अक्सर जब किसी समारोह में
जाना होता है तो वहां पर शान्ति के प्रतीक कबूतरों को उडाया जाता है और कामना की
जाती है कि कबूतरों के उड़ने से शान्ति सम्भव हो पायेगी। बहुत बार मैंने सोचा कि
आखिर क्या वजह है कि इनसान शान्ति के लिए कबूतरों को उडाता है, जबकि वर्तमान वातावरण को निर्मित करने में इनसान
की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। अगर कहीं अशान्ति है तो वो इनसान के जहन में है और वह शान्ति की तलाश बाहर करता है. जबकि
बाहरी वातावरण से उसका कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है...जहाँ तक मैंने पढ़ा है कि ‘शान्तितुल्यं तपो न अस्ति, न संतोषात परम सुखं’
(शान्ति के बराबर कोई तप नहीं है, और
संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है) इससे यह बात समझ में
आई कि शान्ति सबसे बड़ा तप है और संतोष सबसे बड़ा सुख है. लेकिन किस तरह? यह विचार करना आवशयक है कि शान्ति सबसे बड़ा तप कैसे है? और संतोष सबसे बड़ा सुख कैसे? जहां तक मुझे लगता है शान्ति
और सन्तोष का एक दूसरे के साथ
अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
वास्तविकता में शान्ति
किसे कहते हैं? संतोष
क्या है? यह हम समझ नहीं पाए। मैं हमेशा देखता-सोचता हूँ कि इनसान
अपनी नियति का निर्धारण खुद करता है। वह अपने लिए
रास्ते और मन्जिलें खुद निर्धारित करता है किसी का कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध इन चीजों से नहीं होता और उसके हर निर्णय का प्रभाव उसे प्रभावित करता है।
लेकिन व्यक्ति के जीवन का हर पहलु सिर्फ व्यक्ति के जीवन को ही प्रभावित नहीं करता,
बल्कि उसका प्रभाव दूसरे व्यक्तियों के जीवन पर भी पड़ता है. समाज में रहने वाला व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति ही नहीं होता, बल्कि वह समाज की
एक ‘ईकाई’ होता है. उसके प्रत्येक अच्छे और बुरे कर्म का प्रभाव समाज पर पड़ता
है। इसलिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने हर निर्णय को सामाजिक परिप्रेक्ष्य को
ध्यान में रखते हुए ले और इससे एक तो उसे लाभ होगा और दूसरे जो निर्णय उसने लिए हैं उनका लाभ किसी दूसरे व्यक्ति
को भी मिलेगा। इस तरह से हम जिम्मेवार नागरिक बनते हुए दूसरों के मनों में शान्ति और
सकून का वातावरण पैदा कर सकते हैं।
हर व्यक्ति का किसी दूसरे
व्यक्ति से किसी न किसी तरह का नाता होता है चाहे वह नाता सकारात्मक हो या
नकारात्मक। दोनों का अपना प्रभाव है जहाँ सकारात्मक प्रभाव हमें किसी के करीब ले
जाता है तो वहीँ नकारात्मक प्रभाव हमें किसी व्यक्ति से दूर करता है। यह प्रभाव सिर्फ व्यक्ति तक ही सीमित नहीं होता
बल्कि इसका प्रभाव व्यापक होता है और कई बार तो यह नकारात्मक प्रभाव का इतना प्रभावी होता है कि हम किसी समुदाय और समाज से वास्तविकता को जाने बगैर नफरत करना शुरू
कर देते हैं, और काफी हद तक हम यह देख भी रहें हैं। यहाँ
पर जो झगडे हैं सब हमारी नासमझी के कारण हैं, हमने इनसान
को हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, इसाई और भी न जाने कितनी तरह से, कितने भागों
में बांटा है और इसी बंटबारे के कारण आज धरती पर बसने
वाले प्राणी एक दुसरे से नफरत करते हैं। सामाजिक
स्तर पर भी हम देखें तो हम कई भागों में विभाजित हैं। एक समुदाय का दुसरे समुदाय
से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है तो फिर ऐसे हालात में हम एक दूसरे के खिलाफ नफरत
के बीज बोते हैं और जिस सुन्दर सी धरती पर हम ‘अमन
और चैन’ से रह सकते हैं, वहां पर हम कभी भी अमन और चैन से नहीं रहे, इतिहास इस बात का गवाह है।
आज जब वैश्वीकरण के दौर
की बात की जा रही है विश्व को एक गाँव माना जा रहा है, लेकिन यह बात सिर्फ कहने तक ही सीमित है वास्तविकता इससे
कोसों दूर है। आज हर तरफ त्राहि-त्राहि है। जितना हमने
भौतिक और तकनीकी विकास किया है, उसके कारण हमारे पास साधन तो जरुर बढ़ें है, हम भौतिक रूप से सशक्त जरुर हुए हैं। लेकिन मानसिक और आत्मिक रूप से हम
कमजोर हुए हैं। किसी को किसी से कुछ लेना देना नहीं है सब अपने स्वार्थ के पीछे भाग रहे हैं। आये दिन हम जो कुछ भी देखते हैं क्या किसी गाँव में इस तरह की घटनाएँ
बर्दाश्त की जा सकती हैं? नहीं, गाँव तो वह होता है जहाँ मानवीय संवेदनाएं और
भावनाएं एक दूसरे के साथ जुडी होती हैं और व्यक्तियों का एक दूसरे के साथ
प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह का सम्बन्ध होता है। लेकिन जो वातावरण आज निर्मित
हुआ है इसके लिए कौन जिम्मेवार है? किसी शेर ने तो नहीं कहा कि तुम बंट जाओ
अलग-अलग जातों, मजहबों, धर्मों, समुदायों और ना जाने कितने रूपों में और फिर करो एक दूसरे का कत्ल और फैला
दो इस सुन्दर सी धरती पर अशान्ति तब मैं तुम्हें कबूतर दूंगा शान्ति का पैगाम देने
के लिए, क्योँकि मैं जंगल का राजा हूँ और इनसान को शान्ति के
लिए यह सहायता मेरी तरफ से हा..हा...हा..! शायद ऐसा नहीं है। आज जिस तरह हम अस्त्र-शस्त्रों
का विकास कर रहे हैं क्या वह शान्ति के सूचक हैं? नहीं! आज किसी देश और वहां के
लोगों की उत्कृष्टता का पैमाना ही बदल गया है। हम अगर किसी देश का मूल्यांकन करते हैं तो सिर्फ भौतिक रूप से, क्या कभी कोई सर्वेक्षण आया कि इस देश के लोगों में इतनी मानवता और प्रेम की भावनाएं हैं, यहाँ पर इतने मानवीय मूल्यों को
तरजीह दी जाती है, और भी कई मानवीय पहलू हैं जिन पर गम्भीरता से विचार किया जा
सकता है और फिर उन्हें अपनाया जा सकता है। लेकिन हम इन सारे प्रयासों से पीछे हटते जा रहे
हैं और वास्तविकता को नजरअंदाज करते हुए आभासी बनते जा रहे हैं और इसी लिए हम शान्ति
की तलाश भी कबूतरों द्वारा कर रहे हैं। लेकिन ऐसा कब तक चलता रहेगा?
आओ ऐसे वातावरण का
निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर हर तरफ सकून और चैन हो, अमन हो, प्यार हो, भाईचारा हो, किसी तरह की कोई दीवार न हो सब एक दूसरे से मिल सकें बिना किसी भेदभाव के, धरती सबकी है यहाँ कोई सीमा न हो सब रह
पायें ख़ुशी से, इस साँसों के सफ़र में साथ-साथ और सिर्फ हाथ से हाथ ही न मिलें बल्कि दिल से दिल भी मिलने चाहिए। तभी तो शान्ति सम्भव हो
पाएगी। फिर तो इस जीवन को जीने का आनन्द ही अलग होगा और जब हम इस संसार से रुखसत
होंगे तो हमें अपने किसी कर्म पर कोई पछतावा नहीं होगा। बस शान्ति के लिए प्रयास करना
है तो अपने मन में उठने वाले हर उस नकारात्मक भाव को समाप्त करना है जो मानवता के
लिए सुखदायी नहीं है। हमें तप और त्याग की भावनाएं दिलों में लिए हुए अपने जीवन
सफ़र को तय करना है। शांति स्वतः ही आएगी उसके लिए किसी आभासी कार्य की जरुरत
नहीं, बल्कि वास्तविक प्रयास की आवशयकता है और फिर यह कायनात, यह खुदा का कुनबा, जो बहुत सुन्दर है इसमें
बसने वाला हर इनसान खुदा का रूप है, इन्हीं भावनाओं को
दिल में बसाये हुए हम इस सृष्टि के कण-कण में खुदा को देख सकेंगे, महसूस कर सकेंगे। अगर शान्त रहेंगे तो...!
मैं तहे दिल से आदरणीय अर्चना चावजी का धन्यवाद करते हुए यह बात आप सबसे साँझा कर रहा हूँ
कि इस पोस्ट की पॉडकास्ट सम्मानीय गिरीश बिल्लोरे जी के ब्लॉग ‘मिसफिट: सीधीबात’ पर और इसी ब्लॉग पर अर्चना चावजी की कर्णप्रिय आवाज
में सुन सकते हैं। आपकी सार्थक प्रतिक्रियाओं का इन्तजार रहेगा। विनीत....केवल
राम।
केवल राम जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत ही जागरूप करने वाला आलेख लिखा है आपने
वास्तविकता में शांति किसे कहते हैं यह आज तक कोई समझ ही नहीं पाया है.
व्यक्ति को समाज में अपनी अहमियत का पता ही नहीं है
इसीलिए हम वास्तविकता को नजरअंदाज करते हुए आभासी बनते जा रहे हैं
....... बेहद प्रभावशाली आलेख है ।
यह बात तो सत्य है...... जब तक समाज में प्यार अमन भाई चारा किसी तरह की कोई दीवार न होगी तभी .......... शांति संभव हो पाएगी
जवाब देंहटाएंइस आलेख में गम्भीर विषय छुपा हुआ है हैं......... सार्थक प्रस्तुति. .....आभार केवल राम भाई !
बहुत ही सही लिखा आपने ... हो सके तो इस पोस्ट को राजनेताओं को पढाने कि कोशिस करना .......
जवाब देंहटाएंजब मनुष्य आत्मिक व् मानसिक रूप से मजबूत हो जाएगा तो इस चीज का समाधान संभव है .........और ये सब करने के लिए प्राचीन संस्कृति व् सभ्यता को आत्म साथ ले कर चलना पड़ेगा ...........
बढ़िया लेख लिखा है ...
जवाब देंहटाएंऐसे वातावरण का निर्माण हम तभी कर पाएंगे जब हम अपने उद्देश्य नियत कर लें ! शुरुआत अपने मन में झांकने से करनी होगी , अगर हम यहाँ से दूसरों के प्रति जलन और क्रोध को मिटा सकें तो शायद इस विशाल वातावरण में यह सुन्दर सन्देश फ़ैल सके ....
शुभकामनायें !
बहुत गंभीर मसले पर बहुत सहज और सरल शब्दों में आपका यह आलेख उत्कृष्ट बन पड़ा है... शुभकामना !
जवाब देंहटाएंसब जन यही चाहते हैं पर जब स्वार्थ की बात आती है तो सब भूल जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआओ ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर हर तरफ सकून और चैन हो, अमन हो ,प्यार हो , भाईचारा हो , किसी तरह की कोई दीवार न हो सब एक दुसरे से मिल सकें बिना किसी भेदभाव के , धरती सबकी है यहाँ कोई सीमा न हो सब रह पायें ख़ुशी से.....
जवाब देंहटाएंkash aisa ho sake...:)
aapki baat jan jan tak pahuche!
शांति सबसे बड़ा तप है और संतोष सबसे बड़ा सुख है..
जवाब देंहटाएंयह बात जब तक जन मानस समझ नही लेता सब कुछ व्यर्थ है--जीवन का मर्म आपने समझा दिया केवल जी ! जो चाहे गाँठ बाँध ले --यही सुख की परिभाष है...
वैशाखी की लख -लख बधाइयां---
@ आओ ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर हर तरफ सकून और चैन हो, अमन हो ,प्यार हो , भाईचारा हो ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सोच के साथ लिखी गई उत्तम रचना। आपकी इस सोच में हम भी शामिल हैं।
प्रिय केवल राम जी
जवाब देंहटाएंसमाज के सभी लोगों को इसे पढनी चाहिए मुझे लगता है की अब स्वक्छ वातावरण का निर्माण के लिए एक मुहीम छेड़ ही देनी चाहिए |
सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद |
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I THINK YOU FORGET ME....
एक अच्छी कविता के लिए मेरे ब्लॉग पे आप आमंत्रित हैं |
www.akahsingh307.blogspot.com
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सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंआप के साथ हम सभी सहमत हैं !!
"आओ ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर हर तरफ सकून और चैन हो, अमन हो ,प्यार हो , भाईचारा हो , किसी तरह की कोई दीवार न हो..."
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम सोच के साथ लिखा गया आलेख ...
तो क्यों ना इन कबूतरों को उड़ाने की बजाय इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाये .... क्योंकि-
"समाज में रहने वाला व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति ही नहीं होता बल्कि वह समाज की एक " ईकाई" होता है..."
सुन्दर प्रभावशाली सन्देश...
शांति के दूत कहे जाते हैं, इसलिए उडाए जाते है।
जवाब देंहटाएंबाकि कौन किसी की मानता है, सब दूसरों को कहते ही है।
केवल रामजी नमस्कार !
जवाब देंहटाएंजागरूप करने वाला आलेख लिखा है आपने !
बेहद प्रभावशाली
मन को बाँध नहीं पाए और कबूतर उड़ा कर शांति चाहते हैं ...बहुत अच्छा सन्देश देता लेख ...
जवाब देंहटाएंआज जिस तरह हम शास्त्रों का विकास कर रहे हैं
शास्त्रों को --- शस्त्र कर लें ..
सुन्दर प्रभावशाली सन्देश|बहुत अच्छी सोच के साथ लिखी गई उत्तम रचना। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअगर व्यक्तिगत स्तर पर ही प्रयास शुरू हो जाएं,तो बूंद-बूंद से घड़ा भरते देर नहीं लगेगी।
जवाब देंहटाएंआओ ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर हर तरफ सकून और चैन हो, अमन हो ,प्यार हो , भाईचारा हो , किसी तरह की कोई दीवार न हो सब एक दुसरे से मिल सकें बिना किसी भेदभाव के , धरती सबकी है यहाँ कोई सीमा न हो सब रह पायें ख़ुशी से, इस साँसों के सफ़र में साथ - साथ और सिर्फ हाथ से हाथ ही न मिलें बल्कि दिल से दिल भी मिलने चाहिए तो शांति संभव हो पाएगी ....
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर विश्लेषण !
.
गंभीर और विचारणीय आलेख्………सोचने को विवश करता है।
जवाब देंहटाएंशांति के प्रतीक कबूतर को उड़ायें तो शांति पायें
जवाब देंहटाएंया शांति पाकर फिर कबूतर उड़ायें अर्थात निरीह जीवों को मुक्त करें अपने चंगुल से. पर भाई बकरा,मुर्गा ,कबूतर खा कबूतर उड़ायें तो किस शांति को पायें ? खुदा तो कण कण में व्याप्त है सब देख रहा है,कुछ छिपा नहीं है उससे.
बहुत सुन्दर लेख.बहुत सी सुन्दर बातें लिए.चाहते तो सभी यही हैं.बस स्वार्थवश कर नहीं पाते.
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक और सत्य की ओर सब का ध्यान आकृष्ट करता बहुत सुंदर आलेख...सभी बातें पूर्णतया सत्य पथ की ओर जागरुक है।....
जवाब देंहटाएंkabootaron ko uda kar innsan apni swarthi vrattiyon ko door kar dene ka aabhas pata hoga shayad... kuchh der ke liye apne parivesh se muh mod kar nischhal aakash ko nihar kar shanti pane ki abhasi koshish.vaise bhi sach sirf kabootar udane se kya hoga ???
जवाब देंहटाएंव्यक्ति अपने हर निर्णय को सामाजिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ले और इससे एक तो उसे लाभ होगा और दुसरे जो निर्णय उसने लिए हैं उनका लाभ किसी दुसरे व्यक्ति को भी मिलेगा . इस तरह से हम जिम्मेवार नागरिक बनते हुए दूसरों के मनों में शांति और सकून का वातावरण पैदा कर सकते हैं .----बहुत सठिक वाक्य
जवाब देंहटाएंदो लोगों में शांति और तीन की भीड में झगड़ा स्वाभाविक है ना :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुम्दर सार्थक आलेख है। अच्छे संस्कार देने का काम घर से ही शुरू किया जाना चाहिये। संतोश धन पर सब की वर्षा हो । शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुम्दर सार्थक आलेख है। अच्छे संस्कार देने का काम घर से ही शुरू किया जाना चाहिये। संतोश धन पर सब की वर्षा हो । शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंshanti isi chidiya ka naam hai...kabootar...shanti ki sirf chaah se kuchh nahin hone wala...uska noor vekhna hai to shant raho...achchha lekh...
जवाब देंहटाएंaapki baate aml karne laayak hai khas taur par unhe jo isse vanchit rahte hai ,bahut badhiya aalekh ,sukh -shaanti ko kayam karm hi kar sakte hai ,
जवाब देंहटाएंकबूतर का स्वभाव उड़ना है!
जवाब देंहटाएंउन्हें आजाद किया जाता है!
क्योंकि आजादी सभी को पसंद है!
bilkul sach likha hai aapne ,bahut khoob..
जवाब देंहटाएंप्रेरक और प्रभावशाली रचना।
जवाब देंहटाएंसिर्फ कबूतर उडाने से कुछ नहीं होने वाला।
हमारे भीतर से शांति का संदेश निकलना चाहिए।
शुभकामनाएं आपको।
केवल राम जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट
केवल राम जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट
केवल राम जी समाज के सभी लोगों को इसे पढनी चाहिए |सार्थक पोस्ट,बेहद प्रभावशाली आलेख ...
जवाब देंहटाएंआओ ऐसे वातावरण का निर्माण करने के लिए प्रत्यनशील हों जहाँ पर हर तरफ सकून और चैन हो, अमन हो ,प्यार हो , भाईचारा हो , किसी तरह की कोई दीवार न हो सब एक दुसरे से मिल सकें बिना किसी भेदभाव के , धरती सबकी है यहाँ कोई सीमा न हो सब रह पायें ख़ुशी से, इस साँसों के सफ़र में साथ - साथ और सिर्फ हाथ से हाथ ही न मिलें बल्कि दिल से दिल भी मिलने चाहिए तो शांति संभव हो पाएगी .
जवाब देंहटाएंशांति मन में होती है...बाहर क्या ढूंढना....हम सबको एक प्रयास तो करना ही चाहिए....
बहुत अच्छा आलेख....
sunder aur prernaspd aalekh
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश.
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना एक कोशिश है समाज में जागरूकता फ़ैलाने की ...आभार .
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तनयुक्त है आपका यह लेख....
जवाब देंहटाएंसार्थक ...सशक्त चिंतन....
जवाब देंहटाएंbhut hi prabhaavpur lekh hai...
जवाब देंहटाएंराहतकारी, सुखदायी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित आलेख है,केवल जी.
जवाब देंहटाएंशान्ति की तलाश तो भीतर से ही शुरू होती है,भीतर ही ख़त्म होती है.
आप की कलम को सलाम.
संतोष होगा तो शांति ज़रूर होगी.
जवाब देंहटाएंज्ञान का गहरा डोज पी लिया, तृप्त हुए |
जवाब देंहटाएंएक सामयिक और सार्थक चर्चा. भूमंडलीकरण के दौर में एकता जब तक अपने वृहद और व्यापक स्वरुप में नहीं होगी तब तक अमन-चैन की कल्पना नहीं की जा सकती है.
जवाब देंहटाएंआद.केवल रामजी
जवाब देंहटाएंआपने एक दम सही कहा है "यह खुदा का कुनबा, जो बहुत सुंदर है इसमें बसने वाला हर इन्सान खुदा का रूप है , इन्हीं भावनाओं को दिल में बसाये हुए हम इस सृष्टि के कण - कण में खुदा को देख सकेंगे,महसूस कर सकेंगे ..... अगर शांत रहेंगे तो"
आपका हर एक लेख एक नया होता है और सोच नयी होती
आपकी भावनाए सराहनीय हैं
आप बहुत अच्छा लिखते हैं वाकई में और आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है
जवाब देंहटाएंबधाई एवं आभार
बहुत सही लिखा है आपने ... इस बेहतरीन प्रस्तुति के आभार ।
जवाब देंहटाएंआलेख उत्कृष्ट है,प्रभावशाली भी.गम्भीर विषय पर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर विश्लेषण .अच्छी सोच के साथ लिखी गई उत्तम रचना....शुभकामनायें
भाई केवल राम जी यह एक अद्भुत ,वैचारिक और शिक्षाप्रद पोस्ट है इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंगंभीर विषय. सभी को इस विषय में सोचना चाहिए.
जवाब देंहटाएंnice post
जवाब देंहटाएंnice post
जवाब देंहटाएंअच्छा विषय, अच्छी बात। बस एक असहमति है। जिस प्रकार हमारे ऋषि-मुनि हमारे जीवन को उन्नत और सुखकर बनाने के प्रयास में लगे रहते थे उसी प्रकार का काम उन वैज्ञानिकों और आविष्कारकों का है जिनके कारण भौतिक विकास की राह बनती है। स्वार्थ का किसी भी प्रकार के विकास से कोई सम्बन्ध नहीं है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंवर्तमान समय में हमारा समाज इन्ही विसंगतियों से गुजर रहा है ...जिस मुख्य बात पर ध्यान देना चाहिए , उसे ही नजरंदाज किया जाता रहा है ...
जवाब देंहटाएंअन्ना के जन जागरण अभियान से कुछ नयी शुरुआत होते तो दिखती है ..
सार्थक प्रस्तुति !
आलेख में
जवाब देंहटाएंगंभीर विषय को लिया है
लगभग हर बात मननीय है ...
अभिवादन .
सुंदर व प्रेरणादायी बातें। आभार।
जवाब देंहटाएंजब विषय वास्तविकता से जुड़ा हो तो कहीं न कहीं उसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है | आपके लेख में भी कुछ ऐसा ही है | बहुत ज़रुरत है शांति , अमन और आज़ादी की | न सिर्फ केवल एक इंसान को बल्कि पूरे समाज और उसके ज़हन को | इस खूबसूरत लेख के लिए बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंमानव बहुत चतुर है वह 'शांति' जैसे औपचारिक-कार्य कबूतरों के माध्यम से करवाकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेता है !
जवाब देंहटाएंkewal jee
जवाब देंहटाएंnamaskar.....
roman me likh kar hindi banana aur koi anubhav bhee sath nahee.....trial aur error tareeke se hee seekh rahee hoo.......
aapka bahut bahut dhanyvad.
maine aapke sudhare shabdo ko cut paste karke kavita theek kar lee hai....
bhavishy me bhee aapka sath milega aisa vishvas hai.....
bahut bahut aabhar.....
kai shabd aankho me khatak rahe the...par kaise theek karoo samajh nahee aaya......
dhanyvaad.
Keval Ram ji.... you're right. Congrats on a meaningful post.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया आलेख
जवाब देंहटाएंसुन्दर विश्लेषण
इंसान की इंसानियत किसी धरम, जाती, भाषा, रंग को नहीं जानती. लकिन इंसानी फितरत को देखिये तो मानेगे की अपने मुनाफे के लिए ये धरम, जाती, भाषा, रंग का चोला बदलता है. लकिन फाख्ता बेचारी नन्ही जान, क्या जाने की ये इंसान इसे उडाता भी है, और निशाना भी बनता है.
जवाब देंहटाएंकेवल भाई बहुत सटीक लिखा है.
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर सकारात्मक सोच भरा लेखन। आभार।
जवाब देंहटाएंकबूतर उड़ाना शांति का प्रतीकात्मक संदेश है। जहाँ बलि देने के लिए कबूतर खरीदे जा रहे हों वहीं कोई कबूतर खरीद कर उन्हें उड़ा देता है तो और किसी पर न सही पास खड़े बच्चे पर ही इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
जवाब देंहटाएंभौतिकता के अंधे दौड़ में आभासी प्रतीकों का भी अपना महत्व है।
प्रेम,भाईचारा,सौहार्द ये सारे शब्द बचपन में सीखाया तो हर किसी को जाता है लेकिन आप जैसे कुछ लोग याद भी रख पाते हैं और दुसरों को याद भी दिलाते हैं
जवाब देंहटाएंधन्यबाद
बहुत सही बात उठाई है मित्र, काश हम ऐसा कर पाएँ|
जवाब देंहटाएंप्रवीण भाई ने बहुत ही सटीक उत्तर दिया है| व्यक्तिगत स्वार्थ आने पर हम लोग एक दम से बदल जाते हैं|
निष्कर्ष रूप में यही समझ में आता है कि पूरी तरह नहीं तो शुरुआत समझते हुए, यथासंभव प्रयास करने में कोई हर्ज नहीं|
मन की अशांति पर कुछ पंक्तियाँ :-
हासिल तो सब को है सब कुछ|
पर यूं कहिए संतोष नहीं||
और
मेरे दिल की तसल्ली कहाँ गुम हो तुम|
ज़िन्दगी में तुम्हारी कमी रह गयी||
ये शुरुवात हमें किसी और को बदलने से नहीं बल्कि खुद को बदल कर ही करनी होगी क्युकी जब सब अपने आप को बदल देंगे और अपने अन्दर से ईर्षा और द्वेष की भावना को खत्म कर देंगे तो सब तरफ प्यार ही प्यार, सुकून ही सुकून होगा |
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत लेख |
एक बार फिर आपने अत्यंत सुन्दर लेख हम सबसे साझा किया है...चिंतनशील लेखनी से निकाला विचारोत्तेजक लेख .....बधाई के पात्र हैं आप !
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक सन्देश..
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने "कबूतर उड़ने से क्या होगा ?" प्रतीकों का प्रयोग हम अपने गुणों को एक शरीर प्रदान करने के लिए करते है.कबूतर तो मात्र हमारी उस भावना का प्रतीक है जो दृश्य नहीं है.भाव और गुण आतंरिक बातें हैं.लेकिन समय के साथ भावनाओं से प्रतीक अलग हो जाते हैं और प्रतीक एक औपचारिक स्थिति प्राप्त कर लेता है.प्रतीक एक निष्प्राण शरीर जैसा है.जैसे "गाँधी और गाँधीवाद".लोग गांधीवादी बने क्योंकि उन्होंने गाँधी के गुणों को अपनाया.लेकिन धीरे-धीरे गाँधी के सुझाए रास्ते वैसी पगडण्डी में तब्दील हो गए जिसपर लोगों ने चला ही छोड़ दिया.आज उनके गुणों की दुहाई सब देते हैं,लेकिन अपनाने से दूर भागते है.व्यक्ति यदि "मनसा,वाचा,कर्मणा" जिए तो कोई कारण नहीं है कि जीवन में शांति और संतोष न आये और रिश्तों में मजबूती.बेहतरीन एवं प्रभावी लेख के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंHi Ramji!nice prastuti.thanks.
जवाब देंहटाएंकपोत उड़ाने से शांति मिलती है,
जवाब देंहटाएंइहलोक की यह लीला न्यारी है।
एटम बम हमने ढेर बना लिए,
फ़िर रणक्षेत्र रचाने की तैयारी है।
उत्कृष्ट एवं प्रेरक आलेख। सहमत हूँ आपसे।
जवाब देंहटाएंToday is virtuous weather, isn't it?
जवाब देंहटाएंkewalji ab modern santi nd santosh ke bare mn bhi kuch likhna..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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