जहाँ हम
अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करके प्रेम करने की कोशिश करते हैं वहां हम सामने
वाले को तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन प्रेम
का जो वास्तविक आनंद है उसे प्राप्त नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में हमें अपने मन को
एक बार नहीं हजार बार टटोलने की आवश्यकता होती है. लेकिन जो सच्चे अर्थों में
प्रेम करते हैं वह विरले ही होते हैं. गतांक से आगे
यहाँ प्रेम
के सन्दर्भ में हमें एक बात सहजता से स्वीकारनी होगी कि वास्तविक प्रेम-प्रेम जैसा
कुछ करने से नहीं होता, वह अपने आप हो जाता है. व्यक्ति चाह कर भी अपने भावों को
किसी एक दिशा में बढ़ने से नहीं रोक पाता. प्रेम का भाव अक्सर होने का भाव है, करने
का नहीं. जहाँ प्रेम हो गया-बस हो गया. यहाँ व्यक्ति का कोई वश नहीं. यहाँ
अनुरक्ति का भाव पैदा हो गया किसी अनजाने के प्रति, किसी अजनबी के प्रति, कोई दूर रहकर
भी पास होने लगा, कोई ऐसा जिसके बिना जीवन लगता ही कुछ नहीं. ऐसी अवस्था में फिर
सोच लिया उसकी हर खूबी को और एक समय ऐसा आया जब उसके बिना जीवन नीरस और बेकार लगने
लगा. चाहे लौकिक प्रेम हो या अलौकिक दोनों में एक स्तर पर स्थिति एक सी हो जाती
है. इन दोनों दिशाओं में चलते हुए अगर कोई प्रेम होने की स्थिति में आगे बढ़ रहा है
तो फिर उसे कोई परवाह नहीं. जिससे उसने प्रेम किया है वह चाहे जैसा भी हो, जो भी
हो, दुनिया की नजर उसे चाहे किसी भी निगाह से देखती हो लेकिन जिसे प्रेम हो गया है
उसे हो गया है. उसे कोई परवाह नहीं दुनिया की, बस उसे एक ही परवाह है अपने भावों
को और चरम सीमा तक ले जाने की. ऐसी अवस्था में प्रेम परमात्मा हो जाता है और
परमात्मा प्रेम हो जाता है. प्रेम और प्रेमी दोनों एक हो जाते हैं, दोनों में कोई
भेद नहीं रहता. दो जान एक दिल बस सब कुछ समा जाता है, पूरी कायनात प्रेममय लगती है
और ऐसी स्थिति में व्यक्ति को लगता है कि प्रेम ही जीवन है और जीवन ही प्रेम,
प्रेम के बिना जीवन कुछ लगता ही नहीं.
प्रेम के
अनेक आयाम है और इसकी अनेक दिशाएँ भी हैं. जरुरी नहीं हमें प्रेम सिर्फ किसी
खुबसूरत चेहरे से ही हो, हमें प्रेम प्रकृति से हो सकता है, देश से हो सकता है,
किसी ऐसी कला से हो सकता है जिसके बिना हम अधूरे से लगते हैं. दुनिया में जितनी भी
दृश्य और अदृश्य चीजें हैं हमें किसी से भी प्रेम हो सकता है. लेकिन ज्यादातर
प्रेम दृश्य चीजों से ही होता है. क्योँकि प्रेम की प्रारंभिक अवस्था स्थूल से ही
प्रारंभ होती है. जैसे वह ग़ज़ल है न “जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था,
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है”. स्थूल से प्रारंभ हुआ यह सफ़र धीरे-धीरे
व्यक्ति के मानसपटल में उतरता जाता है और एक अवस्था ऐसी आती है जब वह खुद की
अपेक्षा प्रेम को ही तरजीह देता है और फिर उसे लगता है कि एक उम्र कम है मोहब्बत के लिए. हमारे सामने लौकिक और अलौकिक प्रेम के अनेक उदाहरण हैं. हर व्यक्तित्व में
एक अद्भुत आकर्षण है, हालाँकि हम उनके बाह्य व्यक्तित्व को ही जानते हैं, लेकिन
प्रेम के वशीभूत होकर उन्होंने जो कुछ भी अभिव्यक्त किया उसे समझने की जरुरत है.
एक तरफ कबीर, नानक, मीरा जैसे व्यक्तित्व है तो दूसरी तरफ लैला-मजनूं, हीर-रांझा
जैसे व्यक्तित्व भी हैं. इसके साथ-साथ देश और राष्ट्र से प्रेम करने वालों की भी
एक लम्बी सूची है. हम कैसे भूल सकते हैं भगत सिंह, चन्द्र शेखर और सुभाष चन्द्र
बोस जैसे राष्ट्र प्रेमियों को. जिन्होंने मातृ भूमि से प्रेम किया और अपने
प्राणों का उत्सर्ग तक कर दिया इसकी आन-वान और शान के लिए. यक़ीनन जब वह फांसी के
फंदे पर हँसते-हँसते झूलने जाते हैं तो फिर खुद को धन्य महसूस करते हैं. अपनी
दीवानगी पर कुर्बान होना उन्हें सौभाग्य लगता है और सही मायने में यही प्रेम की
चरम सीमा है. इन सब जनुनियों को देखने की निगाह दुनिया चाहे कुछ भी हो लेकिन प्रेम
इनमें भरपूर था अपने देश के मिटटी के लिए. हम जिस भी दिशा के प्रेम करने वालों के
जीवन को कर्म पर निगाह डालें हमें अद्भुत अनुभव होंगे, बेशर्त हैं हम उन्हें
पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर न देखें.
लेकिन
बदलते दौर में सब कुछ बदल रहा है. अब किसी भी दिशा में ऐसे दीवाने नहीं दिखाई देते
जो अपने
प्राणों का उत्सर्ग करने के लिए तैयार रहते हों, हालाँकि यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि रोज ही कोई न कोई नयी खबर आती रहती हैं कि प्रेम के लिए किसी ने फंदा लगा लिया और किसी ने जहर खा लिया, या ऐसा भी सुनने में आता है कि दो प्रेमियों ने ही अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर दी तो इसे क्या कहेंगे? यहाँ एक बात यह समझनी होगी कि प्रेम किसी भी स्थिति में ऐसा करने की अनुमति नहीं देता, वह तो आपको सकारात्मक दिशा की तरफ ले जाता है, वह आपको जीवन जीने के मायने सिखाता है. प्रेम किसी भी स्थिति में व्यक्ति को जीवन से विमुख होने के लिए प्रेरित नहीं करता. यह जो सब कुछ हो रहा है सिर्फ स्वार्थवश हो रहा है. हाँ कोई विरला ऐसा मिल सकता है, जिसने लाख कोशिश की हो अपने प्रेम को पाने की, वह हार गया हो और उस हार से वह जीवन से विमुख हो गया, उसने जीवन को समाप्त करने की ही सोची. ऐसे विषय अपवाद स्वरूप ही हो सकते हैं. लेकिन आज प्रेम एक फैशन बन चुका है और फैशन कभी भी स्थाई नहीं होता.
प्राणों का उत्सर्ग करने के लिए तैयार रहते हों, हालाँकि यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि रोज ही कोई न कोई नयी खबर आती रहती हैं कि प्रेम के लिए किसी ने फंदा लगा लिया और किसी ने जहर खा लिया, या ऐसा भी सुनने में आता है कि दो प्रेमियों ने ही अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर दी तो इसे क्या कहेंगे? यहाँ एक बात यह समझनी होगी कि प्रेम किसी भी स्थिति में ऐसा करने की अनुमति नहीं देता, वह तो आपको सकारात्मक दिशा की तरफ ले जाता है, वह आपको जीवन जीने के मायने सिखाता है. प्रेम किसी भी स्थिति में व्यक्ति को जीवन से विमुख होने के लिए प्रेरित नहीं करता. यह जो सब कुछ हो रहा है सिर्फ स्वार्थवश हो रहा है. हाँ कोई विरला ऐसा मिल सकता है, जिसने लाख कोशिश की हो अपने प्रेम को पाने की, वह हार गया हो और उस हार से वह जीवन से विमुख हो गया, उसने जीवन को समाप्त करने की ही सोची. ऐसे विषय अपवाद स्वरूप ही हो सकते हैं. लेकिन आज प्रेम एक फैशन बन चुका है और फैशन कभी भी स्थाई नहीं होता.
बदलते दौर
में मानव मूल्य बदल रहे हैं. सबको अपनी-अपनी पडी है. आज अगर कहीं कोई प्रेम कर भी
रहा है तो उसमें कहीं न कहीं उसका स्वार्थ छिपा हुआ है. आज अगर कोई किसी से
सम्बन्ध भी स्थापित कर भी रहा है तो उसमें भी स्वार्थ की बू आने लगी हैं. सब
सामाजिक हैसियत और अपना लाभ देखकर ही किसी से प्रेम करने का नाटक करते हैं और यह
तो आपको पता ही है कि नाटक का कोई भी पात्र वास्तविक नहीं होता. हालाँकि यह सब कुछ
किसी बड़े पैमाने पर भले ही न हो रहा हो लेकिन तस्वीर बदल रही है, व्यक्ति का नैतिक
स्तर गिर रहा है और आये दिन मानव पाशविकता के उदाहरण पेश कर ही रहा है. जहाँ जिसको
जो अवसर मिल रहा है वह व्यक्ति का शोषण कर ही रहा है. लेकिन जरुरी नहीं कि जो शोषण
कर रहा है वह ही इसके लिए जिम्मेवार हो, प्रारंभिक अवस्था में शोषण करवाने वाला भी
जिम्मेवार है, लेकिन जब उसकी कोई इच्छा पूरी नहीं होती तो वह दूसरे पर आरोप थोप देता
है. आये दिन हमें प्रेम के ऐसे किस्से और कहानियाँ हमने सुनने को मिलती रहती हैं.
ऐसी स्थिति में प्रेम-प्रेम नहीं लगता बस स्वार्थ सिद्धि का एक जरिया लगता है.
इसलिए तो हमने अब प्रेम के लिए दिन, महीने और सप्ताह निश्चित कर लिए. जहाँ प्रेम करने
के बाद जीवन एक उत्सव बन जाता है, वहीँ हमने इसके विपरीत प्रेम को ही उत्सव (आज के अश्लीलता के सन्दर्भ में) बना
लिया. अब हम प्रेम के नाम पर चोकलेट डे, प्रोमिस डे, और किस डे आदि मनाने लगे. अब
प्रेम बाजार पर निर्भर हो गया. ऐसे प्रायोजित प्रेम पर आलेख लिखे जाने लगे. इसके
पुरातात्विक महत्व (हम तो तेरे आशिक है सदियों पुराने) पर चर्चाएँ की जाने लगी हैं. बाजार सज रहे हैं और लोग प्रेम के
नाम पर बिक रहे हैं. प्रेम-प्रेम नहीं हो गया बाजार हो गया, इसलिए उसमें संसेक्स
की तरह उतर चढ़ाव लगातार जारी हैं.
लौकिक प्रेम की लत तो ऐसी है कि जूते पड़ने पर भी नहीं जाती। पारलौकिक प्रेम मृत्योपरांत भी जारी रहता है। वेलेन्टाईना प्रेम 14 फ़रवरी तक का है, फ़िर उसकी हवा निकल जाती है। वैसे प्रेम पर इतना विश्लेषण कोई "घाघ हृदयाघाति प्रेमी" ही कर सकता है। :)
जवाब देंहटाएं……… जय हिन्द
उपसंहार डे
अब के वेलेनटाईना त्यौहार में मिली जो हमको सीख
फ़ास्ट फ़ास्ट में ट्रबल खूब दिन में सितारे रहे दिख
दिन में सितारे रहे दिख कहा पप्पा मम्मा का मानो
डूब जाए बीच भंवर में नैया फ़िर तुम अपनी ही जानो
खूब मजा लो आपस में मिल जुल करके ब्यौहार में
नहीं टिकाऊ प्यार व्यार अंग्रेजी वेलेनटाईना त्यौहार में
© तोप रायपुरी
न पाना, न हो जाना, बस एक अनुभूति है यह।
जवाब देंहटाएंप्रेम की अद्भुत परिभाषा काश! देश के नवजवान इसे समझ पते ------------- बहुत-बहुत धन्यबद उत्कृष्ट लेख के जिये बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंsarthak upyogi rachna ..
जवाब देंहटाएंप्रेम किसी भी स्थिति में व्यक्ति को जीवन से विमुख होने के लिए प्रेरित नहीं करता. यह जो सब कुछ हो रहा है सिर्फ स्वार्थवश हो रहा है. हाँ कोई विरला ऐसा मिल सकता है, जिसने लाख कोशिश की हो अपने प्रेम को पाने की, वह हार गया हो और उस हार से वह जीवन से विमुख हो गया, उसने जीवन को समाप्त करने की ही सोची. ऐसे विषय अपवाद स्वरूप ही हो सकते हैं. लेकिन आज प्रेम एक फैशन बन चुका है और फैशन कभी भी स्थाई नहीं होता.
vartamaan jagat me prem ke swaroop ko bilkul sahi paribhashit kiya hai apne