भारतीय संस्कृति में उत्सव का बड़ा महत्व है. उत्सव शब्द सुनते
ही हमारे जहन में एक रोमांच सा भर जाता है, मन ख़ुशी की कल्पना से झूम उठता है, और ऐसा
लगने लगता है जैसे सारा वातावरण खुशियों से सराबोर हो. उत्सव
मात्र हंसी-ख़ुशी, नाच-गान या खेल का नहीं होता. उत्सव तो जीवन की नैसर्गिकता का होता है, जहाँ
हम साकार और निराकार को इकमिक महसूस करते हैं. वास्तविकता में उत्सव अपने में एक
बृहत् अर्थ समाये हुए है. यह तो उस हर चीज का होता है, जहाँ लोग अपने पराये के भेद भूल जाते हैं, देशों
की सरहदें यहाँ कोई मायने नहीं रखती, भाषायी भिन्नता यहाँ
कोई अड़चन पैदा नहीं करती और किसी प्रकार का कोई मानसिक द्वंद्व यहाँ नहीं रहता, अगर कुछ रहता है तो, वह एक उत्सव! बस एक उत्सव, उसके सिवा कुछ भी नहीं , और अगर हम साँसों के इस सफर को उत्सव में तब्दील कर पायें तो जीवन की
महता बढ़ जाये, जीवन कालजयी हो
जाये.
हम उत्सव तो मनाते हैं सबकी ख़ुशी के लिए, दूसरों की ख़ुशी में खुद को शामिल करना उत्सव
की चरम सीमा है .जब किसी समारोह में लोगों को एक दुसरे
से मिलते हुए देखता हूँ तो मन ख़ुशी से भर जाता है. उनका परस्पर सौहार्द भरा मिलन और
मुस्कराहट भरा स्वागत एक आनंद देता है. लेकिन दूसरे ही पल हमारी मानसिक दीवारें हमें घेर लेती हैं, हमारी संकीर्णता हम पर हावी हो जाती है, तब सब कुछ ऐसा लगनेलगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो, यहाँ कोई ख़ुशी थी ही नहीं, कोई
प्रेम नहीं था. एकदम भिन्न वातावरण और ऐसे वातावरण में हमारे लिए उत्सव एक औपचारिकता बन जाता है, कुछ मजबूरी को निभाने जैसा, मात्र कुछ करने जैसा. बस कर लिया या करना है उससे आगे कोई ख्याल नहीं फिर हम जुड़ ही नहीं पाए उत्सव से तो
वास्तविक खुशी कहाँ? आनंद
कहाँ? जब हम वास्तविक रूप से उत्सव से जुड़ ही नहीं पाए
तो आनंद की बात कहीं दूर है, और जब हम आनंद और खुशी को
समझ ही नहीं पाए तो फिर जीवन के उत्सव होने की बात कहीं दूर है. जीवन एक उत्सव है
यह सोचना भी बेमानी होगी, एक कपोल कल्पना जैसे?
इस धरा
पर जब कोई नवजात जन्म लेता है तो सब उत्सव मनाते हैं. माँ को सबसे अधिक ख़ुशी होती है. पिता का हृदय भी आनंद से भर जाता है. दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची ना जाने कितने रिश्ते उससे जुड़ जाते हैं. सिर्फ यह रिश्ते
ही नहीं बल्कि समाज की कई ओर चीजें भी उससे जुड़ जाती हैं. फिर धीरे-धीरे उस नवजात
का जीवन क्रम शुरू होता है. वह जीवन के सफ़र की ओर अग्रसर
होता है. कई बार नहीं, बल्कि हर बार यह सुना जाता है कि बचपन बड़ा सुहाना होता है. लेकिन सबका बचपन सुहाना हो ऐसा सम्भव
नहीं. यहाँ तो दरिन्दगी इतनी बढ़ चुकी है कि हम नवजात को
जन्म से पहले ही मार रहे हैं. जो जन्म लेकर इस
धरा पर जीवन यापन कर रहे हैं वह भी कहाँ सुरक्षित हैं?
हर कोई इस धरा पर परेशानियां झेल रहा है. हर किसी को जीवन में कुछ खोने का डर बना रहता है. जो कि काफी हद तक स्वाभाविक भी है ओर
मानवीय वयवहार के अनुकूल भी. लेकिन मुश्किल वहां पर
खड़ी हो जाती है जब हम मोहवश किसी को अपना मान लेते हैं,
ओर उसके खोने का डर हमें हमेशा सताए रखता है. जीवन में मोह और नासमझी हमारे जीवन उत्सव से हमें परेशानियों की और अग्रसर करते हैं. ऐसे हालात में हमारे जीवन में उत्सव का महत्व कम होता चला जाता
है और एक दिन हम ऐसे मोड़ पर पहुँचते हैं जहाँ उत्सव
कहीं पीछे छुट जाता है और मजबूरियाँ और औपचारिकताएँ
जीवन का हिस्सा बन जाती हैं. फिर जीवन-जीवन नहीं रहता तो उत्सव-उत्सव कहाँ रहेगा?
मानव इस धरा पर एक ऐसा प्राणी है जो काफी हद तक प्रकृति को अपने अनुकूल कर सकता है. आज तक उसने ऐसे प्रयास
किये भी हैं. उसे काफी हद तक सफलता भी मिली है और उसी
सफलता के आधार पर वह अपने प्रयासों को जारी रखे
हुए है. उसके इन प्रयासों के पीछे हमारे शास्त्रों की
यह मान्यता भी कहीं सटीक बैठती है कि इस ब्रह्माण्ड में
जितनी भी कायनात है वह सब भोग योनियाँ हैं और मनुष्य ही
एक ऐसा जीव है जो कर्म योनि प्राप्त है. जिसे बुद्धि और
विवेक की सौगात ईश्वर द्वारा प्रदत है. ईश्वर ने जिसे
अपने प्रतिरूप के रूप में जन्म दिया है, इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है. परमात्मा ने जो कुछ भी मानव को दिया है उसके आधार पर उसे श्रेष्ठ कहा जाये, किसी हद
तक इस बात को माना जा सकता है. लेकिन यह एक पैमाना नहीं
है जीवन की श्रेष्ठता का. यह जीवन की श्रेष्ठता का एक
पहलू हो सकता है. जीवन की श्रेष्ठता के तो अनेक आयाम हैं.
अगर हम उन्हें पूरी तरह से भी जीवन में अपना लें तो भी कहीं पर कोई कमी रह जाएगी. फिर भी अगर हम जीवन में कुछ करने के लिए प्रयासरत हैं तो कुछ न कुछ
तो हमारे हाथ लगेगा ही. बस यही समझ है जो हमें जीवन की
श्रेष्ठता की और ले जाती है. अगर हम जीवन में श्रेष्ठता
के मानक भी छू पाएंगे तो भी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. जीवन
में नए मानक बनाना तो विरलों के हाथ में होता है. ऐसे इनसान तो ब्रह्माण्ड में कभी-कभी ही पैदा होते हैं और ऐसे इनसानों के व्यक्तित्व और विचारों की
चमक इनती तेज होती है जो हजारों वर्षों तक फीकी नहीं
पड़ती. लेकिन अफ़सोस कि ऐसे इनसानों की संख्या को आज हम
अँगुलियों पर गिन सकते हैं , जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्मों से इतिहास की धारा को बदला है और हमारे लिए
जीवन के नए और उदात मानक अख्तियार किये हैं. आये दिन
जनसंख्या बढ़ने के नए-नए आंकड़े तो आते रहते हैं, लेकिन
श्रेष्ठता के आंकड़े कोई नहीं बना सकता. आज हम जिन इनसानों को महान होने का दर्जा देते हैं वह किसी एक क्षेत्र में सिद्धहस्त थे. उसी कारण हम
उन्हें महान की संज्ञा से अभिहित करते हैं. सम्पूर्ण इनसान
तो आज तक कोई पैदा ही नहीं हुआ और ना ही होने की
सम्भावना है. लेकिन इनसान कितना नासमझ है कि उसे अगर कहीं कोई छोटी सी उपलब्धि हासिल हो जाती है तो वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ
समझने लगता है और यही आभासी श्रेष्ठता का पहलू उसे जीवन
में अभिमान की तरफ अग्रसर करता है. किसी उपलब्धि पर
अभिमान को तरजीह देना और किसी को अपने से निम्न समझना अंधकार की तरफ बढ़ना है. जीवन में सब कुछ हासिल करके विनम्र बने रहें तो हम जरुर
प्रकाश की तरफ अग्रसर होंगे और यही जीवन का मंतव्य भी
है.
सुकरात को विश्व में एक एक निर्भीक दार्शनिक के रूप में ख्याति
प्राप्त है. लेकिन जैसे-जैसे सुकरात की प्रसिद्धि बढती जाती है तो वह खुद को अज्ञानी घोषित
करता जाता है. जिस व्यक्ति (सुकारत) को पहले अपनी प्रसिद्धि पर गर्व होता था उसने
ही अन्तिम समय में कहा था कि "मैं जीवन में कुछ सीख नहीं पाया, मुझे
कुछ पता नहीं, मैं सबसे बड़ा अज्ञानी हूँ". सुकरात का खुद को सबसे बड़ा अज्ञानी कहना यह दर्शाता है कि उन्होंने जगत का सबसे
बड़ा ज्ञान हासिल कर लिया. हमारे जीवन की जितनी भी उपलब्धियां हैं, उन्हें ऐसे भी
अभिव्यक्त किया जा सकता है. जैसे हम एक सागर के
किनारे खड़े हों तो हमारी दृष्टि कितनी दूर तक देख पाएगी और हम उस सागर से क्या
समेट पाएंगे हो सकता है हम जो समेटें वह हमारे किसी काम का न हो लेकिन हम समेट रहे
हैं इस भ्रम में कि मैंने सबसे ज्यादा समेट लिया है. मेरी क्षमता हर किसी से कहीं
अधिक है. लेकिन जब वास्तविकता सामने आ गयी कि मैं चाहे जितने भी यतन कर लूं
मैं इस सागर को खुद में नहीं समेट सकता तो फिर जितना भी समेटा है वही सुख का कारण
है. लेकिन जो घटित होता है वह इसके विपरीत होता है. उसका कारण भी हम ही होते हैं.
क्योँकि हमें जिस दिशा कि तरफ बढ़ना होता है उस दिशा कि तरफ हम बढ़ते नहीं तो फिर
उलटी दिशा में चलकर व्यक्ति कहाँ मंजिल तक पहुँच पायेगा. जब वह मंजिल तक पहुंचेगा
ही नहीं तो फिर जीवन का उत्सव कहाँ फिर वह ख़ुशी कहाँ और सच तो यह है कि जिन चीजों
में हम ख़ुशी ढूंढते हैं वही कहीं हमारे लिए दुःख का कारण भी बन जाती है. हम जीवन
को उत्सव तभी बना पाएंगे जब जीवन कि वास्तविकता से जुड़ जायेंगे.
जीवन को उत्सव ही समझा जाये ...नहीं तो परिस्थितियां और आपाधापी इसे बोझ बना देती हैं...... विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंसाँसों के सफर का उत्सव
जवाब देंहटाएंपढकर अच्छा लगा.
सार्थक चिंतन
उत्सव अपने अस्तित्व की आनन्दमयी स्थिति याद दिलाने में सहायक होते हैं।
जवाब देंहटाएंकोई माने या ना माने ..जन्मदिन वाले दिन ...हर इंसान दिल से एक बार सोचता जरुर हैं ...वो सोच बड़े इंसान जैसी हो या बच्चे जैसी
जवाब देंहटाएंअपने ही भीतर उत्सव सा प्रकाश उज्जवल रहता हैं :)))
सही कहा जीवन को उत्सव समझ जीने में ही हो 'जीने' जैसा है...वरना 'काटना'
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट, क्या बात है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं
उत्सव कोई भी रोमांच तो होता ही है. शायद रोज की भागदौड से बचने का उत्साह हो.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं.
उत्सव कोई भी रोमांच तो होता ही है. शायद रोज की भागदौड से बचने का उत्साह हो.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं.
उत्सव कोई भी रोमांच तो होता ही है. शायद रोज की भागदौड से बचने का उत्साह हो.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं.
उत्सव कोई भी रोमांच तो होता ही है. शायद रोज की भागदौड से बचने का उत्साह हो.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं.
उत्सव कोई भी रोमांच तो होता ही है. शायद रोज की भागदौड से बचने का उत्साह हो.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं.
उत्सव कोई भी रोमांच तो होता ही है. शायद रोज की भागदौड से बचने का उत्साह हो.
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएं.
कोई भी नई शुरुआत उत्सव ही तो है..जीवन का हर नया क्षण उत्सव है... जन्म दिन की अशेष शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंbahut bahut shubhkamnaye..sundar aalekh..
जवाब देंहटाएंएक बार पुनः आपको जन्मदिवस की दिल से शुभकामनायें केवल राम जी ..
जवाब देंहटाएंबेहद ही उम्दा पोस्ट है ..'सांसो का सफ़र ..अपने अस्तित्व की गरिमामयी दास्तान ,रोचक होता है , हर उम्र में अपना जन्मदिवस .................लाजवाब लेख .. कोटिशः बधाई ..........
विचारणीय सार्थक रोमांचक पोस्ट ,बधाई,मेरे ब्लॉग विविधा पर स्वागत है |
जवाब देंहटाएंसाँसों का सफर मुबारक .....!!
जवाब देंहटाएंजन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएं .....!!