भरी महफ़िल में , लोगों ने मुझसे पूछा
इश्क का जाम पीता हूँ मैं….
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना.
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
आज अपने कॉलेज के दिनों की डायरी देख रहा था तो यह कविता किसी एक पन्ने पर मिल गयी सोचा इसे आप सबके साथ साँझा करूँ ......!
क्योँ नहीं पीते हो तुम ???
बिना पीने के भला , कैसे जीते हो तुम !!!
फिर दबी आवाज में ....
क्या तुमने देखा नहीं है मयखाना ???
या तुम नहीं चाहते पीना और पिलाना ?
बिना पीने के किसको क्या आनंद आयेगा !!
वही तो डूबेगा इसमें जो पीना सीख जायेगा ...!
बात उनकी सुनकर , कुछ सोच समझकर
मैंने दिया जबाब
हाथ जोड़ कर कहा ...मेरी बात सुनो जनाब
पीने -पीने में भी हैं बहुत अंतर
तुम पीते मयखाने में , मैं पीता निरंतर
बोले वो मेरी बात सुनकर
आज फिर तुमने झूठ कह दिया हंसकर
मैंने समझाया उन्हें बड़ी शराफत से
बात तुम सुनना मेरी नजाकत से
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
उन्होंने फिर कहा
मजा आ गया अहा ...!
मैंने फिर उन्हें समझाया
कुछ उनकी समझ में आया
बिना पीने के भला , कैसे जीते हो तुम !!!
फिर दबी आवाज में ....
क्या तुमने देखा नहीं है मयखाना ???
या तुम नहीं चाहते पीना और पिलाना ?
बिना पीने के किसको क्या आनंद आयेगा !!
वही तो डूबेगा इसमें जो पीना सीख जायेगा ...!
बात उनकी सुनकर , कुछ सोच समझकर
मैंने दिया जबाब
हाथ जोड़ कर कहा ...मेरी बात सुनो जनाब
पीने -पीने में भी हैं बहुत अंतर
तुम पीते मयखाने में , मैं पीता निरंतर
बोले वो मेरी बात सुनकर
आज फिर तुमने झूठ कह दिया हंसकर
मैंने समझाया उन्हें बड़ी शराफत से
बात तुम सुनना मेरी नजाकत से
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
उन्होंने फिर कहा
मजा आ गया अहा ...!
मैंने फिर उन्हें समझाया
कुछ उनकी समझ में आया
इश्क का जाम पीता हूँ मैं….
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना.
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
आज अपने कॉलेज के दिनों की डायरी देख रहा था तो यह कविता किसी एक पन्ने पर मिल गयी सोचा इसे आप सबके साथ साँझा करूँ ......!
इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
-हमारी लाईन पर हो..इसलिए बधाई. :)
युवा दिनों की कवितायेँ जीवन भर याद रहती है.. प्रभावित करने वाली कविता...
जवाब देंहटाएंआदरणीय केवल जी,बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने इश्क मजाज़ी का.
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
आप जो मय पीते हैं ,उसमे नशा बहुत ज़्यादा होता है.
ज़रा संभलियेगा.
भाई केवल राम जी दार्शनिकता का मनोरम पुट लिए बेहद सुंदर और सार्थक कविता बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंकेवलराम जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने इश्क मजाज़ी का.
प्रभावित करने वाली कविता...
sir ji ram ram ji
जवाब देंहटाएंbahut accha pite hein aap humko bhi peena sikha dijiye
जवाब देंहटाएंaapka aabhar
"इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार "
बड़े शराबी हो भाई ....जय जय शिवशंकर ...!
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
जवाब देंहटाएंपीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
केवल जी आपकी लेखनी बिना मयखाने के कितना अद्भुत चलती है. अति सुंदर.
बेहतरीन शब्द संयोजन।
जवाब देंहटाएंसच में प्यार के नशे से बढकर कोई नशा नही दुनिया में।
मय का नशा तो चंद घंटों का होता है पर ये वो शय है जो कभी नहीं उतरता।
चढते ही जाता है।
मुझे तो आपकी यह पंक्तियाँ सबसे अच्छी लगीं
जवाब देंहटाएंवो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
जानदार कविता है आपकी
वाह वाह और बस वाह
जवाब देंहटाएंसच इश्क से बढकर कोई नशा नहीं
waah waah waah..kya baat kya baat kya baat..ati sudar ati sundar ati sundar,bahut khub bahut khub bahut khub...kebal ram ji kya kabhita likhi hai aapne...acchhe achhe pine balo ki nasha utarr jayegi...
जवाब देंहटाएंपान, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू ना शराब, हमको तो नशा है ...
जवाब देंहटाएंरूप लावण्य की मूर्ति है वो
जवाब देंहटाएंइसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
wah.........kya andaj hai.thanks
चाहत... अपनी-अपनी.
जवाब देंहटाएंहोनहार
सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय कार्यप्रणाली
पियो जी भर के पीना
जवाब देंहटाएंइश्क में, या मयखाने में
जीवन में जो न उतरे कभी
किन्तु ध्यान रखना लुढ़क मत जाना !
इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
........वाह वाह और बस वाह
अब खुलने लगे है कॉलेज की डायरी के राज़
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ छिपा रखा है डायरी में जनाब ने
केवल जी
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
...शुभकामनाएं |
सही कहा वो पीना भी क्या पीना जो पीने के बाद उतर जाय :)
जवाब देंहटाएं"पीने-पीने में भी हैं बहुत अंतर
जवाब देंहटाएंतुम पीते मयखाने में,मैं पीता निरंतर"
बस यही अंतर तो आदमी को इन्सान और हैवान बनाता है.यही रूहानी जज्बा प्यार का आगाज है.केवल जी,बहुत ही सुंदर है "पीने" का यह अंतर.
वाह ...बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ...।
जवाब देंहटाएंआद.केवल जी
जवाब देंहटाएंहमे आदत थी पीने की उसने अपनी कसम देकर छुडा दी,
हम यारों की महफिल मे बैठे थे यारो ने उसी की कसम देकर पिला दी
शुभकामनाएं ......आद.केवल जी लगे रहिए
जवाब देंहटाएंवाह नशा हो तो ऐसा हो ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइश्क का नशा हर नशे से बढ्कर होता है फिर चाहे वो इश्क इन्सानी हो या रूहानी…………मुझे लग रहा था कि आखिर मे ये रुहानी तरफ़ मुडेगी मगर रह गयी इंसानी इश्क तक्……………मगर अर्थ एक ही निकलता है।
जवाब देंहटाएंक्या नशीली बात की आपने
जवाब देंहटाएंवो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
जवाब देंहटाएंपीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए...
और एक बार चढ़ जाये तो फिर कभी नहीं उतरता... बड़ी संजीदगी से दिल के जज़्बात को शब्दों में पिरोया है...
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
वाह... सुन्दर, खूबसूरत, शानदार, बेमिसाल.............शुभकामनाएं......
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
जवाब देंहटाएंपीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
.....क्या खूब! सही कहा है इश्क का नशा जीवन भर नहीं उतरता..बहुत सुन्दर
ultimate poem
जवाब देंहटाएंkya likha hain
aur sahi hain jo jaam peete ho usaki to baat hi kuch aur hain
वाह .. बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंवाह क्या मय है और क्या नशा...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत.
वाह केवल राम जी क्या बात कही है :-
जवाब देंहटाएं" इश्क का जाम पीता हूँ मैं
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..! "
" स्वयम नही पीता ओरो को ,किन्तु पिला देता हाला
स्वयम नही छूता ओरो को पर पकड़ा देता प्याला "
बहुत सुंदर !जितनी तारीफ करू कम है ---
राह पकड तू एक चलाचल
जवाब देंहटाएंपा जाएगा मधुशाला :)
पीने पिलाने पर भाई केवल जी ग़ालिब का यह शेर याद आ गया, जो कि आम है-
जवाब देंहटाएं" यह तो मेरे खून की शिद्धत है साकी, नशा जो होता शराब में बोतल न झूमती !"
आभार. ........शुभकामनायें.
सही कहा वो पीना भी क्या पीना जो पीने के बाद उतर जाय|अति सुंदर|
जवाब देंहटाएंइस प्रकार के नशे की वजह से ही आबकारी वाले बर्बाद हो गए है |
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंकॉलिज के दिनों में --उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
कॉलिज के बाद --उसकी ऑंखें बन जाती हैं भयखाना ।
pine vale kya jane ishq ki may kya hai
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
अच्छी कविता है।
keval ram ji
जवाब देंहटाएंapne nam ko sarthak karte huye ,apka
prayas bahut safal hai.../ sacha ishk ruhani hota hai, har-pal chetana men
rahane wala hi ishkkarta hai,anyatha to vasana hai .....
सुंदर अभिव्यक्ति। जिस नशे की बात आप कर रहें हैं, उसका नशा अगर हो जाए तो जीवन सफल हो जाए।
जवाब देंहटाएंbhut hi accha...
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
बहुत सुंदर बात कही.... बेहतरीन अभिव्यक्ति
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
जवाब देंहटाएंमुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
वाह वाह केवल जी बहुत सुंदर
इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना.
सुरूर अभी भी बाकी है. बहुत मज़ा आया यह कविता पढकर. मासूम सी सच्चाई पर. बधाई.
waah kewal ..'hangama hai kyun barpa thodi si jo pee lee hai ':)
जवाब देंहटाएंउस मय से नहीं मतलब दिल जिससे हो बेगाना ...
जवाब देंहटाएंमक़सूद है उस मय से दिल ही में जो खींचती है ...
बनी रहे वह मधुशाला जो ऐसी ग़ज़ल लिखवा दे !
"मेरी बात सुनो जनाब
जवाब देंहटाएंपीने -पीने में भी हैं बहुत अंतर
तुम पीते मयखाने में , मैं पीता निरंतर"
"वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए "
खूबसूरत शब्दों में खूबसूरत से एहसास...
और जो चढ़ के न उतरे ये ऐसा ही नशा है...
रोज़-रोज़ मयखाने जाने और पीने-पिलाने की जहमत भी न उठानी पड़ेगी !!
ईश्वर आपका नशा ऐसे ही बरकरार रखे...
ऐसे ही सदा पिलाए कि ज़िंदगी भर ये नशा न उतरे..!!
उनकी आँखों से बढ़कर कौन सा मयखाना है ....इश्क से बढ़कर कौन सा नशा !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेम कविता केवलराम जी ....
kewal ji
जवाब देंहटाएंbahut bahut hi achhi v pyaari postaisi ki peene walo ko bhi thodi samajh aajaaye .par unko smjhana itna aasan nhi hota .
वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए
ye panktiyan man ko chho gai .bahut hi behatreen vakabile tarrif.
badhai
poonam
is madira ka to nashaa hi kuchh aur hai..
जवाब देंहटाएंइश्क के मयखाने का जाम खत्म तो नहीं होता केवल भाई.
जवाब देंहटाएंनशे में टुन्न हो, तो नशा आपकी कविता में भी उतर आया है.क्या सभी को टुन्न करने का इरादा है.
आज अपने कॉलेज के दिनों की डायरी देख रहा था तो यह कविता किसी एक पन्ने पर मिल ....
जवाब देंहटाएंसरासर झूठ......
कौन है वो ......???????
बस एक अनुभूत सत्य जिसे जैसे मैंने जिया है हर वक़्त .....कोई नाम नहीं है "वह" .....बस एक प्रेरणा और सुंदर अहसास ....और क्या कहूँ ..!
जवाब देंहटाएंओशो कहते हैं,पीने वाले लोग बहुत मिलनसार होते हैं क्योंकि पीने का मज़ा ही चार लोगों के साथ है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियाँ हो रामसाहब।साधुवाद।जी आपने सत्य व सुन्दर कहा है कि प्रेम का नशा तो आजीवन शिर चढकर बोलता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रिय केवल राम जी
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति पुरे भाव से पढ़ा मैं आपकी कॉलेज वाली डायरी को सलाम करता हूँ जिसमे ये जाम समाहित है |
बहुत ही सुन्दर और मनोरम पंक्तियों का मेल है |
आपने तो संपर्क करना ही छोड़ दिया वैसे कोई बात नही , धन्यवाद |
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पे जरूर आयें और कृपया मेरी गलतियों से मुझे अवगत कराएँ |
बहुत खूब.......
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
bahut khoob aap sahi karte hain
badhai
rachana
मैं पीता निरंतर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
नशे के इसी अन्तर से कोई भोगी होता है कोई योगी होता है।
जवाब देंहटाएंकोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
जवाब देंहटाएंमेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
बहुत सुंदर ....
बहुत ही प्रभावी अभिव्यक्ति....
बधाई.
सही कहा है ! इश्क के नशे के आगे
जवाब देंहटाएंसब नशा फीका है .........
वाह ...बधाई हो! केवलराम जी मज़ा आ गया! क्या ख़ूब लिखा है आपने. तारीफ़ के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे.
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंइश्क के जाम में ही सबसे खूबसूरत नशा होता है.
दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
बहुत खूब!....कविता बहुत कुछ बयां कर रही है!
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अंदाज़ सच कहा आपने वो पीना भी क्या पीना जो कुछ देर में ही उतर जाये पीने का मज़ा तो उसमें हैं जिसका नशा बिन पिए भी उम्र भर चढ़ा रहे |
जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना |
इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
Thanks for sharing.
सच कहा आपने की वो पीना भी क्या पीना जो उतर जाए... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
उनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
केवल राम जी डायरी और चेक कीजिए....बड़ी काम की चीज़ें है उस डायरी में एक-एक कर के प्रस्तुत कीजिए.....पीना और पिलाना आपने कुछ समझाया..बढ़िया मजेदार रचना बधाई
जवाब देंहटाएंकेवलराम जी नमस्ते!
जवाब देंहटाएं"वो पीना भी क्या पीना , जो पीने के बाद उतर जाये
पीना तो वह है , जो बिना मयखाने के चढ़ जाए"
भाई वाह....आपने भी क्या कमाल जवाब दिया है....
इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
bahut badhiya Kewal..
वाह,वह पीना भी क्या जो विना मयखाने के ही चढ जाए।छा गए गुरू।चलते-चलते इतने दूर चले गए कि 'प्रेम सरोवर" में डुबकी लगाना ही शायद भूल से गए हो। अच्छा लिखा है आपने।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार
उसकी आँखें हैं मेरी मयखाना
मुझे बेहोश करता उसका मुस्कुराना
कोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
wo din bhi kuchh ajeeb the ,main bhi atit me chali gayi ,bahut achchha kiya likhkar ,itni sundar baate hai ,nasha khoobsurat hi hona chahiye .
बहुत सार की बात कह दी वो पीना क्या जो पीने के बाद उतर जाये। असली नशे की पूर्ति तो वह है जिससे रोम रोम खिल गाता रहता है।
जवाब देंहटाएंआप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
beshak pahle "BLOGAACHAARYA BANENGEN AAP -hauslaa rakhiye blogiyaa bhaai -
जवाब देंहटाएंchithhthhe kaa apnaa nashaa hai ,chithhthhaa -khori kyaa shraab -khori se kisi bhi maayne me kam Hai ?.
pahle baat aappki rachnaa ki -uspe ek shair -
JAAM KO TAKRAA RHAA HOON JAAM SE ,
KHELTAA HOON GARDISHE AIYAAM SE ,
UNKAA GAM UNKAA TASVVUR ,UNKI YAAD ARE ,KAT RAHI HAI ZINDAGI AARAAM AE ..
bachchanji hi kaun si shraab peete the -
fir bhi kahaa -jahaan kahin mil baithhe ham tum vahin rahi ho madhushaalaa ."ISHK KAA JAAM PEETAA HOON ,SARE AAM PEETAA HOON
veerubhai
पीते तो हम भी हैं पर बिल्कुल खालिस ... पानी पीते हैं ...
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी कविता ...
सर जी नई पोस्ट दाल दीजिए...
जवाब देंहटाएंkyu nhi pite ho tum
जवाब देंहटाएंvaah
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुंदर कविता पढ़ने को मिला जिसके लिए धन्यवाद! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,बेहद सुंदर और सार्थक कविता... बधाई
जवाब देंहटाएंरूप लावण्य की मूर्ति है वो
जवाब देंहटाएंइसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..
ये भी अच्छी रही.
"इश्क का जाम पीता हूँ मैं
जवाब देंहटाएंउनके ख़्वाबों के नशे में जीता हूँ मैं
मुझे नशा है इतना बेशुमार
नहीं जिसका कोई पारावार "
waah ..............bahut sunder likha aapne .
आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया है!
जवाब देंहटाएंआपका हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंkewaljee jitne sunder aapke jajwat hai utnee hee sunder unakee abhivykti hai .
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंश्रंगार की अच्छी अनुभूति..बधाई! मैंने श्रंगार जब भी लिखा वह गड़बड़ा गया। गड़बड़ श्रंगार का एक मुक्तक प्रस्तुत है।
जवाब देंहटाएं--------------------------
प्यार का मौसम सुहाना हूँ।
रोज मिलने का बहाना चाहता हूँ॥
नल में पानी कई दिन से था नहीं-
आज आया है नहाना चाहता हूँ॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
जवाब देंहटाएंइसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
केवल भाई 'रूप लावण्य' में सुग्रीव बन ज्यादा मस्त मत हों,वर्ना रामजी को 'लक्ष्मण'जी को भेजना पड़ेगा.आखिर 'सीता'जी की खोज करनी है.
बड़ी गलत बात है,आप ओरों के ब्लॉग पर जा रहें हैं,पर मेरे ब्लॉग पर नहीं आ रहें हैं.ये बहुत नाइंसाफी है.जो 'राम' जी ही सुग्रीव बन रहें हैं.
केवल जी अवकाश से लौटा तो आप कि सुंदर कविता पढ़ के सारी थकान उतर गयी.
जवाब देंहटाएंदुनाली पर आएं-
जवाब देंहटाएंकहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की
पीने से किडनी खराब हो जाती है...
जवाब देंहटाएंपता है कि नहीं???
नशे में रहना छोडिये अब तो होश में आईये...
जवाब देंहटाएंपियो और जियो का नियम अब कारगर नहीं...
जवाब देंहटाएंमुझे पता है आप तंग आ चुके हैं मेरे कमेंट्स से...
जवाब देंहटाएंपर.... क्या करूँ....
100वें कमेन्ट तक इंतज़ार नहीं कर सकता था ना... इसलिए 4-5 कमेन्ट कर दिए... एक साथ...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ शतक की बधाई...
आप हो गए ब्लोगिंग के सहवाग.
दुनाली पर आएं-
कहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की
100 ke comment ke liye bdhai kewal bhai
जवाब देंहटाएंसौ में दो मेरी भी है,और आपकी ?
जवाब देंहटाएंकहाँ हों 'सुग्रीव'जी,होश में आओ
सुग्रीव से राम ही नहीं 'केवल राम'बन जाओ.
'keval ram' ban kar hi aage badengen aap.
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
जवाब देंहटाएंइसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो ..!
अच्छा तो आजकल नशा करने लगे हो रूप का बेटा सुधर जाओ नही तो पछताओगे। शुभकामनायें।
keval ram ji,kahan hain aap.
जवाब देंहटाएंnayee post ka intzaar hai.
jaam pila ke chhup gaye ho.
लगता है आप सबने अब बहुत जाम पी लिया अब पोस्ट डाल देता हूँ ....अब इन्तजार खत्म...आप सबका शुक्रिया इस स्नेह और सम्मान के लिए ...!
जवाब देंहटाएंप्रिय केवल राम जी -आप का इश्किया जाम मदहोश करने वाला प्यारी रचना खूबसूरत -आइये लोगों को इसी तरह मदमस्त करते बढ़ें -निम्न प्यारी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंकोयल सा मधुर कंठ , जब उसका गूंजता
मेरा रोम - रोम गाता खिलता
रूप लावण्य की मूर्ति है वो
इसलिए मेरी नशे की पूर्ति है वो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
अच्छा है यह इश्क का जाम पीना ...!
जवाब देंहटाएंएक जाम हम भी पीते हैं
जवाब देंहटाएंजिसे हम भक्ति का नाम देते हैं
ना मैं सीता ,ना राधा ,ना मीरा हूँ
फिर भी उस श्याम के नाम का
जाम सुबह शाम पीते हैं .....अनु