गत अंक से आगे.... गाँव में जीवन का क्रम जन्म से
लेकर मृत्यु तक एक दूसरे के सहज सहयोग पर आधारित होता. लेकिन फिर भी कहीं पर
मानवीय स्वभाव और स्वार्थ जरुर सामने आता, और यह जीवन की वास्तविकता भी है. फिर भी गाँव में जीवन सदा ही सुखद और सहज
महसूस होता. कहीं कोई भागदौड नहीं, कोई लालसा नहीं, सब कुछ सहज और शान्ति से घटित होता. मैंने अपने जीवन काल में ही मनुष्य के
स्वाभाव में बहुत परिवर्तन होते देखे हैं तो मैं कैसे सोच लूं कि गाँव के मनुष्य
का स्वभाव नहीं बदलेगा. आज हम जिस भौतिक उन्नति को मानवीय विकास का आधार मान रहे
हैं उसका प्रभाव गाँव पर भी पड़ा है और वहां भी उन सब चीजों पर प्रभाव देखने को
मिलता है जो हमें शहरों में देखने को मिलता है.
मैं एक बार फिर अपने अतीत
में झांककर देखने को कोशिश करते हुए गाँव के जीवन को याद कर रहा हूँ. मैं जिस
क्षेत्र में पैदा हुआ हूँ, वहां पर
अक्तूबर से मार्च-अप्रैल तक बर्फ पड़ने के कारण पूरी घाटी का सम्पर्क शेष विश्व से
कट जाता. हालाँकि गर्मी के मौसम में भी घाटी से बाहर जाने के लिए दुर्गम रास्तों
का सफर तय करना पड़ता, और यही वह मौसम होता जब घाटी के लोग
अपने आवश्यक सामान आदि इकठ्ठा करना शुरू कर देते. पशुओं के लिए घास आदि इकठ्ठा
करके रखा जाता. मेरे गाँव की दुनिया एक अलग ही दुनिया है. एक अलग तरह का अहसास
मुझे अब भी उस दौर में ले जाता है तो मैं रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकता. हालाँकि
यहाँ के जीवन की अपनी परेशानियां और संघर्ष हैं. लेकिन यहाँ लोगों के एक दूसरे के प्रति
अथाह प्रेम, सहयोग और विश्वास किसी भी प्रकार के कठिन समय को
काट देते. लोगों का एक दूसरे से मिलजुल कर रहना एक अलग ही अहसास देता. पूरा गाँव
एक दूसरे के सुख-दुःख का बराबर सांझीदार होता. ख़ुशी में सब खुश होते, और गम में सब दुखी. ऐसे ही कटता गाँव के जीवन का सफर.
गर्मियों के मौसम में लोग
जहाँ मिलजुल कर कृषि सम्बन्धी कार्य करते. इस दौरान प्रकृति जिस रूप में अपने
प्राकृतिक सौन्दर्य से सबके मन को मोह लेती वह एक अलग ही आकर्षण होता. लेकिन सर्दी
का मौसम भी कम रोमांचक नहीं होता. गर्मी के मौसम में जहाँ प्रकृति अपने सौन्दर्य
से सबको अपनी और आकर्षित करती, वहीँ
सर्दियों के मौसम में यहाँ के स्थानीय त्यौहार एक खुशनुमा माहौल बनाये रखने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते. कुल मिलाकर घाटी में पूरे वर्ष कुछ न कुछ सांस्कृतिक
गतिविधियाँ होती रहती, जो लोगों को एक दूसरे से जोड़े रखती.
एक तरफ जहाँ गर्मी के मौसम में प्रकृति के रंगों के साथ-साथ त्यौहार आयोजित किये
जाते तो सर्दी के मौसम में भी वही क्रम चलता रहता. इन सब कार्यक्रमों में लोगों का
उत्साह, सहयोग और प्रेम देखते ही बनता था.
गाँव के लोग जहाँ गर्मी
के दौरान अपना अधिक समय जंगलों और खेतों में व्यतीत करते. वहीँ सर्दी के मौसम में
गाँव में ही पूरा समय व्यतीत होता. इस दौरान गाँव के लोग घर के अन्दर रहकर ही अपने
कार्यों को निपटाते. कुल मिलकर व्यवस्था ऐसी होती कि सर्दियों में अलग काम किये
जाते और गर्मियों में अलग काम. गर्मियों के मौसम में कृषि से सम्बन्धित कार्य अधिक
किये जाते और सर्दियों के मौसम में घर के अन्दर रहकर किये जाने वाले कार्य किये
जाते. जैसे ऊन कातने से लेकर हथकरघे पर कपड़ा बनाना. इस कार्य को स्त्री को पुरुष
दोनों मिलकर करते. महिलायें भी ऐसे कामों में दक्ष होती. वह अधिकतर गेहूं की पुआल
से कई तरह की चीजें बनाती, जैसे
पाँव में डालने के लिए जूता (जिसे स्थानीय बोली में ‘पूले’ कहा जाता). उसमें भी
ऐसे डिजाईन बनाये जाते कि उन्हें देखकर ही मन इस कला पर मुग्ध हो जाता. गेहूं के
पुआल से ही चटाई आदि भी बनाई जाती. ऐसे अनेक काम होते जिन्हें लोग अकसर सर्दियों
के मौसम में ही करते. सबसे बड़ी बात यह कि यह सब काम समूह में मिलकर सहयोग से किये
जाते.
गाँव में वैसे तो हर वक़्त
कुछ न कुछ चला रहता. सर्दियों के शुरू होते ही लोग अखरोट की गिरी निकालने का काम
करते. हमारे क्षेत्र में अखरोट बहुत मात्रा में पैदा होता है. इसलिए उसकी गिरी से
लेकर तेल निकालने तक का कार्य घर में ही किया जाता. बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इस
काम में काफी सहयोग और रोमांच से भाग लेते. इसके अलावा और भी छोटे-छोटे और रोचक
काम गाँव का हर व्यक्ति अपने हिसाब से करता रहता. कोई जुराब बना रहा है तो कोई
स्वेटर बुन रहा है. कोई ऊन कात रहा है तो कोई कपड़ा बन रहा है. कुल मिलाकर गाँव के
लोग कभी भी बेकार बैठकर अपना समय कभी भी बर्बाद नहीं करते. बच्चे से लेकर बुजुर्ग
तक हर कोई अपने-अपने हिसाब से व्यस्त रहने की कोशिश करता.
मेरे गाँव में एक और
विशेष बात होती, वह यह कि वहां एक बड़े
बुद्धिजीवी व्यक्ति थे और लोग सर्दियों में उन्हें अपने घर कथा कहने के लिए बुलाते,
इस कथा को बड़े ध्यान से सुना जाता. बच्चे जवान बुजुर्ग सब शामिल
होते. कई बार तो ऐसा माहौल बनता कि पूरा गाँव ही किसी एक के घर में इकठ्ठा हो जाता
और बड़ी तन्मयता से उन कहानियों को सुनता. उन कहानियों को सुनने और सुनाने की एक
विशेष व्यवस्था होती, सबसे बड़ी बात तो यह होती कि बच्चे इन
सब गतिविधियों में बड़े उत्साह से भाग लेते और कई बार उनके मासूम सवाल लोगों को
अचरज में डाल देते. इन कहानियों में साहस, प्रेम, दया, करुणा और बलिदान के अनेक किस्से होते जो सबके
मन पर प्रभाव डालते, और जीवन में वैसा कुछ करने के लिए
प्रेरित करते. कई बार कुछ कहानियाँ कई दिनों तक चलती दो या तीन दिन तक लेकिन लोग
नए अंक को सुनने के लिए बड़ी तन्मयता से पहुँच जाते. एक अलग सा ही अहसास होता है अब
मुझे उस दौर के बारे में सोचकर. इन कहानियों में जीवन का हर पहलू बड़ी बारीकी से
अभिव्यक्त किया जाता. कहानी सुनाने वाले के साथ एक और व्यक्ति रोचकता बनाये रखने
के लिए उससे बीच-बीच में “जी भाई जी” जैसे शब्द कहते हुए कहानी को आगे बढाने में
सहायक होता.
गाँव का जीवन कई मायनों में बड़ा परम्परा से बंधा हुआ माना जाता है, मैंने अपने गाँव में परम्पराएँ तो देखी, लेकिन परम्पराओं को निभाने के प्रति कोई कट्टरपन कभी नहीं देखा. अनुशासन
की जहाँ तक बात है तो वह हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत मायने रखता है और गाँव
के लोग इस विषय में काफी ध्यान देते. इस अनुशासन का पालन व्यक्तिगत जीवन से लेकर
सार्वजनिक जीवन तक किया जाता. दैनिक गतिविधियों में भी अनुशासन का कड़ाई से पालन
करने की बात की जाती, सुबह जागने से लेकर रात्रि सोने तक.
खान-पान से लेकर आचार व्यवहार तक. शेष अगले अंक में...!!!
गाँव के बारे में कुछ नवीनतम और रोचक जानकारी आपसे मिली!
जवाब देंहटाएंरोचक और सम्यक जानकारी.
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी सिर्फ एक शब्द ...लाज़वाब
जवाब देंहटाएंरोचक ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने चाचू जी गाँव की बात बड़ी ही बड़ी दिलचस्प है......अब गाँव, गाँव जैसा नहीं है!
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