जीवन की नियति और परिणति
क्या है, इस बात से सभी भली भांति अवगत हैं. लेकिन
फिर भी हम सब कुछ जानते हुए अनजान बने रहते हैं. सब कुछ हमारे सामने घटित होता है. फिर भी हम मूकदर्शक की भूमिका निभाते हैं. हमारे सामने ना जाने कितने ऐसे
अवसर आते हैं जब हम जीवन और इसकी महता को नजर अंदाज करते हैं, और बहुत कम बार ऐसा होता है कि हम जीवन को महता दें और फिर कोई निर्णय लें. जहाँ तक मानव जीवन का सम्बन्ध है, उसे परमात्मा ने
चेतना बख्शी है. उसके जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन इनसान है कि वह
सबसे पहले तो भौतिकता में रमना चाहते हैं. खूब सारा यश अर्जित करना चाहते हैं, धन-दौलत, महल-माड़ियां, कुटुम्ब-कबीला न जाने कितने भ्रम हमारे सामने हैं. हालाँकि यह भी हमारे
जीवन के साथ गहरा ताल्लुक रखते हैं, और इन सभी का सृजन मानव ने अपने आपको सुखी
करने के लिए किया है. लेकिन जब अपने वास्तविक लक्ष्य को भुला दिया जाता है और सब
कुछ अर्जित किया जाता है तो फिर क्या उसे हम समझदारी कहेंगे?
किसी से पूछो कि आपके
जीवन का लक्ष्य क्या है? आप जीवन में क्या हासिल करना चाहते हैं? कभी
आपने यह सोचा कि आपको यह जीवन क्योँ मिला है? तो हर
व्यक्ति का जबाब अलग-अलग होता है. ऐसा जबाब सुनकर कभी मन हर्षित हो जाता है तो कभी
निराशा हाथ लगती है और फिर सहज ही ध्यान जाता है, हमारे पास उपलब्ध जो धर्म ग्रन्थ
है, उनकी तरफ या फिर संतों की जो रचनाएं और उनमें वर्णित जो जीवन दर्शन हमारे पास
है उनमें हम जीवन का सार ढूंढते हैं. लेकिन फिर भी हमारी समस्या का समाधान नहीं
होता, वह वैसी की वैसी बनी रहती है और हमारा जीवन सफ़र चलता रहता है. ना जाने कब
से हम इस विचार को अपने मन में धारण करते आये हैं कि इस जीवन का कुछ तो लक्ष्य है.
लेकिन फिर भी हमारा अनजान बना रहना कष्ट का कारण बनता है हमारे लिए, जबकि हमारे धर्म ग्रन्थ हमें बार-बार चेतन करते हैं कि ‘मानुष जन्म दुर्लभ
है, होत ना बारम्बार’ जो है ही दुर्लभ, जो फिर दुबारा नहीं हो सकता जिसकी प्राप्ति सौभाग्य से हुई है हम ऐसे जीवन
का लक्ष्य क्या निर्धारित करें? यह यक्ष प्रश्न हमें बैचेन करता रहता है. जिनकी
बैचेनी बढ़ जाती है वह तो इसका हल तलाशने की कोशिश करते हैं, और जो इस बैचेनी को
महसूस नहीं कर पाते वह गुमनाम जीवन जी कर काल का ग्रास बनते हैं. जन्म तो लिया था
आत्मा का मिलन परमात्मा से हो इसके लिए, आवागमन के चक्कर
से मुक्ति मिले इसके लिए, लेकिन हुआ इसके विपरीत ‘ना
खुदा ही मिला ना विसाले सनम’ ना संसार में सही ढंग से जी सके और ना कुछ कर सके. ‘ना
माया मिली ना राम’ और बिना कुछ किये पहुंच गए शमशान. जीवन को जब गहराई से सोचा
जाता है तो इसकी महता का पता चलता है. लेकिन हमारे पास ऐसा अवसर कम ही बन पाता है
जब हम गहराई से इसके बारे में सोचें. लेकिन हमारे धर्म-ग्रन्थ, ऋषि-मुनि, हमेशा जीवन की वास्तविकता को समझने
की कोशिश करते रहे, और जो कुछ उन्होंने अनुभूत किया उसे
हम सभी के साथ सांझा करने का प्रयत्न करते रहे. आज भी उनके द्वारा रचे गए ग्रन्थ
हमारा मार्गदर्शन करते हैं.
हमारे धर्म ग्रंथों में जीवन का लक्ष्य चतुर्वर्ग फल प्राप्ति बताया
है और वह चतुर्वर्ग हैं, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष.
यहाँ तक कि हमारे साहित्य शास्त्रियों ने भी जब साहित्य के प्रयोजन पर विचार किया
तो उन्होंने ने भी इस चतुर्वर्ग फल प्राप्ति को साहित्य का प्रयोजन निर्धारित किया.
अलंकार सिद्धांत के उदभावक आचार्य भामह का कथन ध्यान देने योग्य है:-
धर्मार्थकाममोक्षाणां
वैचक्ष्व्यं कलासु च.
प्रीतिं करोति कीर्ति च
साधुकाव्यनिबन्धनम्.
हमारे साहित्य में जीवन सन्दर्भों को बखूबी उद्घाटित किया गया है.
पहले तो जीवन को चार भागों में बांटा गया (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ
और संन्यास) और उन्हें जीवन की चार अवस्थाएं भी कहा
जाता है. जीवन की चार अवस्थाएं और जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष)
कुल मिलाकर जीवन को अपने लक्ष्य की तरफ जन्म से ही अग्रसर रखते हैं. लेकिन मनुष्य
फिर भी ध्यान नहीं दे पाता. सब कुछ व्यवस्थित होते हुए भी वह अव्यवस्था का शिकार
बना रहता है. सब कुछ स्पष्ट होते हुए भी वह भ्रम में रहता है. इसे हम क्या कहें? मानव की नादानी या फिर, मानव की अज्ञानता? कारण कुछ भी हो हमें जीवन सन्दर्भों की तरफ अपन ध्यान लगाना चाहिए. हम
जीवन को जितना समझने की कोशिश करेंगे उतनी ही हमें इसकी महता का अहसास होगा. शेष अगले अंक में........!
बहुत सुन्दर मित्र अगले अंक का इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंआज के समाज का सही विश्लेषण , सारगर्भित पोस्ट आभार
जवाब देंहटाएंप्रकृति ही अपना कार्य करती है, सही मायनों में हम मूकदर्शक ही हैं।
जवाब देंहटाएंजीवन व्यर्थ नहीं है मरुस्थल में यदि न भटका जाए . हम सभी सार्थक होने की संभावना को लेकर ही जन्म लिए हैं.थोड़ी हिम्मत से सागर के करीब पहुंचा जा सकता है जिसके लिए हमें अपने उद्देश्य को निर्धारित करना होगा. सार्थक व सुन्दर आलेख.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर और सार्थक पोस्ट! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
सारगर्भित आलेख अगले भाग का इंतज़ार्।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..पोस्ट आभार
जवाब देंहटाएंज्यादातर निरुद्देश्य ही जीवन जी लेते हैं ... अच्छी विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन की सुंदर विवेचना सारगर्भित आलेख में प्रस्तुत की है.
जवाब देंहटाएंबधाई.
बहुत सुंदर, अगली कड़ी का इंतजार
जवाब देंहटाएंहम जीवन को जितना समझने की कोशिश करेंगे उतनी ही हमें इसकी महता का अहसास होगा ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बात कही है जन्म तो लिया है आत्मा का मिलन परमात्मा से हो इसके लिए , आवागमन के चक्कर से मुक्ति मिले इसके लिए... प्रयासरत भी हैं...
सारगर्भित लेखन...अगले अंक का इन्तजार है...
हमारे पूर्वजों ने वास्तव में ही कहीं गहन चिंतन किया है
जवाब देंहटाएंगहन चिंतन ..आगे का पढते हैं.
जवाब देंहटाएंजीवन का दिशा देगा आपका यह आलेख.. संग्रह कर लिया है..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति,पढकर बहुत अच्छा लगा..अगले अंक के इन्तजार में फिर मिलते...
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट में स्वागत है...
आज के समय में ऐसी गहन सोच वाली बातें बहू कम ही देखने और सुनने को मिलती है बहुत अच्छा लिखा है आपने आपकी इन बातों से.....
जवाब देंहटाएं" जन्म तो लिया था आत्मा का मिलन परमात्मा से हो इसके लिए , आवागमन के चक्कर से मुक्ति मिले इसके लिए , लेकिन हुआ इसके विपरीत " ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम " ना संसार में सही ढंग से जी सके और ना कुछ कर सके . "ना माया मिली ना राम " और बिना कुछ किये पहुंच गए शमशान . जीवन को जब गहराई से सोचा जाता है तो इसकी महता का पता चलता है .
आपका गहन चिंतन साफ दिखाई पड़ता है अगले अंक का इंतज़ार रहेगा।
बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! सूचनार्थ!
बहुत कुछ ऐसा है जो हमारे हाथ नहीं ...पर हम मानें तो .... सुंदर चिंतन
जवाब देंहटाएंहमारे बस में है ही क्या ?
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख
अगली कड़ी का इन्तजार है
हम जीवन को जितना समझने की कोशिश करेंगे उतनी ही हमें इसकी महता का अहसास होगा .
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है। बिल्कुल सही। अगले अंक का इंतज़ार।
इतना कुछ पढ़ के लगता है कैसे हमारे पूर्वजों ने जीवन और प्राकृति को गहरे से आत्मसात किया होगा ... प्राकृति अनुसार जीवन पद्धति ....
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद आया पढ़ के ....
bahut badhiya bhai ji...
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
bahut sunder post ...prakruti apna sandesh sadaiv de deti hai ......hum hi hai jo uske sanket ke nahi pahachaan pate hai ...........badhai .
जवाब देंहटाएंagle aank ka intjar rahega .
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ... आभार ।
जवाब देंहटाएंसही विश्लेषण , सारगर्भित पोस्ट
जवाब देंहटाएंअगले अंक का इन्तजार रहेगा
बहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर-. लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंभौतिक सुखों का भ्रमजाल इतने रंगीन तानो-बानो से बुना हुआ है कि मनुष्य अपने आप को भूला हुआ है.ऐसा नहीं कि स्वयम के बारे कभी सोचता ही नहीं.कई ऐसे अवसर आते हैं जब वह स्वयम को तलाशने लगता है किंतु मार्ग कठिन लगने के कारण फिर भटक कर फिर उन्हीं भ्रमजालों में उलझ जाता है.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति,अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति,
आत्मचिंतन बेहद गूढ़... कुछ तो सार निकलेगा .. आगे की पोस्ट की इंतजारी
जवाब देंहटाएंसटीक वर्णन .....इंतज़ार है अगली कड़ी का
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंSarthak lekhan ka badhiya udaharan hai!
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