दीप
खुद को जलाता
किसी दूसरे को प्रकाश से
सरावोर करने के लिए
रिश्ता दीप का उससे कोई नहीं
न ही कोई चाह है उससे
न कोई बदले का भाव
फिर भी
दीप
उसे प्रकाश दे रहा है
सिर्फ अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए.
दीप
शिक्षा है संसार के लिए
जो खुद को जलाकर
मार्ग बना रहा है दूसरों के लिए
अँधेरा चाहे कितना भी घना हो
दीप की एक लौ काफी है
हजारों वर्ष का अँधेरा मिटाने के लिए
दीप
अर्थ कई हैं इसके, कई
हैं मायने
जिन्दगी जियें हम दीप की भान्ति
समग्र संसार के लिए.
दीप
साथी है जीवन का
हर कर्म इसके बिना है अधूरा
दीप का होना है जीवन का होना
इसके बिना सब और है अँधेरा
दीप
भेद है जड़ और चेतना का
दीप प्रतीक है करुणा और संवेदना का
दीप बिना है जीवन सूना
और मृत्यु भी अधूरी
दीप के बिना.
दीप
प्रतीक अंतर्मन के प्रकाश का
सोये हुए जग के उजास का
भटके हुए राही की
मंजिल का यह आधार
दीप से ही मंजिल पाता
यह संसार
दीप
न बुझने वाला अंतर्मन में जलाना
दीप की इस रौशनी में
प्रेम के बीज बोना
करुणा की फुहार से उसे सींचना
इस संसार में चंद दिनों का सफर
दीप की भान्ति तय करते जाना
दिवाली की इस शुभ बेला पर
कभी न बुझने वाला दीप जलाना.
सही कहा आपने दीप मंज़िल का आधार है। दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ब्लॉग बुलेटिन का दिवाली विशेषांक“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
दीपों का औचित्य समझाते हुए इस पर्व की महिमा का एक अनछुआ पहलू प्रस्तुत किया है आपने केवल राम जी. बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंदीप की दिव्यता दीपित हो रही है । शुभकामनाएँ
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दीप की दिव्यता दीपित हो रही है । शुभकामनाएँ
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बहुत बढ़िया ...आखिर आपने व्यस्त टाइम से भी समय निकाल ही लिया ! हार्दिक शुभकामनायें !!
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