22 नवंबर 2011

मृत्यु से पहले

कुछ आवश्यक कारणों से  " चतुर्वर्ग फल प्राप्ति और वर्तमान मानव जीवन " वाली  इस पोस्ट का अगला भाग पोस्ट नहीं कर सका हूँ ....आप सबसे क्षमा याचना सहित यह कविता पोस्ट कर रहा हूँ ......!


मनुष्य जो मुक्ति की,
सुख,शांति की चाह रखता है
उसे मौत से डर लगता है?
मन और बुद्धि
आत्मा से अलग नहीं...!
योग्यताएं है आत्मा की
और इस देह का भान
अर्थात देहाभिमान...!

काम, क्रोध,
लोभ, मोह, अहंकार
विकार हैं इस देह के
तो जब तक हम
स्वयं को
देह की बजाय
आत्मा नहीं मानते
छूट नहीं सकते
ये विकार ...!

तो त्याग कर इन विकारों को
और तोड़कर
इस देहाभिमान को
जी लो कुछ क्षण
मृत्यु से पहले........!                                                  

53 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया अध्यात्मिक कविता... यह ज्ञान मनुष्य को हो जाये तो सब समस्याएँ समाप्त हो जाएँ...

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  2. जब शरीर छूटना है तो शरीरजनित मोह भी छूट जाने चाहिये।

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  3. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मरने से पहले...........!
    गहन भावों के साथ उत्‍कृष्‍ठ अभिव्‍यक्ति ।

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  4. बढ़िया दर्शन है.और सुन्दर अध्यात्मिक कविता.

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  5. काम, क्रोध,
    लोभ, मोह, अहंकार
    विकार हैं इस देह के
    तो जब तक हम
    स्वयं को
    देह की बजाय
    आत्मा नहीं मानते
    छूट नहीं सकते
    ये विकार ...!

    सत्य वचन केवल भाई जी सत्य ही सत्य है आपके हरेक शब्दों में...

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  6. यही तो जीवन दर्शन है इसी मे तो सत्य समाया है।

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  7. काम, क्रोध,
    लोभ, मोह, अहंकार
    विकार हैं इस देह के
    तो जब तक हम
    स्वयं को
    देह की बजाय
    आत्मा नहीं मानते
    छूट नहीं सकते
    ...........वाह क्या बात है केवल भाई एक एक वचन सत्य है
    जय हो
    गुरदेव
    केवल महाराज की

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  8. अगर विकारों को जीत लिया ..तो फिर बात ही क्या ...ये ही तो ससे मुश्किल काम है ..

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  9. सत्य का बोध कराती शिक्षाप्रद रचना प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद!

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  10. इस उम्र में यह रचना महाराज :-)
    शुभकामनायें आपको !

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  11. सतीश जी ने जैसे हमारे भी मन की बात कह दी ।
    छोटी उम्र में बड़ी बात --ऐसी भी क्या जल्दी है भई । :)

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  12. @@बस यही ख्याल रहता है कि जीवन की वास्तविकता को सामने रखकर अगर जीवन जिया जाए तो बहुत सी बुराइयों से बचा जा सकता है , बाकी साँसों का क्या भरोसा ना जाने कब अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ जाएँ ....!

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  13. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!

    ....बहुत गहन और शास्वत सत्य की सटीक अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर.

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  14. जी लो कुछ क्षण
    मरने से पहले

    बहुत खूब

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  15. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!

    वाह! केवल राम जी.
    आपके सुन्दर वचन,करते हैं विषाद का हरण
    बहुत बहुत आभार जी.

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  16. केवल राम जी,
    बहुत सुंदर अध्यात्मिक रचना, बधाई
    जीवन की सच्ची राह दिखाती लाजबाब प्रस्तुति...
    मेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है,...

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  17. हम सबके लिए विचारणीय बातें .... सच है की शरीर का मोह छूटने से विकारों से मुक्ति संभव है....

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  18. Profound, I wish we can shed all the negativities and live life in more meaningful way.

    Thought provoking poem!

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  19. इस रचना में बहुत सी ज्ञान की बाते हैं।

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  20. शास्वत सत्य...सुन्दर भाव...

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  21. केवल जी , ये देह तो मंदिर है जीता -जागता मंदिर जिसे परमात्मा ने हमें भेट किया है और वह स्वयं आत्मा रूप में विराजमान है . पूजा करते रहना हमारा काम है जिन्दगी खुद ही जीने लगती है.सुन्दर लिखा है.

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  22. युधिष्ठिर ने यक्ष को यही उत्तर तो दिया था क्षणिक जीवन को जानते हम सब हैं मगर मोह माया से परे हो पाना इतना आसान भी नहीं ...
    उत्कृष्ट लेखन !

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  23. बढिया जीवन दर्शन....

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  24. बहुत बढ़िया रचना .. देहाभिमान टूट जाए तो सुखी हो जाये जीवन ..

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  25. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!
    बेहद सार्थक अभिव्यक्ति ....

    मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है.

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  26. वाह बहुत खूब ....जीवन का कटु सत्य .....

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  27. जब तक हम
    स्वयं को
    देह की बजाय
    आत्मा नहीं मानते
    छूट नहीं सकते
    ये विकार ...!

    सुन्दर आध्यात्मिक चिंतन....
    सादर....

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  28. मोह माया से उपर उठने के बाद ही जीवन का वास्तविक अनुभूति हो सकती है... एक अच्छी कविता, बधाई..........

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  29. बहुत ही उत्तम कोटि की रचना....

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  30. सुन्दर दार्शनिक रचना

    तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मरने से पहले...........!

    जवाब देंहटाएं
  31. आपकी कलम से निकले हर शब्द में एक अर्थ, एक चिन्तन आत्म मन्थन समाहित है ....
    समय रहते व्यक्ति समझ ले तो फिर तो कुछ और कहना ही शेष ना रहे......

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  32. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!

    ....बहुत गहन और सटीक अभिव्यक्ति..
    बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं आपने.

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  33. इससे पहले कि मौत नज़र आए,
    हम तो चले सुकून भरी सांस लेने !

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  34. बहुत ही सुंदर कविता बधाई....
    मेरी नई पोस्ट में स्वागत है

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  35. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!

    Wah...kya khoob kahi...
    Inspiring one...

    www.poeticprakash.com

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  36. जीवन मृत्यु एक सिक्के के दो पहलु है
    जीवन को अगर ठीक ढंग से नहीं जिया गया तो
    मृत्यु का डर लगना स्वाभाविक है !
    अच्छी रचना .......

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  37. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है!

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  38. एक आध्यात्मिक यात्रा है केवल जी यह कविता.. जिस दिन यह साध लिया उस दिन कुछ भी नहीं रह जाता साधने को.. मुक्ति!!

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  39. प्रिय केवल राम जी अध्यात्म और इस शरीर का सुन्दर आंकलन ..सच में देहाभिमान से जुदा हो जाएं तो शान्ति ....आत्मा की याद आ जाए
    बधाई हो ...
    भ्रमर ५

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  40. मनुष्य जो मुक्ति की,
    सुख,शांति की चाह रखता है
    उसे मौत से डर लगता है?
    मन और बुद्धि
    आत्मा से अलग नहीं...!bilkul sahi

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  41. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले.......

    सुन्दर आध्यात्मिक कविता...

    जवाब देंहटाएं
  42. जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!बहुत गहरी अभिव्यति।

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  43. काम, क्रोध,
    लोभ, मोह, अहंकार
    विकार हैं इस देह के
    तो जब तक हम
    स्वयं को
    देह की बजाय
    आत्मा नहीं मानते
    छूट नहीं सकते


    वाह ! बिलकुल सही कहा है आपने !

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  44. एक चिंतनीय प्रस्तुति !
    बहुत सुन्दर !

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  45. बेनामी26/11/11 9:33 pm

    तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........!

    अगर हम ऐसा कर पाते तो सच में हम एक सुंदर जीवन जी पाते ...सुंदर आध्यात्मिक भावों से भरी रचना !

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  46. सत्य, सिर्फ सत्य. और क्या कहूं.

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  47. तो त्याग कर इन विकारों को
    और तोड़कर
    इस देहाभिमान को
    जी लो कुछ क्षण
    मृत्यु से पहले........! very nice.

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  48. sabkuch maine chhod diya mai mai ko mai na chhod saka ,sare bandan tod diye par mai ka bandhan na ttod saka ... bahut hi sundar rachna ...jivan ka satya prakash liye

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  49. बेनामी28/1/12 7:13 pm

    Just wanted to say that you have some awesome content on your website!

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जब भी आप आओ , मुझे सुझाब जरुर दो.
कुछ कह कर बात ऐसी,मुझे ख्वाब जरुर दो.
ताकि मैं आगे बढ सकूँ........केवल राम.