गत अंक से आगे... इस यात्रा का अनुभव अद्भुत है, लेकिन यह महसूस तब होता है जब हम इसे
महसूस करना चाहते हैं. अधिकतर तो मनुष्य के साथ यह होता है कि वह जैसे-जैसे जीवन
की यात्रा को तय करता है, वैसे-वैसे उसके दिलो-दिमाग पर कई तरह की परतें जमती जाती
हैं. उसके मन में कई तरह की दीवारें बन जाती है. वह जाति, मजहब, वर्ण, रंग, रूप,
वेश-भूषा, खान-पान, सभ्यता-संस्कृति आदि अनेक आधारों पर खुद को दूसरे मनुष्य से
अलग समझता है. जिन आधारों की चर्चा यहाँ की गयी यह आधार ऐसे हैं जो मनुष्य की
शारीरिक पहचान से जुड़े हैं. किसी हद तक तो यह सही भी है, इस संसार में जिनती
विविधता होगी उतना ही यह संसार बेहतर भी होगा. क्योँकि ऐसी ही विविधता प्रकृति में
भी है. मनुष्य भी इसी प्रकृति का अंग है. लेकिन वह कभी खुद को प्रकृति का हिस्सा
नहीं मानता. यही बड़ी भूल मनुष्य करता है. जब इनसान खुद को प्रकृति के साथ जोड़कर, इसे
अपनी सहचरी मानकर अपना जीवन जीने की कोशिश करेगा तो वह अपने जीवन रहते इस दुनिया
की बेहतरी के लिए ही कार्य करेगा. लेकिन मनुष्य ऐसा नहीं कर पाता है. उसे उसके
अग्रजों द्वारा कई तरह के बन्धनों में बाँधने का प्रयास किया जाता है, वह भी ‘इतिहास’
का हवाला देकर और साथ ही उसे यह भी समझाया जाता है कि इसके बगैर वह कुछ भी नहीं है.
यही
से मनुष्य खुद का इतिहास बनाने की कोशिश करने लगता है. खुद को बेहतर समझने की होड़
यहीं से शुरू होती है. दुनिया में कहीं नाम और यश हो इस तरफ इनसान प्रयास करना
शुरू करता है, और यही भाव उसे दूसरे इनसान से नफरत, वैर, विरोध आदि करने के लिए
प्रेरित करता है. इतिहास बनाने की दौड़ बेहतर है, यह इनसान के द्वारा किया जाने
वाला बेहतर प्रयास है. लेकिन जरा रूककर सोचें तो समझ आता है कि इस इतिहास को बनाने
की दौड़ में मनुष्य कई बार इस हद तक गिर जाता है कि वह अपने खून तक के रिश्तों को
भी नहीं बख्शता. वह उनका भी क़त्ल करता है. इतिहास की यात्रा, हमारे जीवन की भौतिक
यात्रा से जुडी है. फिर भी अगर इनसान दूसरे इनसान की भलाई और आने वाली पीढ़ियों के
लिए कुछ बेहतर करने का सपना लेकर आगे बढ़ता है तो यह अच्छा है. लेकिन आज तक का
मनुष्य का उपलब्ध इतिहास देखें तो बात आसानी से समझ आती है कि चंद ही मनुष्य इस
धरती पर हुए हैं, जिन्होंने सही मायने में इंसानियत के ऊँचे मायने स्थापित करने के
लिए अपने जीवन के हर पल को जिया है. लेकिन ऐसे इनसानों के भावों से एक और भी सार
निकल कर आता है कि इन्होंने जीवन चाहे जैसा भी जिया हो लेकिन हमेशा इस भाव में रहे
कि वह तो निमित मात्र हैं. इससे अनेक लाभ हुए, लेकिन सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि इन्होंने
बिना किसी इतिहास का हवाला दिए बिना मनुष्य को वर्तमान में जीने के लिए प्रेरित
किया. साथ ही यह भी समझाने का प्रयास किया कि मनुष्य वास्तव में इस ब्रह्माण्ड में
व्याप्त चेतना का अंश है, और अंततः इनसान को इसी चेतना में समाना है. इस संसार तो
चंद दिनों का बसेरा है, हमारी वास्तविक मंजिल तो आत्मा से परमात्मा का मिलन है.
संसार में हुए अधिकतर महान व्यक्तियों ने इसी भाव से मनुष्य को समझाने का प्रयास
किया है. हमारे पास ऐसे और कई उदाहरण हैं, जिनसे यह साबित हो जाता है कि बेशक
भौतिक स्तर हम इतिहास का हिस्सा हैं, लेकिन आत्मिक और वास्तविक स्तर पर हमारी
यात्रा अकेली है.
इस
अद्भुत यात्रा जे अनुभव को ऐसे भी समझा जा सकता है. जैसे एक माँ का अनुभव अपनी कोख
से पैदा किये हुए बच्चे के लिए अलग होगा. लेकिन उसी बच्चे के लिए पिता का अनुभव
अलग होगा और इसी अनुभव के आधार पर अगर हम बच्चे का अनुभव माता और पिता के सन्दर्भ
में समझने का प्रयास करेंगे तो उसका भी माता और पिता के प्रेम के प्रति अनुभव अलग
होगा. एक ही परिवार में एक ही माता-पिता का अपने बच्चों का प्रति तथा उन्हीं
बच्चों का अपने माता-पिता के प्रति नजरिया और अनुभव हमेशा जुदा होता है. जबकि वह
एक ही परिवेश में रहते हैं, एक ही माता-पिता से उन्होंने जन्म लिया है और अधिकतर
एक ही तरह का वातावरण उन्हें मिला है. फिर भी हर किसी की सोच अलग है, चीजों को
देखने का नजरिया अलग है. जीवन के छोटे से छोटे पहलू से लेकर बड़े से बड़े पहलू तक
किसी का कोई भी भाव और विचार समान नहीं होता. जब मैं दसवीं कक्षा में पढता था तो
मुझे एक व्यक्ति ने कहा था कि “केवल तुम्हारे अंगूठे की तरह दुनिया में दूसरा कोई
अंगूठा नहीं है”. हालाँकि यह बात मुझे तब किसी और सन्दर्भ में समझ आई, आज इसी बात
के मायने मेरे लिए अलग हो गए हैं और हो सकता है जीवन के किसी और पड़ाव पर इस बात के
मायने मेरे लिए कुछ अलग हो जाएँ. इस बात को सुनने के बाद तब मुझे जो अनुभव हुआ, जो
मैंने समझा, आज सब कुछ वैसा नहीं है और हो सकता है, कल कुछ और हो. इसलिए किसी एक
बात के प्रति भी हमारा खुद का नजरिया बदलता रहता है तो फिर जीवन में इतिहास जैसा
कहाँ कुछ घटित होता है. हम अपने आस-पास की चीजों को जब बेहतर तरीके से टटोलेंगे तो
हमने जो अनुभव वहां से प्राप्त होंगे वह हमारे खुद के करीब जाने का मार्ग प्रशस्त
करेंगे.
मनुष्य
की यात्रा सांसारिक चकाचौंध में गुम होने की यात्रा नहीं है. जबकि मनुष्य की
यात्रा खुद के भीतर झांककर अपने अस्तित्व को पहचानने की यात्रा है. जीवन का सफ़र दो
स्तरों पर तय होता है, एक भौतिक स्तर पर और दूसरा आत्मिक स्तर पर. शरीर की यात्रा सीमित
और अनिश्चित है. लेकिन इसमें एक पहलू निश्चित है और वह है कि किसी दिन हमें इस
शरीर से अलग होना है और आत्मिक स्तर की यात्रा अनंत है, उसके विषय में हम कोई
अनुमान नहीं लगा सकते. लेकिन वह हमारे संचित अनुभवों की यात्रा के बजाय हमेशा कुछ
नया अनुभव करने की यात्रा है. यह यात्रा जीवन को समझने की यात्रा है. यह यात्रा
वर्तमान से इतिहास की और बढ़ने की यात्रा नहीं है, बल्कि वर्तमान से वर्तमान में
रहते हुए आगे बढ़ने की यात्रा है. यह यात्रा अनन्त से अनंत में विलीन होने की
यात्रा है. जीवन की यात्रा इतिहास की नहीं, बल्कि वर्तमान की यात्रा है, मृत्यु की
नहीं, बल्कि अमरत्व की यात्रा है . इस यात्रा में इतिहास जैसा कुछ नहीं, जो है वह सिर्फ वर्तमान है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-09-2016) को "जागो मोहन प्यारे" (चर्चा अंक-2475) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिल्कुल सही कहा 1 सुन्दर आलेख्1 मेरी पोस्ट आज फिर किसी एग्रिगेटर ने नही उठाई सिवा ब्लाग परिवार के1 आना चाहती हूंम ब्लाग पर वापिस मगर बहुत कुछ बदल गया है1 मेरा ब्लाग भी1
जवाब देंहटाएंविजेता का बस वर्तमान होता है। .विजेता का कोई अतीत नही होता
जवाब देंहटाएंसहमत
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