है उसने भौतिक तरक्की लेकिम फिर भी नहीं आत्मिक शांति बहुत खूब .......................
जवाब देंहटाएंbahut khoob...kya likhate ho yar tum
जवाब देंहटाएंवहुत ही सुंदर प्रस्तुति। कविता तो कविता ही रहेगी -यह तो हम हैं जो उसे हर रूप में शोषित करते रहते हैं।कोई न को बहाना बना कर।
जवाब देंहटाएंकवि था कभी
जवाब देंहटाएंसमाज का दर्पण
थी कविता समाज की पूंजी
वही कवि आज पुरस्कार की होड़ में
छदम नेता की चाटुकारिता में
मुझे माध्यम बनाकर
क्षतिग्रस्त कर रहा है , मेरी अस्मिता को
वाह आज तो कविता के दर्द को बखूबी बयां किया है आपने. बहुत ही बढ़ीया लगी यह सोच. सोच में बदलाव आना जरूरी है.
keval ji,
जवाब देंहटाएंbahut sunder hai rachna ...
katu satya hai.....
कौन करेगा सतर्क , इस समाज को
जवाब देंहटाएंजहां ...!
नंगे बदन की नुमाइश लगी है
स्वर्ग की परियों के तन पर
कपडा सिकुड़ता जा रहा है
अंधी श्रद्धा के नाद पर
भक्त झूमता जा रहा है
..
..
केवल जी चाँद पंक्तियाँ पढ़ कर ही पता चल गया कि आप जुगाडू कवी नही हो...अब आपके दर्शन आपके दर्शन के लिया आता रहूँगा धन्यवाद बंधुवर !
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
lekin samaj ko jaga rahi hai.
कविता का दर्द और आपके शब्द एकाकार होकर एक ऐसा चित्र खींच रहे है कि देखकर दर्द हो रहा है ..बहुत प्रभावी रचना
जवाब देंहटाएंइतने उलझे प्रश्न ???
जवाब देंहटाएंइतनी उलझी समस्याएँ
आज के चमक के इस बाज़ार से
उस कविता में समाई थी
मैं थोड़ी देर.... उस कविता को निहारता रहा
बड़ी मुश्किल से
परिचय मैंने उस कविता का जाना ....!
बस उसी क्षण
उसने रुन्धते स्वर में
क .....ह ....ना ...शुरू किया
बहुत सुंदर कविता भाई केवल राम जी बधाई |
इतने उलझे प्रश्न ???
जवाब देंहटाएंइतनी उलझी समस्याएँ
आज के चमक के इस बाज़ार से
उस कविता में समाई थी
मैं थोड़ी देर.... उस कविता को निहारता रहा
बड़ी मुश्किल से
परिचय मैंने उस कविता का जाना ....!
बस उसी क्षण
उसने रुन्धते स्वर में
क .....ह ....ना ...शुरू किया
बहुत सुंदर कविता भाई केवल राम जी बधाई |
aap jab apni asmita ka sauda nahi kar paye to aap jaise aneko kavi hain jo kabhi bhi sauda nahi karenge....vishwas rakhiye.ham aapke sath hain.
जवाब देंहटाएंbahut bahut shaandar, prabhavshali prastuti.
कविता की पीड़ा भाव विह्वल कर गयी . .सुँदर रचना .
जवाब देंहटाएंकेवलराम जी
जवाब देंहटाएंइतने उलझे प्रश्न ???
इतनी उलझी समस्याएँ
आज के चमक के इस बाज़ार से
उस कविता में समाई थी
मैं थोड़ी देर.... उस कविता को निहारता रहा
बड़ी मुश्किल से
परिचय मैंने उस कविता का जाना ....!
...........बहुत सुन्दर
सार्थक सन्देश देती...........कविता
भूल गयी वो राम की मर्यादा
जवाब देंहटाएंकहाँ गया वो संतों का जीवन सादा
रह गयी मात्र शब्दों की पंक्ति
गांधी की 'सत्य और आहिंसा'
बहुत सुन्दर लगी आपकी कविता- सुंदर, सटीक और सधी हुई।
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!तारीफ़ के लिए....केवलराम जी
कविता की चुप भी दहाड़ से कम नहीं.
जवाब देंहटाएंखूब कविता का दर्द उकेरा है आपने.
जवाब देंहटाएंbahut acchaa kewal ji.kavita khud hi kayi prashn karti hai hamse.Meri kavitayein to kbhi kabhi vidroh bhi kar deti hain...
जवाब देंहटाएंaapko padhna accha lagta hai....likhte rahiye.
फिर कविता ने मुझसे कहा
जवाब देंहटाएंतुम मत करना कभी
जीवन की वास्तविकताओं से समझौता
बस खुद को बनाये रखना इंसान
तभी तुम बचा पाओगे मेरा ओर मेरे समाज का ईमान
बस इतना कह कर कविता मौन है ....!
कविता ने कह दिया जो कहना था ..अब कवि के मुखर होने का इंतज़ार कर रही है ..बहुत सार्थक प्रस्तुति ..
बस इतना कह कर कविता मौन है ..kavita ki vyatha dil ko vyathit kar gayee....usske moun ki chitkar ko sunana jaroori hai...
जवाब देंहटाएंकविता वाही होती है जिसमें अंतर्मन छलक कर बाहर आता है,आज की व्यावसायिक-युग में जो कविता बाज़ार का हिस्सा हो गयी है,उसे कविता तो नहीं कह सकते !
जवाब देंहटाएंpriy keval ram ji
जवाब देंहटाएंaapki kavita padhane ke bad apne ko ak tipaani karne se rok nahin paya .rachana ki sarthakata uski maulikata par aadharit hoti hai ,jisko aapne puri siddat ke sath sanjoya hai . bahut sunder kavy -shilp . badhayi .
ठीक है।
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