गतांक से आगे...!!! मनुष्य जब भौतिक
चीजों से उपर उठकर सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को पाने के लिए प्रार्थना करता है तो उसकी
प्रार्थना उसे आनंद देने वाली होती है, और
वास्तविक मायनों में यह ही सच्ची प्रार्थना है. क्योँकि इस प्रार्थना का फल हमेशा
उसे आनंद देता है. जिसने इबादत में खुदा को मांग लिया वह धन्य हो गया. क्योँकि
सांसारिक चीजों की प्राप्ति थोड़ी देर के लिए आनंददायक हो सकती है और फिर दुसरे ही
क्षण हमारे सामने हमारी कोई और इच्छा जाग्रत हो जाती है. ऐसी हालत में हम सदा अपनी
इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही प्रार्थना करते हैं और करते रहेंगे. लेकिन जिसने
इबादत में खुदा से खुदा को मांग लिया वह धन्य हो गया. उसे किसी प्रकार का दुःख
नहीं, वह हर परिस्थिति में एक जैसे भावों से युक्त है,
वह खुद को इस ईश्वर में स्थापित कर लेता है. क्योँकि उसे इस बात का
अहसास है कि:- राम नाम निज औषधि, काटे कोटि विकार. / विषम व्याधि ये उबरै, काया कंचन
सार. (दादू)
राम नाम रूपी यह
औषधि एक निजी औषधि है, और यह करोड़ों
विकारों का शमन करने वाली है. जैसे ही
हमारे जीवन में ईश्वर का रंग चढ़ने लगता है
तो हमारी विषमता, असंतुलन कम होने लगता है, समता की अवस्था की और जीवन के भाव अग्रसर होते हैं, ईश्वर
और जगत के बीच संतुलन कायम हो जाता है.
जितनी भी विषम परिस्थितियाँ इस जगत में उभरती हैं वह सब चित से हट जाती हैं,
और हम इस स्वर्ण देह को देखते हुए इस नश्वर शरीर में ही अनश्वर शरीर
को देख पाते हैं. ऐसी स्थिति में जीवन के प्रति मोह भंग तो नहीं होता, लेकिन जीवन की वास्तविकता समझ आती है कि इस नश्वर देह के साथ अनश्वर ईश्वर
का गहरा सम्बन्ध है और फिर जीवन का हर क्षण दूसरों की भलाई के लिए, कल्याण के लिए प्रयुक्त होता है, यही से इबादत-दुआ
बन जाती है. जब हम आत्मिक और भावनात्मक स्तर पर बिना
किसी लाभ हानि के हमेशा दूसरों का हित सोचते हैं तो हमारे आनंद की सीमा कई गुणा बढ़
जाती है फिर हम संसार की प्रत्येक परिस्थिति में एक जैसे भावों से युक्त रहते हैं
और समय आने पर किसी के कल्याण के लिए , दुःख का शमन करने के
लिए ईश्वर से दुआ करते हैं :-“जीअ की बिरथा होइ सु गुर
पहि अरदासि करि./छोड़ सिआणप सगल मनु तनु अरपि धरि”. (आदि ग्रन्थ : 519)
अर्थात
ऐसे गुरसिख की अरदास कभी खाली नहीं जाती जो पूरे समर्पण भाव से गुरु से
प्रार्थना करता है, जो अपनी अक्ल और तन-मन को गुरु को समर्पित कर देता है. दुआ की पहुँच बहुत
गहरी होती है, अगर सच्चे मन से हम कोई भी भाव इस ईश्वर के
सामने रखते हैं तो वह निश्चित रूप से पूर्ण होता है. इस
भाव में किसी देश की, भाषा की, जाति की
सीमा आड़े नहीं आती हम किसी के दुःख को देखकर दुआ करते हैं उसे तुरंत सुख महसूस
होता है. कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि सामने वाले
मनुष्य के लिए प्रार्थना करते ही उसके जीवन कि दशा बदलने लगती है और की बार तो
प्रार्थना के बल पर ही आश्चर्यजनक परिणाम भी प्राप्त होते हैं. यह बात ध्यान देने
वाली है कि प्रार्थना अंधविश्वास नहीं है, यह एक पक्का विश्वास है और यह
विश्वास ईश्वर की पूर्णता और उसके साथ आत्मिक सम्बन्ध स्थापित कर लेने के बाद ही
प्राप्त होता है. ज्यादातर हमारी दुआ और इबादत अंधविश्वास पर आधारित होती है और
ऐसी हालत में सामने वाला हमारा लाभ उठाता है. हमारी मजबूरी का लाभ उठाकर वह अपना
स्वार्थ सिद्ध करता है. कई बार तो यह भी देखा जाता है ऐसे स्वार्थी व्यक्ति दुआ के
नाम पर व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक शोषण भी करते हैं, यह
एक नकारात्मक पहलू हैं. जिससे हमें बचना होगा. हम खुद के लिए जब प्रार्थना करते
हैं तो उसमें हमारी इबादत और आस्था बहुत मायने रखती है, लेकिन
जब कोई किसी के लिए दुआ करता है तो उसमें हमारा विश्वास काम करता है और यही हमारी
इबादत और दुआ का आधार है.
भाव जगत की शक्ति है, बिना किसी भौतिक आधार के भी बड़े प्रभावी होते हैं।
जवाब देंहटाएंसार यही है कि जब जीवन का हर क्षण दूसरों की भलाई के लिए, कल्याण के लिए प्रयुक्त होता है , तो इबादत - दुआ बन जाती है. " कहीं पर दुआ का एक लफ्ज भी असर कर जाता है , तो कहीं पर वर्षों की इबादत हार जाती है "
जवाब देंहटाएंज्यादातर हमारी दुआ और इबादत अंधविश्वास पर आधारित होती है ,,,,,,
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
bahut hi sundar aur darshnikta se bharpur abhivyakti
जवाब देंहटाएंबात पढ़ने में तो वाकई आसान लगती है, लेकिन एक पल को इन बातों पर अमल करने की सोचता हूं तो कांप जाता हूं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर आध्यात्मिक दर्शन का ज्ञान कराया आपने
सात्विक पोस्ट
जवाब देंहटाएंप्रार्थना के आश्चर्यजनक परिणाम होते हैं , सच ही है !
जवाब देंहटाएंप्रार्थना आराधना, श्रद्धा से साकारात्मक परिणाम देती है। अतिश्रेष्ठ प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंसुज्ञ: एक चिट्ठा-चर्चा ऐसी भी… :) में आपकी इस पोस्ट का उल्लेख है।
बहुत ही सार्थक और सारगर्भित प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंaabhaar
जवाब देंहटाएंइस आयु में आध्यात्म का इतना गहन अध्यनन और चिंतन प्रभावित करता है. अगली श्रंखला की प्रतीक्षा...
जवाब देंहटाएं@ इस आयु में आध्यात्म का इतना गहन अध्यनन और चिंतन प्रभावित करता है. अगली श्रंखला की प्रतीक्षा...!
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरुण जी
आपका शुक्रिया .....वैसे हम खुद को पहचान नहीं पाते और आज का हमारा जीवन बहुत भौतिकवादी हो गया है . हम जीवन में जो भी करते हैं उसके पीछे भौतिक साधनों का अर्जन हमारा उद्देश्य रहता है . प्रकृति से दूर विलासिता भरा जीवन हमें बहुत कमजोर बना रहा है . जहाँ तक रही मेरे गहन ज्ञान की बात तो यह सब आप सब का प्रेम और सम्मान है . हाँ यह बात अलग है कि मेरे गुरु जी की कृपा का प्रताप है यह सब , वर्ना हम भी दुनिया की भीड़ में खो जाते जब तक इनकी कृपा बनी रहेगी सब सही चलता रहेगा ...!
बहुत ही सात्विक लेख जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है
जवाब देंहटाएंदुआ और आशीर्वाद यकीनन असरकारी होते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंईश्वर के प्रति विश्वास ही हमें ईश्वर के नजदीक लाता है और अविश्वास नास्तिकता की ओर धकेलता है।...... स्वस्थ व सुन्दर वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंजीवन सार यही है. दुआ और इबादत मन को कम से कम आत्मसंतुष्टि तो प्रदान करती ही हैं.
जवाब देंहटाएंbahut hi gahan chintan .....
जवाब देंहटाएंKewal ji aapke likhe charon lekho ko agar man lagakar padha jaye to ak aam aadmi ke liye esse kimti khajana or koi nahi ho sakta .
agar aap bura na mane to mai aapse ak jankaari lena chahta hoon ...
parmatma,bhagwaan,ishwar ye teeno ak hain ya alag-alag.....
बस एक पल ऐसा आता है जब ये एह्सास हमे हो जाता है कि ईश्वर के सनिध्य मे ही सार है ...तब बहुत सारी बातें गौंण हो जातीं हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत आस्था से लिखा उज्जवल आलेख ...केवल जी ..
आभार ..
@ agar aap bura na mane to mai aapse ak jankaari lena chahta hoon ...
जवाब देंहटाएंparmatma,bhagwaan,ishwar ye teeno ak hain ya alag-alag.....
आदरणीय सुरेश जी प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए आभार .....जहाँ तक आपके सवाल का उत्तर है ...वैसे मैं इस दिशा का ज्ञाता नहीं हूँ ..लकिन जितनी समझ बनी है उसी आधार पर आपकी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश कर रहा हूँ ...
परमात्मा , भगवान् और ईश्वर वैसे तो एक ही सत्ता के तीन नाम हैं .इन्हें हम अलग - अलग नहीं कह सकते ...और यह नाम तो भाव के आधार पर अलग अलग हुए हैं वर्ना इनमें कोई अंतर नहीं ....!
अफ़सोस यही है कि श्रद्धा का लाभ उठाने वाले आसपास तैयार खड़े हैं ...
जवाब देंहटाएंपाखंडियों ने दुआएं बांटनी शुरू कर दी हैं..
शुभकामनायें आपको !
महेंद्र जी ने सच कहा है...........
जवाब देंहटाएंपढ़ने में सब आसान लगता है....अमल करना कठिन है....
दुआओं में शक्ति है मगर सच्चे दिल से दूसरों के लिए दुआ कोई करता भी है????
सादर
अनु
सच्चे मन से दी हुई दुआ और आशीर्वाद कई बार असरदार भी होते है
जवाब देंहटाएंकौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया, कौन दिशा में?
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति....
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