पिछले दो दिनों से देख रहा हूँ कि हर तरफ शुभकामनाओं को बांटने का सिलसिला अनवरत रूप से जारी है , और यह होना भी चाहिए . क्योँकि हम सब समाज का हिस्सा हैं और समाज के हर व्यक्ति के हितों की चिंता करना हमारा कर्तव्य है . किसी हद तक जब किसी को शुभकामनायें देते देखता हूँ तो अक्सर उसके चेहरे के भाव जरुर पढता हूँ और पता चल जाता है कि सामने वाला व्यक्ति किस भाव से इस व्यक्ति के सामने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर रहा है . खैर यह हर व्यक्ति का अपना व्यक्तिगत मामला हो सकता है और मुझे कोई हक नहीं किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का और मैं करना भी नहीं चाहता . क्योंकि मेरे लिए स्वतंत्रता का मतलब कुछ अलग है जिसे मैं कुछ इस प्रकार से सोचता हूँ . स्वतंत्रता शब्द को देखें तो यह स्व और तंत्र के मेल से बना है ...स्व का मतलब है निजी या व्यक्तिगत , और तंत्र का मतलब है व्यवस्था, यानि स्वतंत्रता शब्द का मतलब हुआ अपनी एक व्यवस्था . एक ऐसी व्यवस्था जिसके तहत हम अपना कार्य करते हैं और अगर हमें कुछ सही नहीं लगता तो हम उसे बदल देते है . जिस व्यवस्था में किसी के हित को ठेस पहुँच रही है , कोई असहज महसूस कर रहा है हम उस व्यवस्था में परिवर्तन कर देते हैं तो काफी हद तक तो स्वतंत्रता भी सही है और यहाँ पर जब शुभकामनाओं दी जा रही है तो उन शुभकामनाओं में "स्वतंत्रता" शब्द का प्रयोग बहुतायत रूप से किया गया है . हर किसी का अपना नजरिया है और हर किसी की अपनी सोच है और यह अच्छी बात भी है होना भी चाहिए यह सब , हम सब को एक सूत्र में बाँधने के लिए यह सब जरुरी भी है .
लेकिन जब गहराई से सोचता हूँ तो पाता हूँ कि आखिर हम किस स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं ? क्या उस स्वतंत्रता की जिस स्वतंत्रता का सपना रानी लक्ष्मी बाई , तांत्या टोपे , भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव , चंद्रशेखर आजाद , महात्मा गाँधी , सुभाष चन्द्र बोस , सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे ना जाने कितने आजादी के दीवानों ने देखा था . क्या हम उस स्वतंत्रता को मना रहे हैं ? या जो स्वतंत्रता आज हमारे सामने है उसे मना रहे हैं ? यह बहुत विचारणीय बिंदु है . स्वतंत्रता के ६५ वर्षों में हमने क्या उन लक्ष्यों की तरफ कदम बढाया जिन लक्ष्यों के लिए उन वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था ? आखिर हमें ऐसी स्वतंत्रता की आवश्यकता क्योँ महसूस हुई थी जिसके लिए हमने अपने प्राणों तक की परवाह नहीं की , इन बातों पर गहनता से विचार करने की आवश्यकता है और फिर विचार के बाद जो निष्कर्ष निकलेगा उस पर त्वरित अमल करने की आवश्यकता है .समय और स्थिति के अनुसार हर किसी का निष्कर्ष अलग हो सकता है लेकिन जो मूल बात होगी वह यही कि जिस स्वतंत्रता के तहत हम अपना जीवन जी रहे हैं क्या वास्तविकता में यह सही है . जब कोई व्यक्तिगत रूप से सोचेगा तो हो सकता है कि यह उसे सही भी लगे या ना भी लगे लेकिन जब हम सामूहिक परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो पायेंगे कि काफी हद तक उन लक्ष्यों की तरफ नहीं बढ़ पाए जिन लक्ष्यों को हमने स्वतंत्रता की जंग के वक़्त अपने सामने रखा था ? लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेवार है , हम ,समाज ,सरकार, या फिर हमारा प्रशासन . सबकी अपनी अपनी भूमिका है ,सबके अपने अपने कर्तव्य हैं .
हमने अंग्रेजों से लड़ कर राजनीतिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली लेकिन आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता का जिम्मा हमारे हाथ में था ? स्वतंत्रता के दिन से लेकर आज तक हम राजनीति में ही पड़े रहे और सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के बारे में हमने सोचा ही नहीं , आज हमारे देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है ? यह आप भली प्रकार जानते हैं . आर्थिक रूप से अगर आज भी हम देखें तो हम तब तक खुद को आर्थिक रूप से संपन्न नहीं कह सकते जब तक हमारे देश में एक गरीब व्यक्ति दो वक़्त की रोटी के लिए किसी के सामने हाथ फैला रहा है , एक मजदूर को उसकी मेहनत के बदले मजदूरी कम दी जा रही है , एक अबोध बालक का अपहरण हो रहा है , और भी ना जाने कितनी समस्याएं हैं जो आये दिन हम जिनसे रूबरू होते हैं . अगर सामाजिक स्थिति की बात की जाये तो आज भी हमारे देश में जाति - पाति के नाम पर , वर्ग के नाम पर , ऊँच - नीच के नाम पर , भाषा के नाम पर ,धर्मों के नाम पर लोग एक दुसरे का विरोध करते हैं , और फिर भी हम खुद को स्वतन्त्र कहते हैं .जहाँ तक सिर्फ अपने नियमों के दृष्टिकोण से देखें तो वहां तक "स्वतंत्रता" सही लग रही है . क्योँकि हमारा अपना नियम है , हम अपने नियम को मनवाने के लिए किसी का भी कतल कर सकते हैं, हम किसी को भी लूट सकते हैं और भी ऐसा बहुत कुछ कर सकते हैं जिससे हमारे व्यक्तिगत हितों कि पूर्ति हो और काफी हद तक हर स्तर पर यह हो भी रहा है , और ना जाने कब तक होता रहेगा .
होना तो हमें "आजाद" था ..लड़ी तो हमने आजादी की लड़ाई थी . लेकिन आज तक हम आजादी की तरफ कदम नहीं बढ़ा पाए , हम सोच ही नहीं पाए कि हमें उन्मुक्त जीवन जीना है जिस "वसुधैव कुटुम्बकम" की बात यहाँ की जाती थी उसे साकार करना है . लेकिन अफ़सोस होता है मुझे, हम आज तक उस दिशा में बढ़ ही नहीं पाए हमने कभी प्रयास ही नहीं किया . बस एक राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गयी , हम संतुष्ट हो गए और उस राजनीतिक स्वतंत्रता का लाभ आखिर किसे मिला यह आज हमारे सामने है . आजादी तो दूर रह गयी हमसे उसकी तरफ हमने सोचा ही नहीं . अगर आज हम आजाद होते तो सामने वाले व्यक्ति का चेहरा हमें विद्रूप नहीं लगता , हम अपने घरों के सामने इतनी बड़ी दीवारें खड़ी नहीं करते , सरहदों पर यह खून खराबा नहीं होता ........!
शेष अगले अंक में ......!
विचारणीय आलेख है। वसुधैव कुटुम्बकम के गंतव्य तक पहुंचने से कहीं पहले व्यक्तिगत और वैचारिक स्वतंत्रता की सीढी को पार करना ही पडेगा।
जवाब देंहटाएंविश्व बंधुत्व प्रस्फुटित हो।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने!
जवाब देंहटाएं--
आजादी की 65वीं सालगिरह की बहुत-बहुत मुबारकवाद!
स्वतन्त्रता अब स्वछन्दता बन गई है!
जवाब देंहटाएं--
आजादी की 65वीं सालगिरह की बहुत-बहुत मुबारकवाद!
आज आजादी या स्वतंत्रता के मायने सिर्फ अपनी आजादी तक सिमट कर रह गया है. ऐ मेरे वतन के लोगों ----की पुकार कहीं झूठे दिखावो या वायदों मे दब कर रह गया है. देश की आजादी के इतिहास को पुन-जागृत करने की जरूरत है. तभी हम वसुधैव कुटुम्बकम को यथार्थ मे पूर्ण कर पायेगें.
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें... :)
जवाब देंहटाएंजय हिन्द...
हमारे देश को स्वतंत्रता तो मिली ही नहीं यह तो सिर्फ सत्ता हस्तांतरण था विभिन्न संधियों के तहत .
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत हूँ .....! और फिर भी हम खुद को आजाद मानते हैं ......!
जवाब देंहटाएंआजादी तो दूर रह गयी हमसे उसकी तरफ हमने सोचा ही नहीं . अगर आज हम आजाद होते तो सामने वाले व्यक्ति का चेहरा हमें विद्रूप नहीं लगता , हम अपने घरों के सामने इतनी बड़ी दीवारें खड़ी नहीं करते , सरहदों पर यह खून खराबा नहीं होता
जवाब देंहटाएंwah Ramji wah! padhkar desh aur samaj ke lie fir se nae josh ke sath kuch kar gujarne ki icha fir se jagrat ho uthee. tahe-dil se aapka shukriya.
हमने अंग्रेजों से लड़ कर राजनीतिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली लेकिन आर्थिक और समाजिक स्वतंत्रता का जिम्मा हमारे हाथ में था ? स्वतंत्रता के दिन से लेकर आज तक हम राजनीति में ही पड़े रहे और समाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के बारे में हमने सोचा ही नहीं , आज हमारे देश की समाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है ?...
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ... इस ओर महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है... पुरानी पीढ़ी और अधिक आयु के अनुभवियों को तो हम काफी देख चुके अब युवा पीढ़ी को अवसर मिलना चाहिए नेतृत्व का शायद एक नया और सटीक हल मिल सके इन समस्याओं का...
स्वतंत्रता को ने अर्थ और सन्दर्भ में देखने की कोशिश.... बढ़िया आलेख...
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण...गहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....
जवाब देंहटाएंसार्थक विश्लेषण्।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने इस प्रस्तुति में आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही गंभीरता से विश्लेषण किया है आपने...आभार
जवाब देंहटाएंसारगर्भित लेख...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें के बहाने समय कम से कम शहीद याद तो आते हैं !
जवाब देंहटाएंगोरे अंग्रेज़ गए और काले अंग्रेज़ राज कर रहे है... जनता तो वहीं की वहीं है :(
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने!
जवाब देंहटाएंआज का लेख पसंद आया है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख,
जवाब देंहटाएंजय हिन्द...
Nicely written and the article is thought provoking, waiting for the second part...
जवाब देंहटाएंसुंदर विवेचन ...... सच है बहुत सी बेड़ियाँ आज भी पड़ी हैं हमारे मन मस्तिष्क पर
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंbahut badiya silsilevar vishleshan....abhar..
जवाब देंहटाएंभावना से भी बड़ा होता है कर्तव्य .यही है भारतीय दृष्टि .आज़ादी के सन्दर्भ में सार्थक सवाल उठाती पोस्ट .
जवाब देंहटाएं. August 16, 2011
उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सोमवार, १५ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, १६ अगस्त २०११
त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .
"जब हम सामूहिक परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो पायेंगे कि काफी हद तक उन लक्ष्यों की तरफ नहीं बढ़ पाए जिन लक्ष्यों को हमने स्वतंत्रता की जंग के वक़्त अपने सामने रखा था ?"-एक यक्ष प्रश्न जिसे आज भी समाधान का इन्तजार है.आपने सही कहा है कि "राजनीतिक स्वतंत्रता तो प्राप्त कर ली" लेकिन इसके बाद "आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता" (जो हमारा काम था) की प्राप्ति के लक्ष्य से हम भटक गए.शायद हम उस मूल भावना से ही भटक गए जिसके लिए असंख्य लोगों ने अपने जीवन की आहुति दी थी.आज सेवक शासक है,रक्षक भक्षक है-सब उल्टा-पुल्टा.आज शहर सत्ता का केंद्र है और गाँव जिसे भारत की आत्मा का निवास कहा जाता है,आज भी अपनी सम्पन्नता के साथ विपन्नता की मार झेल रहा है.देश को अन्न खिलानेवाले जहर खा रहे हैं,देश को वस्त्र धारण करानेवाले,ढंग के कपड़ों के लिए तरस रहे हैं.आखिर यह कैसी आजादी है? जहाँ आज भी आदमी हरपल किसी-न-किसी गुलामी का शिकार है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रयास है.समाज को आइना दिखता आलेख.
सार्थक प्रस्तुति ,सही चिन्तन और विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण..सारगर्भित लेख...सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंkewal ji
जवाब देंहटाएंbahut bahut hi behatreen aalekh sabki aankhen khol dene wala
bahut hi sahjta ke saath aapne swatantrata ka arth samjhaya hai jo ki bahut hi kabile tarrif hai.istne bdhiya lekh ke liye mere paas shabd nahi hai hai.
behad hi prashanshniy aalekh
bahut bahut badhai
poonam
ओ माँSSSSए मे्रा रंग दे बसंती चोला।
जवाब देंहटाएंबढिया है.
जवाब देंहटाएंek naya vishleshan... kya hum wakai azad hain? food for thought..
जवाब देंहटाएंसटीक व्याख्या.
जवाब देंहटाएंहम आजाद कहां हुए हैं.....
जवाब देंहटाएंगुलामी हावी है......
अंग्रेज गए तो हम अपनी ही आदतों के गुलाम हो गए।
बहरहाल, अच्छी प्रस्तुति।
आजादी की लडाई जारी है । देखिये कब हम पूर्ण रूप से आजाद होते हैं । अभी तो बादल काले ही घिरे हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और विषद विश्लेषण...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभाई केवल भटकते भटके आपके ब्लॉग पर पहुंचा पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा आपके इतने सारे लेखों को तो एक ही समय में नहीं पढ़ पाउँगा परन्तु फालोवर बनकर हमेशा वक्तानुसार आता रहूंगा और आपसे जुदा रहूंगा , वैसे आपसे मिलने की हार्दिक इच्छा रहेगी !
जवाब देंहटाएंया जो स्वतंत्रता आज हमारे सामने है उसे मना रहे हैं ? यह बहुत विचारणीय बिंदु है . स्वतंत्रता के ६५ वर्षों में हमने क्या उन लक्ष्यों की तरफ कदम बढाया जिन लक्ष्यों के लिए उन वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था ? आखिर हमें ऐसी स्वतंत्रता की आवश्यकता क्योँ महसूस हुई थी जिसके लिए हमने अपने प्राणों तक की परवाह नहीं की
जवाब देंहटाएंprashn vicharniye hai ,bahut sahi likha hai aapne .
आज़ादी का सही अर्थ आज तक भारतवासी समझ नहीं पाए ... समझेंगे भी कैसे ... हम तो आज तक गुलाम ही हैं ... धर्मान्धता के, जात--पात के, प्रांतीयता के, भ्रष्टाचार के, गरीबी के ... नहीं गरीबी धन की नहीं ... हम मानसिक रूप से दिवालिये हैं ... मानसिक स्वतंत्रता जब मिलेगा ... तब हम खुद को स्वतंत्र कह पाएंगे ...
जवाब देंहटाएंIndranil Bhattacharjee .."सैल" जी
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सही कहा है ...लेकिन इन सब बातों की तरफ अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता ....हमारे पास आजादी आई कहाँ है जो हम खुद को आजाद कहते हैं ? ....वास्तविकता में आजादी वह नहीं है जिसे हम समझ रहे हैं ....! अगली पोस्ट में आजादी पर विस्तार से चर्चा करूँगा ...आप सबका आभार
कल-शनिवार 20 अगस्त 2011 को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया अवश्य पधारें.आभार.
जवाब देंहटाएंअगर आज हम आजाद होते तो सामने वाले व्यक्ति का चेहरा हमें विद्रूप नहीं लगता , हम अपने घरों के सामने इतनी बड़ी दीवारें खड़ी नहीं करते , सरहदों पर यह खून खराबा नहीं होता ........!
जवाब देंहटाएंsochane par vivash kartee hai ye panktiya.....
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ सार्थक लेख ! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bilkul theek
जवाब देंहटाएंvastvik aazadi abhi door hai
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनमस्कार....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
वहा से मेरे अन्य ब्लाग लिखा है वह क्लिक करके दुसरे ब्लागों पर भी जा सकते है धन्यवाद्
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
बहुत सटीक लिखा है आपने,
जवाब देंहटाएंसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बस एक राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गयी , हम संतुष्ट हो गए..
जवाब देंहटाएंअगर आज हम आजाद होते तो सामने वाले व्यक्ति का चेहरा हमें विद्रूप नहीं लगता , हम अपने घरों के सामने इतनी बड़ी दीवारें खड़ी नहीं करते , सरहदों पर यह खून खराबा नहीं होता ........!
शेष अगले अंक में ......![Image]
आक्रोश भरे स्वर ....
प्रभावपूर्ण .....
अगले अंक का भी इन्तजार है ......
बहुत बढ़िया लिखा है आपने |पूर्ण रूप से सहमत हूँ |हम सभी को आत्म-मंथन करने की जरुरत है तब आजादी का सही अर्थ मिले.
जवाब देंहटाएंकेवल राम जी,
जवाब देंहटाएंइस ओजस्वी लेख के लिए आपको बधाई देता हूँ !
आपने सही लिखा है आज हम ६५ सालों में भी आज़ादी के उस सपने को पूरी तरह प्राणवान नहीं कर पायें हैं जिसके लिए उन शहीदों ने हँसते हँसते
अपने प्राणों को भारत माँ के चरणों में न्योछावर कर दिया था ! सामाजिक और आर्थिक आजादी मिलने तक यह आजादी अधूरी है !
ढेरों शुभकामनाएँ !
आप मेरे ब्लॉग पर आये बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंमैं सोच रहा था कि कहीं मुझे भुला तो नहीं दिया
आपने.केवल भाई, धर्य की यूँ लंबी परीक्षा न
लिया करों.है तो हम सभी स्वतंत्र,पर प्रेम के
बंधन में भी बंध हुए है कहीं न कहीं.
इस सुन्दर प्रस्तुति में आपने गहन चिंतन किया है.
आभार.
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
जवाब देंहटाएंहम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।
आजदी मिलेगी और वो सब हमारे सबके सांझे प्रयास से मिलेगी जब हम अपनी सोच को एक सकारात्मक दिशा देंगे और जब आवाज उठ गई है तो देर हो सकती है पर अंधेर नहीं देश को अगर बदलना ही है तो हम सबको बदलना होगा क्युकी देश हम सब से है |
बहुत सुन्दर विचार |
आपका विश्लेषण प्रभावित करता है।
जवाब देंहटाएंकेवल राम जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लाग में आए और अपना अमूल्य समय देते हुए आपने स्नेह के जो बोल लिखे हैं मैं बहुत आभारी हूँ
मैं चाहूँगा की आप और आपके यहाँ जितने भी ब्लागर मित्र आ रहे है आपके मंच में वे सब भी जरुर आये और मुझे अपने दोस्तों की पंक्तियों में शामिल करे मेरे ब्लॉगों का अनुसरण करके मुझे बहुत खुशी होगी की मेरे ब्लाग पर भी महानुभव ब्लागर आये और अपने ज्ञान के चंद अमूल्य शब्दों से मेरे ब्लाग की शोभा बढ़ाये
मेरे ब्लाग का लिंक नीचे है
MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
सही लिखा है आपने- हमें केवल राजनैतिक आज़ादी मिली है।
जवाब देंहटाएंभारत का प्रजातांत्रिक ढांचा न जाने कब सुगठित और सुदृढ़ होगा !
बहुत सच कहा है हमें आजादी तो मिली केवल राजनैतिक सामाजिक नहीं बहुत ही अच्छा लिखा है भाई केवल राम जी
जवाब देंहटाएंhiiii
जवाब देंहटाएं