गतांक से आगे...अब तो यह निश्चित हो गया कि उपलब्धि को हासिल करने के लिए साधन से
महत्वपूर्ण है साध्य. साधक का लक्ष्य क्या है? जिसे वह हासिल करना चाह रहा है. उसके पीछे उसका मन्तव्य क्या है? उसकी भावना क्या है? जिसकी भावना जैसी होगी उसे उसके
कर्म का वैसा ही फल मिलेगा. जाकी
रही भावना जैसी, प्रभु मूर्त तिन
देखि तैसी. जिसका
जैसा भाव होता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है. जैसे कि किसी भी जीव कि ह्त्या
करना अपराध है, लेकिन किसी शत्रु को जब हम अपनी सीमा पर
मारते हैं तो उसे क्या कहते हैं? वहां एक भावना काम कर
रही है. हालाँकि ऐसा किसी भी स्तर पर होना तो नहीं चाहिए, लेकिन फिर भी
दुनिया का दस्तूर है, संसार के नियम हैं और उन नियमों के तहत हम जो कुछ भी हासिल
कर रहे हैं वह किसी हद तक हमें प्रासंगिक लगता है. क्योँकि किसी ऐसे व्यक्ति का
कर्म बाकी इनसानों के लिए चिन्ता का सबब बन सकता है, इसलिए
हम उसे किनारे लगा देते हैं.
जीवन में कर्म से पहले
भाव का महत्व है. भाव बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है हमारे जीवन में, हमारे कर्म में और निश्चित रूप से हमारी
उपलब्धि का कारण भी वही है. भाव हालाँकि किसी को दिखाई नहीं देता, लेकिन वह कर्म के माध्यम से बाहर आता है, प्रकट
होता है. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कीमती मोतियों की माला एक साधारण से धागे में
पिरोई जाती है. लेकिन वह धागा दिखाई नहीं देता, और जब
तक मोती उस धागे में बंधें हैं तब तक वह सुन्दर दिख रहे हैं, उनकी कीमत है. हालाँकि मोती कीमती हैं, और धागे
की कीमत और मोतियों की कीमत में जमीन-आसमान का अन्तर है, लेकिन फिर भी मोतियों का संग पाकर धागा कीमती हो गया और जब तक धागा उन
मोतियों में लगा है तब तक धागा भी उतना ही कीमती है, जितने
की मोती. भाव का यही महत्व है. उपलब्धि का भी यही कारण है. अब थोडा सा पीछे झांकते
हैं अपने इतिहास की तरफ . विवेकानंद ने एक
बार कहा था ‘अगर आपके पास दुनिया को
देने के लिए सर्वश्रेष्ठ विचार है तो उसे बेशक आप किसी पत्थर की शिला की गुफा में
सोच रहे हो, अभिव्यक्त कर रहे
हो, वह विचार बाहर आएगा और अपना प्रभाव जरुर छोड़ेगा’. यह विचार और भाव की शक्ति है.
जिस फूल को में देख रहा
था, उस फूल ने मुझे एक भाव दिया. उसने मेरे जहन में करुणा, प्रेम, दया, समदृष्टि आदि भावों का संचार किया. लेकिन किसी व्यक्ति के जहन में ऐसे भावों
का संचार यूं ही नहीं हो जाता. जिससे हम प्रेरित हो रहे हैं, उसमें वह भाव होना
चाहिए. वह प्रेरक होना चाहिए, और प्रेरणा भी ऐसी जिससे
सभी प्रेरित हों. दुनिया में ऐसा तो बहुत बार देखने को मिलता है कि किसी विशेष
व्यक्ति के व्यक्तित्व का अनुसरण कुछ विशेष लोग ही करते हैं, और कुछ के लिए वह
आँखों की किरकिरी बना रहता है. लेकिन जब हम सम्पूर्ण मानवता के लिए दया, करुणा, प्रेम, उदारता, सहिष्णुता जैसे मानवीय भावों को धारण कर कार्य करते हैं तो हमारा जीवन
सबके लिए प्रेरक बन जाता है उस फूल की तरह. जिसका किसी
से कोई वैर नहीं,कोई द्वेष नहीं, जिसे
किसी से नफरत नहीं. वह तो हर किसी की तरफ अपनी सुगन्ध, अपनी
कोमलता, सहजता, शालीनता सब
कुछ अर्पित कर रहा है. उसका यह निश्छल भाव ही उसकी उपयोगिता का निर्धारण करता है.
मानवीय धरातल पर अगर सोचें तो हम पाते हैं कि जीवन में हम सब कुछ
बनने की चेष्ठा करते हैं और ऐसा प्रयास करना कोई बुरी बात नहीं है. मानवीय प्रगति
के लिए यह आवश्यक भी है, आज
जितना भी भौतिक विकास हम देख रहे हैं यह मानव की जिज्ञासा और उसके निरन्तर क्रियाशील
रहने के कारण ही सम्भव हो पाया है. लेकिन इस भौतिक उन्नति ने हमसे बहुत कुछ छीन भी
लिया, यहाँ तक कि हमारा सुख-चैन भी. आज जो त्राहि-त्राहि
चारों और मची है उसके पीछे कारण अगर देखें तो इनसानी ही नजर आते हैं, लेकिन इनसान है कि अपने बजूद को मिटाने पर ही तुला है, उसे अपने स्वार्थ के सिवा कुछ सूझता ही नहीं और जब ऐसी सोच इनसान की है तो
फिर प्रगति तो कर ली, लेकिन मूल लक्ष्य से भटक जाना सही
नहीं. इसलिए आवश्यक है कि हम अपने परिवेश को देखें, वहां
की विसंगतियों को महसूस करें, अच्छाइयों का प्रचार करें.
बुराइयों का त्याग करें और इस धरती पर एक सुन्दर से वातावरण का निर्माण करने में
अपनी भूमिका अदा करें. ताकि आने वाली पीढियां इस वातावरण को कायम रखकर एक अद्भुत
प्रेम, अमन, भाईचारे वाली दुनिया
का निर्माण कर सके. ऐसी दुनिया में हर कोई हर किसी से प्यार करेगा उस फूल की तरह
जैसा उसने मुझसे किया है.
"जब हम सम्पूर्ण मानवता के लिए दया , करुणा , प्रेम , उदारता , सहिष्णुता जैसे मानवीय भावों को धारण कर कार्य करते हैं तो हमारा जीवन सबके लिए प्रेरक बन जाता है उस फूल की तरह . जिसका किसी से कोई वैर नहीं ,कोई द्वेष नहीं , जिसे किसी से नफरत नहीं . वह तो हर किसी की तरफ अपनी सुगंध , अपनी कोमलता , सहजता , शालीनता सब कुछ अर्पित कर रहा है . उसका यह निश्छल भाव ही उसकी उपयोगिता का निर्धारण करता है."
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ विचार, उत्तम आलेख.
"जब हम सम्पूर्ण मानवता के लिए दया , करुणा , प्रेम , उदारता , सहिष्णुता जैसे मानवीय भावों को धारण कर कार्य करते हैं तो हमारा जीवन सबके लिए प्रेरक बन जाता है उस फूल की तरह . जिसका किसी से कोई वैर नहीं ,कोई द्वेष नहीं , जिसे किसी से नफरत नहीं . वह तो हर किसी की तरफ अपनी सुगंध , अपनी कोमलता , सहजता , शालीनता सब कुछ अर्पित कर रहा है . उसका यह निश्छल भाव ही उसकी उपयोगिता का निर्धारण करता है."
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ विचार, उत्तम आलेख.
उत्तम आलेख.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, विचार अपना प्रभाव छोड़ता है।
जवाब देंहटाएंआज स्कूल में दाखिले के लिए ही बच्चे को कोहनी मार कर दूसरों से आगे निकलने की ट्रेनिंग शुरू करके ये समाज कहां पहुंचने वाला है... आप अंदाज़ा लगा ही सकते हैं... साधन साधक साध्य अपने अर्थ खो रहे हैं
जवाब देंहटाएंअति उत्तम सर जी, बहुत सुन्दर लेख है आपकी
जवाब देंहटाएंबधाई हो आपको
सकल सृष्टि ही भाव-निर्मित है। हमारे प्रत्येक कार्य-व्यवहार में भावना ही मूल है जो अदृश्य रूप से हमारे परिवेश को अनुकूलित करती है। हमारे समस्त कर्मों के पीछे भी हमारा आशय ही प्रतिफलित होता है। विधिशास्त्र में भी इसी सिद्धान्त की मान्यता है।..एक बात जो प्रकाश में आयी कि उपलब्धि को हासिल करने के लिए साधन से महत्वपूर्ण है साध्य.. वह किसी भक्तिपूरित दृष्टिकोण है और सटीक है.. 'तामस तन कछु साधन नाहीं...'
जवाब देंहटाएंऔर, आगे एक पंक्ति जोड़ना चाहता हूं..
जहां चकोरों सी मस्ती है छायी पली दृगों में.. जहां दृश्य, द्रष्टा, दर्शन सब घुलमिल हुए बरोबर.. वह हंसों का ताल पर.. वहां पर हंस केलि करते हैं
उपलब्धि पाने के लिए अपने लक्ष्य की सच्चे मन से साधना करने पर उपलब्धि प्राप्त होती है,..
जवाब देंहटाएंवाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
नई रचना ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
सही है हम इंसानों ने तरक्की विकास के नाम पर बहुत कुछ ऐसा कर लिया है जो हमारे ही पतन का कारण बन सकता है, इसलिए यह हमारा ही फ़र्ज़ बनता है, कि उन गलतियों को सुधारकर एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करें जिससे हमारी आगे आने वाली पीढियां हम पर गर्व कर सकें...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर उत्तम विचार... शुभकामनाएं
समय के साथ संस्कार और संस्कृति भी बदलती रहती है॥
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ विचार यह श्रंखला निरंतर चालू रखे. सुंदर आलेख के लिये बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और ज्ञानवर्धक आलेख.... इस मंथन में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा . आभार.
जवाब देंहटाएंबढिया विचार श्रृंखला......
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
सच में सिर्फ भौतिक उन्नति आगे बढ़ने का मापदंड नहीं हो सकता है , इसमें खोता भी बहुत कुछ है...... गहरा चिंतन ....
जवाब देंहटाएंअच्छे और नेक विचार अपना असर तो छोड़ता ही है..बहुत सुन्दर विचार , श्रेष्ठ आलेख...धन्यवाद केवल जी..
जवाब देंहटाएंभाव हो कर्म करने को प्रेरित करते हैं ... गज़ब की व्याख्या की है आपने ... भाव की प्रधानता ही मनुष्य को मनुष्य बनाती है ...
जवाब देंहटाएंविचार का प्रभाव तो होता ही है...सत्य वचन!!
जवाब देंहटाएंजीवन के साक्षात्कार क्षणों से परिचय कराता आपका यह पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंbahut umda lekh hai ,bdhiya likhte aur bdhiya sochte hai aap
जवाब देंहटाएंमानवीय धर्म के आयाम निर्दिष्ट करती है आपकी रचना|
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
जवाब देंहटाएंआपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति । बहुत इंतजार भी कर रहा हूँ । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअच्छाइयों का प्रचार करें . बुराइयों का त्याग करें और एक सुन्दर से वातावरण का निर्माण करने में अपनी भूमिका अदा करें . ताकि आने वाली पीढियां इस वातावरण को कायम रखकर एक अद्भुत प्रेम ,अमन , भाईचारे वाली दुनिया का निर्माण कर सके . ऐसी दुनिया में हर कोई हर किसी से प्यार करेगा उस फूल की तरह जैसा उसने मुझसे किया है .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.... !एक उत्तम सन्देश के लिए....शुभकामनाएं.... आभार.... और धन्यवाद केवल जी.... !!
Aapki Prastuti Nischit Roop Se Prasansha Ke Kabil hai .
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