कुछ आवश्यक कारणों से " चतुर्वर्ग फल प्राप्ति और वर्तमान मानव जीवन " वाली इस पोस्ट का अगला भाग पोस्ट नहीं कर सका हूँ ....आप सबसे क्षमा याचना सहित यह कविता पोस्ट कर रहा हूँ ......!
मनुष्य जो मुक्ति की,
सुख,शांति की चाह रखता है
उसे मौत से डर लगता है?
मन और बुद्धि
आत्मा से अलग नहीं...!
योग्यताएं है आत्मा की
और इस देह का भान
अर्थात देहाभिमान...!
काम, क्रोध,
लोभ, मोह, अहंकार
विकार हैं इस देह के
तो जब तक हम
स्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
ये विकार ...!
तो त्याग कर इन विकारों को
और तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
मनुष्य जो मुक्ति की,
सुख,शांति की चाह रखता है
उसे मौत से डर लगता है?
मन और बुद्धि
आत्मा से अलग नहीं...!
योग्यताएं है आत्मा की
और इस देह का भान
अर्थात देहाभिमान...!
काम, क्रोध,
लोभ, मोह, अहंकार
विकार हैं इस देह के
तो जब तक हम
स्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
ये विकार ...!
तो त्याग कर इन विकारों को
और तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
बहुत बढ़िया अध्यात्मिक कविता... यह ज्ञान मनुष्य को हो जाये तो सब समस्याएँ समाप्त हो जाएँ...
जवाब देंहटाएंजब शरीर छूटना है तो शरीरजनित मोह भी छूट जाने चाहिये।
जवाब देंहटाएंतो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मरने से पहले...........!
गहन भावों के साथ उत्कृष्ठ अभिव्यक्ति ।
बढ़िया दर्शन है.और सुन्दर अध्यात्मिक कविता.
जवाब देंहटाएंकाम, क्रोध,
जवाब देंहटाएंलोभ, मोह, अहंकार
विकार हैं इस देह के
तो जब तक हम
स्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
ये विकार ...!
सत्य वचन केवल भाई जी सत्य ही सत्य है आपके हरेक शब्दों में...
यही तो जीवन दर्शन है इसी मे तो सत्य समाया है।
जवाब देंहटाएंकाम, क्रोध,
जवाब देंहटाएंलोभ, मोह, अहंकार
विकार हैं इस देह के
तो जब तक हम
स्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
...........वाह क्या बात है केवल भाई एक एक वचन सत्य है
जय हो
गुरदेव
केवल महाराज की
अगर विकारों को जीत लिया ..तो फिर बात ही क्या ...ये ही तो ससे मुश्किल काम है ..
जवाब देंहटाएंसत्य का बोध कराती शिक्षाप्रद रचना प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंsarthak aur prabhaavshali abhivaykti....
जवाब देंहटाएंइस उम्र में यह रचना महाराज :-)
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
सतीश जी ने जैसे हमारे भी मन की बात कह दी ।
जवाब देंहटाएंछोटी उम्र में बड़ी बात --ऐसी भी क्या जल्दी है भई । :)
@@बस यही ख्याल रहता है कि जीवन की वास्तविकता को सामने रखकर अगर जीवन जिया जाए तो बहुत सी बुराइयों से बचा जा सकता है , बाकी साँसों का क्या भरोसा ना जाने कब अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ जाएँ ....!
जवाब देंहटाएंतो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
....बहुत गहन और शास्वत सत्य की सटीक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर.
जी लो कुछ क्षण
जवाब देंहटाएंमरने से पहले
बहुत खूब
तो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
वाह! केवल राम जी.
आपके सुन्दर वचन,करते हैं विषाद का हरण
बहुत बहुत आभार जी.
केवल राम जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अध्यात्मिक रचना, बधाई
जीवन की सच्ची राह दिखाती लाजबाब प्रस्तुति...
मेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है,...
हम सबके लिए विचारणीय बातें .... सच है की शरीर का मोह छूटने से विकारों से मुक्ति संभव है....
जवाब देंहटाएंProfound, I wish we can shed all the negativities and live life in more meaningful way.
जवाब देंहटाएंThought provoking poem!
इस रचना में बहुत सी ज्ञान की बाते हैं।
जवाब देंहटाएंशास्वत सत्य...सुन्दर भाव...
जवाब देंहटाएंशाश्वत दर्शन!
जवाब देंहटाएंकेवल जी , ये देह तो मंदिर है जीता -जागता मंदिर जिसे परमात्मा ने हमें भेट किया है और वह स्वयं आत्मा रूप में विराजमान है . पूजा करते रहना हमारा काम है जिन्दगी खुद ही जीने लगती है.सुन्दर लिखा है.
जवाब देंहटाएंयुधिष्ठिर ने यक्ष को यही उत्तर तो दिया था क्षणिक जीवन को जानते हम सब हैं मगर मोह माया से परे हो पाना इतना आसान भी नहीं ...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लेखन !
बढिया जीवन दर्शन....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना .. देहाभिमान टूट जाए तो सुखी हो जाये जीवन ..
जवाब देंहटाएंतो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
बेहद सार्थक अभिव्यक्ति ....
मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है.
वाह बहुत खूब ....जीवन का कटु सत्य .....
जवाब देंहटाएंजब तक हम
जवाब देंहटाएंस्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
ये विकार ...!
सुन्दर आध्यात्मिक चिंतन....
सादर....
मोह माया से उपर उठने के बाद ही जीवन का वास्तविक अनुभूति हो सकती है... एक अच्छी कविता, बधाई..........
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम कोटि की रचना....
जवाब देंहटाएंसुन्दर दार्शनिक रचना
जवाब देंहटाएंतो त्याग कर इन विकारों को
और तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मरने से पहले...........!
आपकी कलम से निकले हर शब्द में एक अर्थ, एक चिन्तन आत्म मन्थन समाहित है ....
जवाब देंहटाएंसमय रहते व्यक्ति समझ ले तो फिर तो कुछ और कहना ही शेष ना रहे......
तो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
....बहुत गहन और सटीक अभिव्यक्ति..
बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं आपने.
उम्दा दर्शन......
जवाब देंहटाएंइससे पहले कि मौत नज़र आए,
जवाब देंहटाएंहम तो चले सुकून भरी सांस लेने !
बहुत ही सुंदर कविता बधाई....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट में स्वागत है
तो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
Wah...kya khoob kahi...
Inspiring one...
www.poeticprakash.com
जीवन मृत्यु एक सिक्के के दो पहलु है
जवाब देंहटाएंजीवन को अगर ठीक ढंग से नहीं जिया गया तो
मृत्यु का डर लगना स्वाभाविक है !
अच्छी रचना .......
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है!
जवाब देंहटाएंएक आध्यात्मिक यात्रा है केवल जी यह कविता.. जिस दिन यह साध लिया उस दिन कुछ भी नहीं रह जाता साधने को.. मुक्ति!!
जवाब देंहटाएंप्रिय केवल राम जी अध्यात्म और इस शरीर का सुन्दर आंकलन ..सच में देहाभिमान से जुदा हो जाएं तो शान्ति ....आत्मा की याद आ जाए
जवाब देंहटाएंबधाई हो ...
भ्रमर ५
मनुष्य जो मुक्ति की,
जवाब देंहटाएंसुख,शांति की चाह रखता है
उसे मौत से डर लगता है?
मन और बुद्धि
आत्मा से अलग नहीं...!bilkul sahi
तो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले.......
सुन्दर आध्यात्मिक कविता...
जी लो कुछ क्षण
जवाब देंहटाएंमृत्यु से पहले........!बहुत गहरी अभिव्यति।
काम, क्रोध,
जवाब देंहटाएंलोभ, मोह, अहंकार
विकार हैं इस देह के
तो जब तक हम
स्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
वाह ! बिलकुल सही कहा है आपने !
एक चिंतनीय प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
सुंदर,विचारणीय, दार्शनिक रचना.
जवाब देंहटाएंतो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!
अगर हम ऐसा कर पाते तो सच में हम एक सुंदर जीवन जी पाते ...सुंदर आध्यात्मिक भावों से भरी रचना !
सत्य, सिर्फ सत्य. और क्या कहूं.
जवाब देंहटाएंतो त्याग कर इन विकारों को
जवाब देंहटाएंऔर तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........! very nice.
sabkuch maine chhod diya mai mai ko mai na chhod saka ,sare bandan tod diye par mai ka bandhan na ttod saka ... bahut hi sundar rachna ...jivan ka satya prakash liye
जवाब देंहटाएंJust wanted to say that you have some awesome content on your website!
जवाब देंहटाएं